मत्तगयन्द सवैया - श्री दुर्गाशंकर इजारदार
(1)
पाकर के सुन मानुस के तन काबर तैं अति सोचत लाला ।
नाम कमा सुन रे मन मूरख काबर काम करे अति काला ।
राम जपे नइ तैं हर काबर डार रखे हस रे मुँह ताला ।
जावत तोर हिसाब करे यम देखत दौड़त मारत भाला ।
(2)
:मात पिता अपमान करे हस खोजत मान कहाँ अब पाबे ।
मान मिले जग में जब सोचत मात पिता झन तैं बिसराबे ।
कोंख जने उँगली धर रेंगत छोड़ के साथ कहाँ अब जाबे ।
छाँव करे ममता अँचरा जब दुःख भगा सुख भोर नहाबे ।
(3)
राम के काम करे जग में बजरंग बली तँय नाम धराए ,
लाल धरे हस रूप सदा धर हाथ गदा हनुमंत कहाए,
दूत बने हस राम सिया सुन खोजत रावण धाम जलाए ,
राम सिया गुन गावत गावत लक्ष्मण के तँय जान बचाए ।
(4)
जंगल मा अब मंगल खोजत देख नहीं अब पावस भारी ।
रूख कटे ठुठवा सब होवत काबर जोर चलावत आरी ।
जंगल मा चिमनी बइठे बर आवत कागज हे सरकारी ।
थोकुन सोचव रूख लगालव मेंड़ तरी बखरी अउ बारी ।
(5)
हे गणनायक मोर गजानन हावस तैं सुन भाग विधाता ।
सेवक मैं अउ मालिक तैं अस भावत हावय सुग्घर नाता ।
चार भुजा मन मोहत हावय दुःख हरे सुख देथस दाता ।
शंकर हावय तोर ददा अउ पारवती सुन हावय माता ।
(6)
नाम अनेक धरे जग तारण रूप अनंत धरे बनवारी ।
मोहन माधव केशव निर्गुण हे मुरली धर हे त्रिपुरारी ।
हे अचला अजया अनया बलि कृष्ण दयानिधि पुण्य मुरारी ।
श्याम सुदर्शन विष्णु निरंजन हे मधुसूदन हे सुख कारी ।।
रचनाकार - श्री दुर्गाशंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़
(1)
पाकर के सुन मानुस के तन काबर तैं अति सोचत लाला ।
नाम कमा सुन रे मन मूरख काबर काम करे अति काला ।
राम जपे नइ तैं हर काबर डार रखे हस रे मुँह ताला ।
जावत तोर हिसाब करे यम देखत दौड़त मारत भाला ।
(2)
:मात पिता अपमान करे हस खोजत मान कहाँ अब पाबे ।
मान मिले जग में जब सोचत मात पिता झन तैं बिसराबे ।
कोंख जने उँगली धर रेंगत छोड़ के साथ कहाँ अब जाबे ।
छाँव करे ममता अँचरा जब दुःख भगा सुख भोर नहाबे ।
(3)
राम के काम करे जग में बजरंग बली तँय नाम धराए ,
लाल धरे हस रूप सदा धर हाथ गदा हनुमंत कहाए,
दूत बने हस राम सिया सुन खोजत रावण धाम जलाए ,
राम सिया गुन गावत गावत लक्ष्मण के तँय जान बचाए ।
(4)
जंगल मा अब मंगल खोजत देख नहीं अब पावस भारी ।
रूख कटे ठुठवा सब होवत काबर जोर चलावत आरी ।
जंगल मा चिमनी बइठे बर आवत कागज हे सरकारी ।
थोकुन सोचव रूख लगालव मेंड़ तरी बखरी अउ बारी ।
(5)
हे गणनायक मोर गजानन हावस तैं सुन भाग विधाता ।
सेवक मैं अउ मालिक तैं अस भावत हावय सुग्घर नाता ।
चार भुजा मन मोहत हावय दुःख हरे सुख देथस दाता ।
शंकर हावय तोर ददा अउ पारवती सुन हावय माता ।
(6)
नाम अनेक धरे जग तारण रूप अनंत धरे बनवारी ।
मोहन माधव केशव निर्गुण हे मुरली धर हे त्रिपुरारी ।
हे अचला अजया अनया बलि कृष्ण दयानिधि पुण्य मुरारी ।
श्याम सुदर्शन विष्णु निरंजन हे मधुसूदन हे सुख कारी ।।
रचनाकार - श्री दुर्गाशंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़
वाह्ह् वाह्ह् दुर्गा भैया बहुत सुन्दर सुन्दर मत्तगयंद सवैया छंद के सृजन करे हव।बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सृजन सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन हे दुर्गा भाई
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
बहुतेच सुग्घर सवैया के सिरजन करे हव दुर्गा भाई जी।बहुत बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर मत्तगयंद सवैया लिखे हव ,दुर्गाशंकर भैया। बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर मत्तगयंद सवैया लिखे हव ,दुर्गाशंकर भैया। बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteबड़ सुग्घर मत्तगयंद सवैया सर जी।
ReplyDeleteबढ़िया दुर्गा भैया
ReplyDeleteबढ़िया दुर्गा भैया
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ....जम्मो एक से बढ़के एक हावे....गाड़ा गाड़ा बधाई भाई ज्ञानू...
ReplyDeleteसादर सहृदय बधाई आपो मन ला...।
गुरुदेव संग आप सबो ला हृदय से धन्यवाद सादर प्रणाम
ReplyDeleteदुर्गा भईया बधाई रचना बर
ReplyDeleteदुर्गा भईया बधाई रचना बर
ReplyDeleteबहुत खूब सर
ReplyDeleteवाह वाह बहुत बढ़िया लाजवाब भैया 👏👏👏👏
ReplyDeleteबहुत खूब।सुंदर सवैया
ReplyDeleteजतका बड़ाई करे जाय कम हे दुर्गा भैया
ReplyDeleteजबरदस्त सर जी
ReplyDeleteबहुत सुग्घर मत्तगयंद सवैया सर
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