संत शिरोमणि बाबा घासीदास जयंती विशेष छंदबद्ध कविता
: *मानव समाज बर संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा जी के अमर कुछ संदेश * दोहा छंद* मा
*मनखे हर मखने रहे, छोड़े सबो कलेश।*
*जग ला राह दिखाय बर, घासी के संदेश।।*
1. *सतनाम को मानो*
सुग्घर सबले सार हे, जग मा जी सतनाम।
सत के रद्दा जे चलय, बन जय बिगड़े काम।।
2. *मूर्ति पूजा मत करो*
दाई बाबू देव हे, खोजव झन भगवान।
मन के जाला झार रख, मूरत अंतस मान।।
3.*जाति-पाति के प्रपंच से दूर रहो*
ऊॅंच नीच के भेद ला, मूरख मन छोड़।
प्रभु के हम संतान सब, मीत मया रख जोड़।।
4.*मॉंसाहार मत करो जीव हत्या मत करो*
जेवन जेवव जीव झन, बनके मॉंसाहार।
प्राकृति सम सुग्घर रखे, खुशी रहे संसार।।
5. पर स्त्री को माता मानो*
सरग बरोबर मातु के, हावै अॅंचरा छॉंव।
नारी के सम्मान ले, उज्जर रहिथे ठॉंव।।
6.*मदिरा सेवन मत करो*
पीयव झन दारू कभू, उजरे घर परिवार।
कुकुर सरी जिनगी रहे, बने सबो बर भार।।
7.*अपरान्ह खेत में मत जाओ*
जोत मझनिया खेत झन, थोड़कनी सुरताव।
बइला सॅंग सॅंग देह ला, छइॅंहा बइठ जुड़ाव।।
*मानव समाज बर संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा जी के अमरित बानी के कुछ संदेश * चौपाई छंद* मा
1. अमरित बानी
*सत्य ही मानव का आभूषण है*
घासी बाबा हावै कहना, सत्य नाम के पहिरव गहना।
हिरदे मा सतनाम बसाले, जाये के तॅंय राह बनाले।।
2. अमरित बानी
*मानव मानव एक समान*
मनखे मनखे सम तुम जानौ,भेद भाव झिन मन मा लानौ।।
बॉंटव समता भाई चारा, जात पात ला मेटव सारा।।
3. अमरित बानी
*गुरु बनाये जान के पानी पीये छान के*
अइसन गुरु के लेवल दीक्षा, करनी जेकर देवय शिक्षा।
करे अशिक्षा दुरिहा गुरुवर, मन मा भाव जगावय सुग्घर।।
4. अमरित बानी
*हीन भावना मन से हटाये*
ऊॅंच नीच के भेद ल छोड़व, धरम करम ले रिस्ता जोड़व।।
सार जगत मा करनी जानौ, हीन मान झिन मन मा लानौ।।
5. अमरित बानी
*सत्य और ईमान में अटल रहें*
सत्य सार हे जग बलशाली, लाये जिनगी मा खुशहाली।
झूठ लबारी धक्का खाथे, मान कहॉं अउ वोहर पाथे।।
6. अमरित बानी
*जैसा खाये अन्न वैसा बनेगा मन*
मिहनत के रोटी सुख लाथे, रोग दोष ला काट भगाये।
अउ येहर होथे गुणकारी, भर भर खावव रोजे थारी।।
7. अमरित बानी
*मेहनत ईमान का रोटी सुख का आधार*
मिहनत करके तुम खावव अन, सदा सुखी होही तन अउ मन।
रोग दोष नइ कभू सतावय, गार पसीना जेहर खावय।।
8. अमरित बानी
*क्रोध और बैर को जो त्याग देता है उसका हर कार्य बन जाता है*
छिन छिन मा जे गुस्सा करथे, बैर बढ़ाके भरभर जरथे।
क्रोध बैर जे मन नइ लावय, काम सुफल वो झट कर जावय।।
9. अमरित बानी
*दान कभी नइ माॅगना चाहिए, और न ही उधार लेना-देना चाहिए*
दान मॉंग जे फोकट खाथे, चोरी बइमानी ल बढ़ाथे।
करजा बोहे जिगनी जीथे, महुरा अपमानी के पीथे।।9।।
10. अमरित बानी
*दूसरे का धन हमारे लिए कोड़ी के समान है*
रोजे जाॅंगर पेर कमावव, पर के धन मत नजर गड़ावव।।
पर के धन ला माटी जानौ, लोभ मोह झिन मन मा सानौ।।
11. अमरित बानी
*मेहमान को साहेब के समान समझो*
गुरतुर बानी पहुॅंना बॉंटव, छोटे बड़का मा मत छॉंटव।
प्रेम करव जइसे के भगवन, रखथे सदा भगत बर नित मन।।
12. अमरित बानी
*सगा के जबर बैरी सगा होथे*
निज भाई के संग लड़व झन, भाव एकता के राखव मन।
काम इही दुख दुख मा आही, जिनगी ला अउ सरग बनाही।।
