सार छंद -- श्री मोहन लाल वर्मा
विषय- बइला
करँव किसानी खेती बाड़ी,जाँगर टोर कमाके।
बनँव नगरिहा के साथी मँय,बइला नाँव धराके। 1।
कतको बादर गरजय चाहे,गिरय कराअउ पानी।
घाम ताव मा बूता करथँव,करँव नहीं मनमानी। 2।
धरती दाई के सेवा मा,बीत जथे जिनगानी।
खून-पछीना रोज बहाथँव,अइसन मोर कहानी। 3।
हिया तता के बोली-भाखा,मँय हा समझँव जानँव।
जे घर मा रहि खावँव पीयँव,मालिक ओला मानँव। 4।
जिहाँ मनावँय तीजा-पोरा,सुग्घर मान हरेली।
पूजँय मोला देव बरोबर,मनखें मन बरपेली। 5।
बड़ सुग्घर तँय करे विधाता,बइला रूप बनाके।
शिवशंकर के कहँय सवारी,मनखें सबो मनाके।6।
मोर सफल होगे जिनगानी,ये दुनिया मा आके।
परमारथ मा उमर पहागे,संगत बढ़िया पाके।7।
जब-जब जनम धरँव भुइँया मा,इही रूप ला पावँव।
"मोहन"सुख संजोये अंतस,भाग अपन सँहरावँव।8।
रचनाकार :- मोहन लाल वर्मा
पता :- ग्राम-अल्दा,पो.आ.-तुलसी
(मानपुर),व्हाया-हिरमी,विकास खंड-तिल्दा, जिला-रायपुर(छत्तीसगढ़)पिन कोड-493195
विषय- बइला
करँव किसानी खेती बाड़ी,जाँगर टोर कमाके।
बनँव नगरिहा के साथी मँय,बइला नाँव धराके। 1।
कतको बादर गरजय चाहे,गिरय कराअउ पानी।
घाम ताव मा बूता करथँव,करँव नहीं मनमानी। 2।
धरती दाई के सेवा मा,बीत जथे जिनगानी।
खून-पछीना रोज बहाथँव,अइसन मोर कहानी। 3।
हिया तता के बोली-भाखा,मँय हा समझँव जानँव।
जे घर मा रहि खावँव पीयँव,मालिक ओला मानँव। 4।
जिहाँ मनावँय तीजा-पोरा,सुग्घर मान हरेली।
पूजँय मोला देव बरोबर,मनखें मन बरपेली। 5।
बड़ सुग्घर तँय करे विधाता,बइला रूप बनाके।
शिवशंकर के कहँय सवारी,मनखें सबो मनाके।6।
मोर सफल होगे जिनगानी,ये दुनिया मा आके।
परमारथ मा उमर पहागे,संगत बढ़िया पाके।7।
जब-जब जनम धरँव भुइँया मा,इही रूप ला पावँव।
"मोहन"सुख संजोये अंतस,भाग अपन सँहरावँव।8।
रचनाकार :- मोहन लाल वर्मा
पता :- ग्राम-अल्दा,पो.आ.-तुलसी
(मानपुर),व्हाया-हिरमी,विकास खंड-तिल्दा, जिला-रायपुर(छत्तीसगढ़)पिन कोड-493195
वाह वाह बहुत बढ़िया सृजन। बहुत बधाई उत्तम लेखनकर्म बर
ReplyDeleteवाह गुरुदेव बहुत सुग्घर
ReplyDeleteवाह मोहन भाई सुग्घर
ReplyDeleteबहुते सुग्घर लगिसे गुरुदेव
ReplyDeleteअति सुघ्घर सृजन भाई मोहन
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना सर
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर सिरजन सर जी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना भैया जी ।
ReplyDeleteबैला के सुघ्घर स्वरूप के बरनन करे हव गुरुजी। बहुत शानदार रचना।
ReplyDeleteअति सुग्घर सर जी बधाई हो
ReplyDeleteवाह्ह वाह वाह्ह भइया अब्बड़ सुग्घर भावपूर्ण सार छंद भइया
ReplyDeleteBahut badhit bhaiya ji
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर जी हार्दिक बधाई हो
ReplyDeleteसुग्घर छंद, मोहन भाई
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ReplyDeleteबहुत सुग्घर सर जी हार्दिक बधाई हो
किसान के संगवारी अऊ किसान के मितान हरे ।
ReplyDeleteमोर बर तो ये बईला, सउहे भगवान हरे ।।
गुरूदेव आपके रचना हमर गाँव ल एक अलग पहचान देथे
आगामी रचना के अगोरा मा
अनंत बधाई भाई,किसान भाई के सुग्घर बखान👍👌💐💐👏👏👏
ReplyDeleteबहुत बढ़िया मोहन भाई।
ReplyDeleteबिकट बढ़िया गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteगजब सुग्घर ।बधाई मोहन जी ।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर सृजन भाई जी आप ला बहुत बहुत बधाई हो
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाई। सुग्घर सार छंद
ReplyDeleteबइला बनके मै मरँव मिटँव ,धरती दाई तोरे कोरा।
देव बरोबर महूँ पूजाथँव,हर साल परब तीजा पोरा।।
बहुतेच सुघ्घर गुरूदेव
ReplyDeleteअति सूघ्घर गुरुजी 👌👌🌹
ReplyDeleteसुग्घर रचना बधाई
ReplyDeleteगजब भैया जी
ReplyDeleteखेती बाड़ी,नांगर बइला के बड़ सुग्घर ढंग ले बखान करे बर आप ला बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर छन्द रचना गुरुजी🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐
ReplyDeleteबेहतरीन गुरूदेव सादर बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन गुरूदेव सादर बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन गुरूदेव सादर बधाई
ReplyDeleteवाहहह!बड़ सुग्घर रचना सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुग्घर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया महोदय।सुग्घर लागिस आपके छंद हा
ReplyDeleteBhut badiya bhaiji
ReplyDeleteसुग्घर रचना बधाई
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर
ReplyDeleteशानदार, गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना बधाई हो
ReplyDeleteअब्बड़ सुघ्घर रचना गुरुदेव,हार्दिक बधाई
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