सार छंद -केवरा यदु "मीरा"
सुरता आथे दाई तोरे, कइसे मोला छोड़े।
तोर दुलौरिन बेटी आवँव, काबर नाता तोड़े ।।
ऐती ओती खोजत हावौं,तोला काँहा पाहूँ ।
सुरता हा आथे दाई वो, सुररत मैं मर जाहूँ।।
भाई बहिनी कोनो नइये, दुख ला कहाँ बतावौं ।
कइसे कटही जिनगी दाई,सोचत बइठे हावौं ।।
कोनो नइतो दिखथे दाई, मोरो आज सहारा ।
तोर गये ले नाता गोता, कर गै लिहिन किनारा।।
बहिनी रहितिस त जातेंव मँय,भाई घलोक आतिस ।
बरा बोबरा अउ सोहारी, बइठ मोर घर खातिस ।।
ददा जियत रहितिस दाई ओ, धीरज आज बँधातिस।
रहितेंव बछर भर जावत मँय,वहू मोर घर आतिस।।
छंदकारा:-
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
सुग्घर रचना दीदी
ReplyDeleteसुग्घर रचना दीदी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीदी जी। बधाई हो
ReplyDeleteबहुत सुग्घर सृजन दीदी जी। बधाई💐💐🙏
ReplyDeleteबढ़िया छंंद दीदी
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