श्री मनीराम साहू के दोहा
भउजी के जी रंधनी, अड़बड़ मन ला भाय।
चिक्कन चाँदन हे दिखत,चुल्हा हवय लिपाय।।
माँजे धोये हे रखे,थारी संग गिलास।
बटकी माली तीर मा,जम्मो हा फुलकाँस।।
करछुल झारा अउ डुवा,हे चक बाँगा स्टील।
जम्मो माढ़े पाट मा,कोन्टा लोढ़ा सील।।
गंज कराही तोपना, पयनाहा टंगाय।
हँउला मा पानी भरे,बटलोही तोपाय।।
शौचालय बनवाव जी,लोटा धर झन जाव।
चारों कोती स्वच्छता,दिखही जम्मो गाँव।।
लोटा मा पानी रखय,पीढ़ा मा बइठाय।
छत्तीसगढ़िन हाँस के, पहुना ला परघाय।।
लोटा मा पानी धरे,बाट देखहूँ तोर।
मोला तीजा लेगबे,आबे भाई मोर।।
लोटा टठिया बेच के,लइका जेन पढ़ाय।
उही ददा-दाई हरय,भीख माँग अब खाय।।
संसो झन कर थोरको,रखहूँ दीदी ध्यान।
रहिबे जोर-जँगार के, आहूँ आठे मान।।
राँपा गैंती धर चलय,मुँधराहा ले खार।
आवय खन्ती कोड़ के,होवय जब मुँधियार।।
कका डीपरा ला खनय,देवय झउहाँ जोर।
काकी लेगय बोह के,रचय मेड़ के कोर।।
अक्ती हरय किसान के,शुरु दिन खेती साल।
कोल्लर गाड़ी बाँध गा,देबो खातू पाल।।
आरी पुटहा देख ले,बरही जुड़ा लान।
जोेता ला तैं ला लगा,पिँजरी देख बँधान।।
राँपा झउहाँ ला घलो, गाड़ी मा चल जोर।
खाही बइला तान के, भूँसा ला तैं बोर।।
रचनाकार - मनीराम साहू "मितान"
कचलोन(सिमगा)
छत्तीसगढ़
भउजी के जी रंधनी, अड़बड़ मन ला भाय।
चिक्कन चाँदन हे दिखत,चुल्हा हवय लिपाय।।
माँजे धोये हे रखे,थारी संग गिलास।
बटकी माली तीर मा,जम्मो हा फुलकाँस।।
करछुल झारा अउ डुवा,हे चक बाँगा स्टील।
जम्मो माढ़े पाट मा,कोन्टा लोढ़ा सील।।
गंज कराही तोपना, पयनाहा टंगाय।
हँउला मा पानी भरे,बटलोही तोपाय।।
शौचालय बनवाव जी,लोटा धर झन जाव।
चारों कोती स्वच्छता,दिखही जम्मो गाँव।।
लोटा मा पानी रखय,पीढ़ा मा बइठाय।
छत्तीसगढ़िन हाँस के, पहुना ला परघाय।।
लोटा मा पानी धरे,बाट देखहूँ तोर।
मोला तीजा लेगबे,आबे भाई मोर।।
लोटा टठिया बेच के,लइका जेन पढ़ाय।
उही ददा-दाई हरय,भीख माँग अब खाय।।
संसो झन कर थोरको,रखहूँ दीदी ध्यान।
रहिबे जोर-जँगार के, आहूँ आठे मान।।
राँपा गैंती धर चलय,मुँधराहा ले खार।
आवय खन्ती कोड़ के,होवय जब मुँधियार।।
कका डीपरा ला खनय,देवय झउहाँ जोर।
काकी लेगय बोह के,रचय मेड़ के कोर।।
अक्ती हरय किसान के,शुरु दिन खेती साल।
कोल्लर गाड़ी बाँध गा,देबो खातू पाल।।
आरी पुटहा देख ले,बरही जुड़ा लान।
जोेता ला तैं ला लगा,पिँजरी देख बँधान।।
राँपा झउहाँ ला घलो, गाड़ी मा चल जोर।
खाही बइला तान के, भूँसा ला तैं बोर।।
रचनाकार - मनीराम साहू "मितान"
कचलोन(सिमगा)
छत्तीसगढ़
बधाई मनीराम जी।सुग्घर दोहा।
ReplyDeleteबड़े भइया जी बड़ सुग्घर दोहालरी।
ReplyDeleteगुरुदेव ला सादर नमन आप सब ला धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सृजन सर।सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सृजन सर।सादर बधाई
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह।बड़ सुग्घर दोहावली। मनी राम साहू जी ला हार्दिक शुभकामना।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दोहावली,मनीराम भैया। बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दोहावली,मनीराम भैया। बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना।
ReplyDeleteगाँव गँवई के सुग्घर चित्रण मितानजी
ReplyDeleteगाँव गँवई के सुग्घर चित्रण मितानजी
ReplyDeleteहमर गाँव गवई के रीत परम्परा ल दोहा के माध्यम से बड़ सुघ्घर सिरजन।बधाई हो मनीराम जी।।
ReplyDeleteहमर गाँव गवई के रीत परम्परा ल दोहा के माध्यम से बड़ सुघ्घर सिरजन।बधाई हो मनीराम जी।।
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर दोहावली हे भाई मनी
ReplyDeleteबधाई हो
वाह्ह्ह्ह्ह् मनी भइया सुंदर दोहावली
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर दोहा मनीराम भाई बधाई हो आप ल
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर दोहा मनीराम भाई बधाई हो आप ल
ReplyDeleteसुघ्घर दोहा भईया जी
ReplyDeleteबड़ सुग्घर दोवावली मनीराम भैया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहा मनीराम भैया
ReplyDelete