सार छंद- मीता अग्रवाल
गउ माता
काम काज अउ गुण ले सिरजव,करलव मन मा वादा।
ऐती वोती भटकव झन जी,राखव जिनगी सादा।।
किरिया गउ किन झन खाहू गा, गउ हे हमरे माता।
दाई पाछू सब ले पहिली,गउ हे जिनगी दाता।।
हर घर राखव गउ ला भैया,गउ मा देव बिराजे।
दही मही अउ घीव लेवना ,लछमी घर मा साजे।।
गउधन घर कोठा मा रहिथे,बहिथे अमरित धारा।
बाढय मति हा सेवा करके,पुण्य कमाबे झारा।।
गउधन ला बडका धन माने,जम्मो छत्तीसगढ़िया।
खान पान अउ रहन सहन ला, राखव सादा बढ़िया ।।
(2) जिनगी संगी
छमछम छमछम बजे ताल जी, गोड़ पैजनी सोहे।
छुनुर छुनुर छन पैरी बाजे, मन ला मोरे मोहे।।
बिछिया माहुर लालआलता,लुगरा लाल किनारी।
कनिहा मटकत उज्जर गोरी,घूमय बन फुलवारी ।।
करधन खिनवा पुतरी सोहे ,नैना हे कजरारी ।
सेंदुर टिकुली माथ लगाये,मारय बाण कटारी।।
हाँसय बरसे फूल झरय जी,गुरतुर हावय बोली।
कतका सुग्घर गढ़े विधाता,बन जा तँय हमजोली।।
रूप रंगअउ गुन ले भर दे,जिनगी प्रान अधारा।
मोरे मन ला मोहे रानी,बन जिनगी ध्रुवतारा।।
छंदकार -डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक रायपुर छत्तीसगढ़
गउ माता
काम काज अउ गुण ले सिरजव,करलव मन मा वादा।
ऐती वोती भटकव झन जी,राखव जिनगी सादा।।
किरिया गउ किन झन खाहू गा, गउ हे हमरे माता।
दाई पाछू सब ले पहिली,गउ हे जिनगी दाता।।
हर घर राखव गउ ला भैया,गउ मा देव बिराजे।
दही मही अउ घीव लेवना ,लछमी घर मा साजे।।
गउधन घर कोठा मा रहिथे,बहिथे अमरित धारा।
बाढय मति हा सेवा करके,पुण्य कमाबे झारा।।
गउधन ला बडका धन माने,जम्मो छत्तीसगढ़िया।
खान पान अउ रहन सहन ला, राखव सादा बढ़िया ।।
(2) जिनगी संगी
छमछम छमछम बजे ताल जी, गोड़ पैजनी सोहे।
छुनुर छुनुर छन पैरी बाजे, मन ला मोरे मोहे।।
बिछिया माहुर लालआलता,लुगरा लाल किनारी।
कनिहा मटकत उज्जर गोरी,घूमय बन फुलवारी ।।
करधन खिनवा पुतरी सोहे ,नैना हे कजरारी ।
सेंदुर टिकुली माथ लगाये,मारय बाण कटारी।।
हाँसय बरसे फूल झरय जी,गुरतुर हावय बोली।
कतका सुग्घर गढ़े विधाता,बन जा तँय हमजोली।।
रूप रंगअउ गुन ले भर दे,जिनगी प्रान अधारा।
मोरे मन ला मोहे रानी,बन जिनगी ध्रुवतारा।।
छंदकार -डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक रायपुर छत्तीसगढ़
छंद खजाना मा सम्मिलित करे बर बहुत आभार आदरणीय गुरुदेव
ReplyDeleteवाह वाह ।बहुत ही शानदार रचना हे, आदरणीया ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे ।
ReplyDeleteवाह वाह बहुत सुग्घर छंद रचे हव। बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर सिरजन दीदी बधाई।
ReplyDeleteगउ माता के रक्षा करलव, कहा मान लौ मोरे भाई ।
चारा छइहा पानी दे दौ ,झन मारव मत बनौ कसाई।।
बहुते सुग्घर सार छन्द हे दीदी जी, बधाई💐💐💐🙏🏻
ReplyDeleteगजब सुग्घर रचना दीदी
ReplyDeleteगजब सुग्घर रचना दीदी
ReplyDeleteबहुते सुघ्घर रचना मन हे बहिनी
ReplyDeleteवाह्ह वाह वाह्ह दीदी अब्बडे सुग्घर भावपूर्ण सार छंद बधाई दीदी 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना दीदी
ReplyDeleteसुग्घर सार छंद बर बधाई
ReplyDeleteसुग्घर सार छंद
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
बहुत बढ़िया रचना बधाई हो
ReplyDeleteमहेन्द्र देवांगन माटी
बहुत बढ़िया सृजन बर बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत बधाई
ReplyDeleteआप सब्बो उत्साहवर्धन करइया छंदप्रेमी मन ला हदयतल ले आभार आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सार छंद के सृजन करे हस मीताअग्रवाल बहिनी बहुत अकन बधाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय दीदी
Deleteवाहहह!वाहह!बड़ सुग्घर
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