विधान, दोहा छन्द - अरुण कुमार निगम
बन्दौं गनपति सरसती, माँगौं किरपा छाँव
ग्यान अकल बुध दान दौ, मँय अड़हा कवि आँव |
जुगत करौ अइसन कुछू, हे गनपति गनराज
सत् सहित मा बूड़ के , सज्जन बने समाज
रुनझुन बीना हाथ मा, बाहन हवे मँजूर
जे सुमिरै माँ सारदा, ग्यान मिलै भरपूर
लाडू मोतीचूर के , खावौ हे गनराज
सबद भाव वरदान मा, हमला देवौ आज
हे सारद हे सरसती , माँगत हौं वरदान
सबल होय छत्तीसगढ़ , भाखा पावै मान
दोहा छन्द के विधान -
डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४
तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरन मा, बड़कू,नान्हें (२,१)
हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ , बिसम चरन मा मातरा – १३, सम चरन मा मातरा- ११
यति / बाधा – १३, ११ मातरा मा , खास- बिसम चरन के सुरु मा जगन मनाही.
बिसम चरन के आखिर मा सगन, रगन या नगन या नान्हें,बड़कू(१,२)
सम चरन के आखिर मा बड़कू,नान्हें (२,१)
पहिली डाँड़ (पद)
बन्दौं गनपति सरसती- बिसम चरन
(२+२)+(१+१+१+१)+(१+१+१+२) = १३
(२+२)+(१+१+१+१)+(१+१+१+२) = १३
माँगौं किरपा छाँव - सम चरन
(२+२)+(१+१+२)+(२+१) = ११
(२+२)+(१+१+२)+(२+१) = ११
दूसर डाँड़ (पद)
ग्यान अकल बुध दान दौ बिसम चरन
(२+१)+(१+१+१)+(१+१)+(२+१)+(२) = १३
(२+१)+(१+१+१)+(१+१)+(२+१)+(२) = १३
मँय। अड़हा कवि आँव- सम चरन
(१+१)+(१+१+२)+(१+१)+(२+१) = ११
(१+१)+(१+१+२)+(१+१)+(२+१) = ११
बिसम चरन के आखिर मा पहिली डाँड़ मा “रसती” (सगन ११२) अउ सम चरन के आखिर मा दूसर डाँड़ मा “दान दौ” (रगन २१२) आय हे.
तुकांत- दू-दू डाँड़ के आखिर मा (छाँव / आँव) माने सम-सम चरन मा, बड़कू,नान्हें (२,१)
सहर गाँव मैदान – ला, चमचम ले चमकाव
गाँधी जी के सीख – ला , भइया सब अपनाव ||
लख-लख ले अँगना दिखै, चम-चम तीर-तखार
धरौ खराटा बाहरी, आवौ झारा - झार ||
भारत भर - मा चलत हवै , सफई के अभियान
जुरमिल करबो साफ हम , गली खोर खलिहान ||
आफिस रद्दा कोलकी , घर दुकान मैदान
रहैं साफ़ – सुथरा सदा, सफल होय अभियान ||
साफ - सफाई धरम हे , एमा कइसन लाज
रहै देस - मा स्वच्छता, सुग्घर स्वस्थ समाज ||
गाँधी जी के सीख – ला , भइया सब अपनाव ||
लख-लख ले अँगना दिखै, चम-चम तीर-तखार
धरौ खराटा बाहरी, आवौ झारा - झार ||
भारत भर - मा चलत हवै , सफई के अभियान
जुरमिल करबो साफ हम , गली खोर खलिहान ||
आफिस रद्दा कोलकी , घर दुकान मैदान
रहैं साफ़ – सुथरा सदा, सफल होय अभियान ||
साफ - सफाई धरम हे , एमा कइसन लाज
रहै देस - मा स्वच्छता, सुग्घर स्वस्थ समाज ||
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़
अनुपम दोहा सृजन गुरुदेव
ReplyDeleteविधान के साथ
आज आपके मेहनत के वटवृक्ष फलत फुलत हे गुरुदेव
बहुत सुघ्घर
कोटिशः नमन गुरुदेव
बड़ सुघ्घर दोहावली गुरुदेव!! नमन।।
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर दोहावली गुरुदेव!! नमन।।
ReplyDeleteगुरुदेव सादर नमन , आपके भागीरथ प्रयास जरूर सफल होही ,
ReplyDeleteसुग्घर दोहावली
बहुँत बढ़िया गुरुदेव
ReplyDeleteबहुँत बढ़िया गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना गुरुदेव
ReplyDeleteजबरदस्त दोहावली गुरुदेव।सँग मा विधान घलो हे जेमा रूचि होही जरूर सीखे के प्रयास करही।
ReplyDeleteबहतेच सुन्दर दोहावली गुरुदेव प्रणाम।
ReplyDeleteसुन्दर भाव धरे अनुपम दोहावली सँगे सँग दोहा के विधान।माने हर तरह के पाठक बर अनमोल गुरु ज्ञान।सादर चरण वंदन गुरुदेव।
ReplyDeleteमात्रिक छंद के नेंव दोहा छंद के विधान अउ मात्राबाट सहित अनुकरणीय दोहावली(वंदना अउ स्वच्छता के दोहा)हे ,गुरुदेव।बधाई के संग सादर चरण वंदन।
ReplyDeleteकोटि कोटि प्रणाम गुरुदेव। विधान के संग अनुपम दोहावली। छन्द के छ परिवार आपके देखाये रद्दा मा चलके छन्द के साधना करत हावन जेकर मीठा फल मिलत हावय। सदा आपके आसीस मिलते राहय।
ReplyDeleteउत्कृष्ट दोहावली गुरुदेव सादर नमन
ReplyDeleteउत्कृष्ट दोहावली गुरुदेव सादर नमन
ReplyDeleteगुरूदेव आपके दोहा छंद के शब्द सयोजन उत्कृष्ट बहुत सुघ्घर रचना गुरूदेव सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर गुरुदेव,अमृत वचन सर जी।।
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दोहावली गुरुदेव।सादर बधाई,सादर चरण वन्दन
ReplyDeleteबहुत सुग्घर दोहावली गुरुदेव।सादर बधाई,सादर चरण वन्दन
ReplyDeleteगजब सुघर प्रयास हे। आपके उदिम के प्रकाश हा अवइया छत्त्तीसगढ़ी साहित्य जगद बर आगसदिया साबित होही।
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