सार छंद:-कौशल कुमार साहू
तिंवरा भाजी
कोंवर-कोंवर तिंवरा भाजी,सबके मन ला भाथे।
हरियर-हरियर देख देख के,हमरो मन ललचाथे।।
रद्दा रेंगत कतको संगी,टोर-टोर के खाथे।
उत्ता-धुर्रा भर भर ओली,लुका लुका के लाथे।।
सुकसा करथे पर्रा पर्रा, फुदका बने मिठाथे।
कुड़हा कुड़हा किलो बाट मा,हटरी मा बेंचाथे।।
लाथे भइया झोला झोला भर भर, भउजी मया जताथे।
गुरतुर भाजी गुरतुर बोली, सुन भइया सुख पाथे।।
सुख्खा मिरचा के फोरन मा,तरकारी ममहाथे।
लागय नहीं दार दरहन जी,आगर भात खवाथे।।
सफ्फा करथे पेट बरोबर, भोजन बने पचाथे।
तिंवरा भाजी हे गुनकारी, कौशल महिमा गाथे।।
सार छंद:-कौशल कुमार साहू
ग्राम/पोस्ट:- सुहेला(फरहदा)
जिला:-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़
बहुत सुन्दर सर जी । बधाई हो
ReplyDeleteवाह वाह ।बेहतरीन रचना ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे आदरणीय ।
ReplyDeleteजबरजस्त मनभावन रचना
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