सार छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
।। अइसन कलजुग आही ।।
साधु संत मन कहि गय भइया, अइसन कलजुग आही।
मनखे गिद्धा सही माँस ला, चीथ - चीथ के खाही।।
खाना - पीना नइ चाही जी, तेला सबझन खाही।
बेद पुरान ल मानय नाही, राज झूठ के आही।।
मार - काट अतका बढ़ जाही, नदिया खून बहाही।
नइ होवय भगवान घलो कहि, अँगठी सबो उठाही।
सास ससुर के सुनही बेटा, बाप ल अपन ठठाही।
भजन गीत ला नइ गावय जी, डिस्को गाना गाही।। ।।
बहू पहिन के सूट बूट ला, घुमही दुनिया भर ला।
लइका रोहन - बोहन रइही, बेटा रखही घर ला।। ।।
जेहा सबले ताकत वाला, ओहा राज चलाही।
नियम - कायदा नइ रइही जी, मनमौजी हो जाही।।
पापी मन के बात मानही, धरमी ला अलगाही।
पाप - पुण्य नइ होवय कइके, गंदा करम रचाही।।
हाथ जोड़ "जलक्षत्री" बोलय, कोनो बुरा न मानौ।
ये कलजुग के हाल - चाल हा, नइ हे पूरा जानौ।।
छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा - नेवरा)
जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
।। अइसन कलजुग आही ।।
साधु संत मन कहि गय भइया, अइसन कलजुग आही।
मनखे गिद्धा सही माँस ला, चीथ - चीथ के खाही।।
खाना - पीना नइ चाही जी, तेला सबझन खाही।
बेद पुरान ल मानय नाही, राज झूठ के आही।।
मार - काट अतका बढ़ जाही, नदिया खून बहाही।
नइ होवय भगवान घलो कहि, अँगठी सबो उठाही।
सास ससुर के सुनही बेटा, बाप ल अपन ठठाही।
भजन गीत ला नइ गावय जी, डिस्को गाना गाही।। ।।
बहू पहिन के सूट बूट ला, घुमही दुनिया भर ला।
लइका रोहन - बोहन रइही, बेटा रखही घर ला।। ।।
जेहा सबले ताकत वाला, ओहा राज चलाही।
नियम - कायदा नइ रइही जी, मनमौजी हो जाही।।
पापी मन के बात मानही, धरमी ला अलगाही।
पाप - पुण्य नइ होवय कइके, गंदा करम रचाही।।
हाथ जोड़ "जलक्षत्री" बोलय, कोनो बुरा न मानौ।
ये कलजुग के हाल - चाल हा, नइ हे पूरा जानौ।।
छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा - नेवरा)
जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
बहुत सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भैया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteकलजुग के गोठ,गजब हावय पोठ
ReplyDeleteबधाई
कलजुग के वास्तविकता भरे रचना,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना मैय्या जी, बस तीसरा छन्द के दूसर चरण "नदियाँ खून बोहाही" मा 13 मात्रा हे।
ReplyDeleteकलयुग के दुर्दशा के अद्धभुत बखान
ReplyDeleteवाहहह!सुग्घर रचना
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