सार छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - रोजगार
रोजगार मिलना मुसकुल हे, नव पीढ़ी ला भइया।
इहाँ ठेलहा घूमत रहिथें, कतको पढ़े लिखइया।।
डिगरी धर के बइठे रहिथें, कहाँ नौकरी पाथें।
टूट जथे जब उनकर सपना, काम ठियाँ मा जाथें।।
उनकर सुनवाई होथे गा, जेमन पइसा ढिलथें।
इहाँ सिफारिश वाला मन ला, आज नौकरी मिलथें।।
रोजगार गा मिले सबो ला, ये उदीम कब होथे।
खुद सन ये अन्याव देख के, नव पीढ़ी हा रोथे।।
सबो हाथ ला काम मिले अब, अइसे होना चाही।
बइठे हन उम्मीद लगा के, नवा बिहिनिया आही।।
विषय - जनसंख्या
जनसंख्या बड़ बाढ़त हावय, कमती हे संसाधन।
अलकरहा उपयोग करत हे, बिन सोचे मनखेमन।।
बेटा के चाहत मा मनखे, जब परिवार बढ़ाथे।
बाढ़ जथे जब घर के खर्चा, तब अब्बड़ पछताथे।।
बेटी ला बेटा कस मानयँ, झन परिवार बढ़ावयँ।
पढ़ा लिखा के सुग्घर उनकर, जिनगी घला बनावयँ।।
कहाँ मिलत हे रोजगार गा, जनसंख्या के सेती।
बेचावत घर-द्वार सबो के, कम होगे हे खेती।।
काबू मा रइही जनसंख्या, जाग जही तब सबझन।
अउ अपनाही मनखे मन हा, जब परिवार नियोजन।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
विषय - रोजगार
रोजगार मिलना मुसकुल हे, नव पीढ़ी ला भइया।
इहाँ ठेलहा घूमत रहिथें, कतको पढ़े लिखइया।।
डिगरी धर के बइठे रहिथें, कहाँ नौकरी पाथें।
टूट जथे जब उनकर सपना, काम ठियाँ मा जाथें।।
उनकर सुनवाई होथे गा, जेमन पइसा ढिलथें।
इहाँ सिफारिश वाला मन ला, आज नौकरी मिलथें।।
रोजगार गा मिले सबो ला, ये उदीम कब होथे।
खुद सन ये अन्याव देख के, नव पीढ़ी हा रोथे।।
सबो हाथ ला काम मिले अब, अइसे होना चाही।
बइठे हन उम्मीद लगा के, नवा बिहिनिया आही।।
विषय - जनसंख्या
जनसंख्या बड़ बाढ़त हावय, कमती हे संसाधन।
अलकरहा उपयोग करत हे, बिन सोचे मनखेमन।।
बेटा के चाहत मा मनखे, जब परिवार बढ़ाथे।
बाढ़ जथे जब घर के खर्चा, तब अब्बड़ पछताथे।।
बेटी ला बेटा कस मानयँ, झन परिवार बढ़ावयँ।
पढ़ा लिखा के सुग्घर उनकर, जिनगी घला बनावयँ।।
कहाँ मिलत हे रोजगार गा, जनसंख्या के सेती।
बेचावत घर-द्वार सबो के, कम होगे हे खेती।।
काबू मा रइही जनसंख्या, जाग जही तब सबझन।
अउ अपनाही मनखे मन हा, जब परिवार नियोजन।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
गजब सुग्घर सर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत सुग्घर सर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteवाह अति सुन्दर सर जी । बधाई हो
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर हे भाई
ReplyDeleteसार छंद
हार्दिक आभार
Deleteबहुत बढ़िया सृजन
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना भाई
ReplyDeleteबधाई
हार्दिक आभार
Deleteबहुत बढ़िया रचना सर जी
ReplyDeleteबधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
हार्दिक आभार
Deleteबड़ सुग्घर सृजन सर जी
ReplyDeleteबधाई हो.....
हार्दिक आभार
Deleteबहुल सुग्घर सार छंद
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुल सुग्घर सार छंद
ReplyDeleteवाह-वाह
ReplyDeleteशानदार भाई
हार्दिक आभार
Deleteसुग्घर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteशानदार रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुतेच सुग्घर सार छंद हे।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसिरतोन कहत हव चन्द्राकर भइया अब्बड़ सुग्घर सन्देश देवत सार छंद भइया बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबढिया रचना के लिए बधाई अच्छा संदेश
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Delete