सार छंद -श्री मति शशि साहू
झन बिसराबे भैया मोला, भेजत हावव राखी ।
कच्चा डोरी मा अरझे हे, हमर मया के साखी ।।
तोर सोर हर जग मा होवय, बाढ़े मान बडा़ई ।
पाँव गड़े झन काँटा खूँटी, मोर दुलरवा भाई ।
मिलय मान लोटा भर पानी, मुँह भर गुरतुर बोली।
अउ स्वारथ मा झन बँटाय गा, मन के कोठी डोली।।
बाँटत रहिबो सुख दुख मन के, जइसे बाँटन लाई।
अरझे धागा ला जिनगी के, सुलझा लेबो भाई ।
(खम्हर छट)
आज सबो खम्हर छट रहिबो, जुरमिल पूजा करबो,
सगरी के चारो खुँट बइठे, पतरी मा छट धरबो ।।
अँगना मा दू सगरी खनके, देव गणेश सुमरबो।
छै ठन कथा सुनन उपसहीन, छै दोना अन भरबो ।।
दूध दही घी पसहर चाउँर, हल षष्ठी तैयारी ।
मउहां पतरी छै ठन भाजी, संझा बेर बियारी ।।
(चिंतन)
पाप पुन्य के करम बधाँये, जिनगी ताना बाना।
यिही करम ले छूटे खातिर, पड़थे आना जाना।
थोरिक दिन के जिनगी हावय, थोकिन दिन के खेला।
फेर उसल तो जाथे संगी, जिनगी के ये मेला।।
जनम धरे हन जग मा संगी, रिश्ता नाता बाँधे ।
हांँसत रोवत जिनगी खपगे, भीतर सुख दुख धाँधे।।
सार छन्द
शशि साहू - - बाल्कोनगर कोरबा(छत्तीसगढ़)
गजब सुग्घर दीदी
ReplyDeleteगजब सुग्घर दीदी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीदी जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन
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