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Sunday, December 8, 2019

सार छंद - सुधा शर्मा



सार छंद - सुधा शर्मा
(1)
जघा जघा मा खुलगे हावे,देखव स॔ंगी दारू।
पीयत दिन भर होगे बइहा,माते नशा मा कारू।।
(2)
गारी देवत फोर फोर के,लाज शरम ला छोड़े।
मारा पीटी संग सुवारी,मूड़ी कान ला फोड़े।।
(3)
लइका इस्कुल जावत हावे,लादे पीठ म बोझा।
कोंवर लइकइ उमर बँधाये,किसिम किसिम के जोझा।।
(4)
मूड़ी बड़का पागा होगे,बेरा कइसन आगे।
धरे नवा रद्दा ला देखव,सपना पीछू भागे।।
(5)
धरती मात गुहार लगावै,बाढ़त मन के पीरा।
मनखे करनी बिगड़त हावे,काया परगे कीरा।।
(6)
धुवाँ अगासा पीयत आकुल,बिगड़े धरती काया।
देखत मनखे  अपन सुवारथ,काटे रुखवा छाया।।
(7)
जंगल झाड़ी उजड़त हावे,नँदिया तरिया रोवत।
पथरा परगे बुद्धि म मनखे,अपने सुख ला खोवत।।
(8)
रंग- रंग के होय बिमारी,होय जहर कस पानी।
भरत अन्न- पानी मा दवई,संकट में जिनगानी।।
(9)
झिल्ली ला झन बउरव कोनो,गइया मन सब खाथे।
मूक होय गउ माता  संगी,अपने मौत बलाथे।
(10)
धरती मइया के कोरा मा,साबूत ग रहि जाथे।
करे अन्न धन के नुकसानी,परिया खेत बनाथे।

छंदकारा- सुधा शर्मा
राजिम (छत्तीसगढ़)

6 comments:

  1. बहुत खूब सादर बधाई दीदी

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  2. बहुत सुन्दर दीदी जी । हार्दिक बधाई हो ।

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  3. बहुत सुन्दर दीदी जी । हार्दिक बधाई हो ।

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  4. बहुत बेहतरीन दीदी जी

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  5. बड़ सुग्घर सृजन से दीदी बधाई

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