सार छंद-डॉ तुलेश्वरी धुरंधर
(1)
मइके सुन्ना होगे दाई, जब तँय आँखी मूँदे।
जिनगी हा अँधियार लगय ओ,कबके अँगना खूँदे।।
तोर छाँव नइ पाँवव दाई, मन ला का समझाहूँ।
आवय सुरता रहि रहि के ओ,ममता कइसे पाहूँ।।
(2)
सुरता मा बहिनी मन के जी,पथरा जाथे आँखी।
भाई बहिनी के तिहार ये,सुघ्घर बाँधव राखी।।
रद्दा जोहत रहिथे भाई, ये दिन हा कब आही।
बाँध हाथ मा राखी बहिनी,बइठ मिठाई खाही।।
(3)
कबके तोला देखे हावँव,सुरता आथे तोरो।
भेजत हावँव राखी भाई, लेबे आरो मोरो।
रोना लड़ना बचपन भाई, रहि रहि सुरता आथे।
सुघ्घर परब ला भाई बहिनी,मिल जुल संग मानथे।
बाँध हाथ मा राखी बहिनी, रक्षा कवच बनाथे।।
खवा मिठाई मुँह गुरतुर कर,अड़बड़ मया लुटाथे।।
सबके सुरता आथे मोला, ददा भतीजा दाई।
जियत भर के बंधन ऐसे,छूटय नही ग भाई।
छन्द लेखिका- डॉ तुलेश्वरी धुरंधर।
अर्जुनी , बलोदाबाज़ार
(1)
मइके सुन्ना होगे दाई, जब तँय आँखी मूँदे।
जिनगी हा अँधियार लगय ओ,कबके अँगना खूँदे।।
तोर छाँव नइ पाँवव दाई, मन ला का समझाहूँ।
आवय सुरता रहि रहि के ओ,ममता कइसे पाहूँ।।
(2)
सुरता मा बहिनी मन के जी,पथरा जाथे आँखी।
भाई बहिनी के तिहार ये,सुघ्घर बाँधव राखी।।
रद्दा जोहत रहिथे भाई, ये दिन हा कब आही।
बाँध हाथ मा राखी बहिनी,बइठ मिठाई खाही।।
(3)
कबके तोला देखे हावँव,सुरता आथे तोरो।
भेजत हावँव राखी भाई, लेबे आरो मोरो।
रोना लड़ना बचपन भाई, रहि रहि सुरता आथे।
सुघ्घर परब ला भाई बहिनी,मिल जुल संग मानथे।
बाँध हाथ मा राखी बहिनी, रक्षा कवच बनाथे।।
खवा मिठाई मुँह गुरतुर कर,अड़बड़ मया लुटाथे।।
सबके सुरता आथे मोला, ददा भतीजा दाई।
जियत भर के बंधन ऐसे,छूटय नही ग भाई।
छन्द लेखिका- डॉ तुलेश्वरी धुरंधर।
अर्जुनी , बलोदाबाज़ार
गजब सुग्घर दीदी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन हे तुलेश्वरी
ReplyDeleteसुन्दर सृजन दीदी जी
ReplyDeleteसुग्घर दीदी
ReplyDeleteसुग्घर बहिनी बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना बधाई
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