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Wednesday, September 20, 2017

विधान, दोहा छन्द - अरुण कुमार निगम

विधान, दोहा छन्द - अरुण कुमार निगम

बन्दौं  गनपति  सरसती, माँगौं  किरपा  छाँव
ग्यान अकल बुध दान दौ, मँय अड़हा कवि आँव |

जुगत करौ अइसन कुछू, हे गनपति गनराज
सत् सहित मा बूड़ के , सज्जन बने समाज

रुनझुन बीना हाथ मा, बाहन हवे मँजूर
जे सुमिरै माँ सारदा, ग्यान मिलै भरपूर

लाडू  मोतीचूर  के , खावौ  हे गनराज
सबद भाव वरदान मा, हमला देवौ आज

हे सारद हे सरसती , माँगत हौं वरदान
सबल होय छत्तीसगढ़ , भाखा पावै मान

दोहा छन्द के विधान - 

डाँड़ (पद) - , ,चरन -  
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरन मा, बड़कू,नान्हें (,)
हर डाँड़ मा कुल मातरा२४ , बिसम चरन मा मातरा१३, सम चरन मा मातरा- ११
यति / बाधा१३, ११ मातरा मा , खास- बिसम चरन के सुरु मा जगन मनाही.
बिसम चरन  के आखिर मा सगन, रगन या नगन या नान्हें,बड़कू(,)
सम चरन  के आखिर मा बड़कू,नान्हें (,)

पहिली डाँड़ (पद)
बन्दौं         गनपति        सरसती-        बिसम चरन
(२+२)+(१+१+१+१)+(१+१+१+२) = १३
माँगौं       किरपा      छाँव -                     सम चरन   
(२+२)+(१+१+२)+(२+१) = ११
दूसर डाँड़ (पद)
ग्यान       अकल       बुध        दान     दौ         बिसम चरन 
(२+१)+(१+१+१)+(१+१)+(२+१)+(२) = १३
मँय।        अड़हा       कवि    आँव-           सम चरन   
(१+१)+(१+१+२)+(१+१)+(२+१) = ११

बिसम चरन के आखिर मा पहिली डाँड़ मा रसती (सगन ११२) अउ सम चरन के आखिर मा दूसर डाँड़ मा दान दौ (रगन २१२) आय हे.
तुकांत- दू-दू डाँड़ के आखिर मा (छाँव / आँव) माने सम-सम चरन मा, बड़कू,नान्हें (,)


सहर  गाँव मैदानला, चमचम  ले  चमकाव
गाँधी जी के सीखला , भइया  सब अपनाव ||

लख-लख ले अँगना दिखै, चम-चम तीर-तखार
धरौ   खराटा   बाहरी,  आवौ    झारा  -   झार ||

भारत भर - मा चलत हवै , सफई के अभियान
जुरमिल करबो साफ हम , गली  खोर खलिहान ||
 
आफिस  रद्दा  कोलकी  ,  घर  दुकान  मैदान
रहैं साफ़सुथरा सदा, सफल होय अभियान ||

साफ - सफाई   धरम  हे , एमा  कइसन  लाज
रहै  देस - मा स्वच्छता, सुग्घर स्वस्थ समाज ||
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

19 comments:

  1. अनुपम दोहा सृजन गुरुदेव
    विधान के साथ
    आज आपके मेहनत के वटवृक्ष फलत फुलत हे गुरुदेव
    बहुत सुघ्घर
    कोटिशः नमन गुरुदेव

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  2. बड़ सुघ्घर दोहावली गुरुदेव!! नमन।।

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  3. बड़ सुघ्घर दोहावली गुरुदेव!! नमन।।

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  4. गुरुदेव सादर नमन , आपके भागीरथ प्रयास जरूर सफल होही ,
    सुग्घर दोहावली

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  5. बहुँत बढ़िया गुरुदेव

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  6. बहुँत बढ़िया गुरुदेव

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  7. बहुत ही बढ़िया रचना गुरुदेव

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  8. जबरदस्त दोहावली गुरुदेव।सँग मा विधान घलो हे जेमा रूचि होही जरूर सीखे के प्रयास करही।

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  9. बहतेच सुन्दर दोहावली गुरुदेव प्रणाम।

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  10. सुन्दर भाव धरे अनुपम दोहावली सँगे सँग दोहा के विधान।माने हर तरह के पाठक बर अनमोल गुरु ज्ञान।सादर चरण वंदन गुरुदेव।

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  11. मात्रिक छंद के नेंव दोहा छंद के विधान अउ मात्राबाट सहित अनुकरणीय दोहावली(वंदना अउ स्वच्छता के दोहा)हे ,गुरुदेव।बधाई के संग सादर चरण वंदन।

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  12. कोटि कोटि प्रणाम गुरुदेव। विधान के संग अनुपम दोहावली। छन्द के छ परिवार आपके देखाये रद्दा मा चलके छन्द के साधना करत हावन जेकर मीठा फल मिलत हावय। सदा आपके आसीस मिलते राहय।

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  13. उत्कृष्ट दोहावली गुरुदेव सादर नमन

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  14. उत्कृष्ट दोहावली गुरुदेव सादर नमन

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  15. गुरूदेव आपके दोहा छंद के शब्द सयोजन उत्कृष्ट बहुत सुघ्घर रचना गुरूदेव सादर प्रणाम

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  16. बहुत सुघ्घर गुरुदेव,अमृत वचन सर जी।।

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  17. बहुत सुग्घर दोहावली गुरुदेव।सादर बधाई,सादर चरण वन्दन

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  18. बहुत सुग्घर दोहावली गुरुदेव।सादर बधाई,सादर चरण वन्दन

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  19. गजब सुघर प्रयास हे। आपके उदिम के प्रकाश हा अवइया छत्त्तीसगढ़ी साहित्य जगद बर आगसदिया साबित होही।

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