13. अमरित बानी
*सबर के फल मीठा होथे*
करनी कर तॅंय धीरज धर रे, आही बेरा लगही फर रे।
जिनगी हर तोरो महहाही, नवा बिहनिया कारज लाही।।
14. अमरित बानी
*मया के बंधना असली ये*
मनखे मनखे सबो बरोबर, जुरमिल राहव हिलमिल सुग्घर।
जिनगी बिरथा मया बिना हे, जइसे तन ला लगे घुना हे।।
15. अमरीत बानी
*दाई-ददा अऊ गुरु ला सनमान देवव*
मान रखव गुरु बाबू दाई, जिनगी गढ़थे ये सुखदाई।
तोर पॉंव दय न गड़न कॉंटा, सरग घलो दे तोरे बॉंटा।।
16. अमरित बानी
*दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दूध झन निकालहव*
रखे माह नौ पेट सरेखे, तोर खुशी निज हित नइ देखे।
अमरित बरसे छाती जेकर, आय बुढ़ापा दुख मत झिन भर।।
17. अमरित बानी
*इही जनम ला सुधारना सॉंचा हे*
मनखे जनम सार हे जानौ, भेद पाप पुन मा तुम मानौ।
आय जाय के राह छुड़ाले, सुघर मुक्ति के राह बनाले।।
18.अमरित बानी
*सतनाम घट घट मा समाय हे*
हे सतनाम खड़े घट घट मा, बसे धरा अउ अगास सत मा।
सुन सतनामी महिमा अड़बड़, सदाचार के जिनगी बड़हर।।
19. अमरित बानी
*गियान के पंथ किरपान के धार ए*
बिरथा जिनगी हे बिन शिक्षा, जइसे मॉंग चलत हे भिक्षा।
ज्ञान पंथ निज हक अधिकारी, जस किरपान धार बड़ भारी।।
20.अमरित बानी
*एक धूबा मारे तुहु तोरे बरोबर आय*
नीच काज हे करनी जेकर, कर अपमान घलो झन ओकर।
पथरा मारे चिखला छटके, दाग बने रहिथे ये चटके।
21.
*मोला देख, तोला देख, बेर कुबेर देख, जेन हक तेन ला बॉंट बिराज के खा ले।*
होय नहीं सुख यश धन ले मन, बड़हर मन ला तॅंय देख जतन।
सब हक रहे पेट भर थारी, खाव बॉंट सम तुम सॅंगवारी ।।
खाव नॅंगा हक झन दूसर के,
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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चौपई छंद)
सुन ले बाबा घासीदास,दिन हवय गा अड़बड़ खास।
करत हवन गा पूजा तोर,मँहगू के तैं लाला मोर।।
कतका करबो तोर बखान,महिमा हावय भारी जान।
सत के मारग ला तैं जान,अपन बनाये गा पहिचान।।
जात पात के भेद मिटाय, सत के बाबा अलख जगाय।
मनखे मनखे एक बताय,भाई चारा रहे सिखाय।।
नशा पान ला सबझन छोड़,राखव सबले नाता जोड़।
सत के राहव दिया जलाय, अंतस बाबा हवय समाय।।
सबला बाबा दे हे ज्ञान,अमरित बानी जेकर जान।
सत के मारग जे बतलाय,धरम धजा ला जी फहराय।।
गिरौदपुरी हवय जी धाम,जपलव संगी सब सतनाम।
सुनलव बाबा के संदेश,सबके मिट जाही गा क्लेश।।
रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर
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अल्हा छंद
मनखेमनखे एक हवै जी,कहगे बाबा घासीदास।
सत्यनाम ला सब झन मानौ,सत मा राखौ जी विश्वास।।
सुमता अउ भाई चारा के,बंधन बाँधे राखव खास।
एक दुसर सहयोग करौ जी,करदौ कुमता के तुम नास।।
सुनौ उदाली झन मारौ जी,चीज बचा के राखौ पास।
बिपदा मा तो काम ग आथे,धर गठिया के खासम खास।।
ताश जुआ हे बिगड़े रस्ता,नशा पान आवय जी काल।
जौन फँसे हे येकर फाँदा, माथा धर होगे बेहाल।।
गुरु बबा के एक बात हा,सच मा कतका मन ला भाय।
काम करत हे जौन खेत मा,खेती सिरतो ओकरे आय।
बेगारी हे लूट बरोबर,झन करहौ फोकट मा काम।
लइका बर दू रोटी लाना,तबही करना जी आराम।।
पर नारी महतारी जानौ ,पर धन ला जी पथरा जान।
सब झन बर सद्भाव रखौ जी। सदा बचाये राखौ मान।।
सत्त राह हा भले कठिन हे,सदा बढ़ा हव सत मा पाँव।
कर जाहू कुछ बने करम ला,जुग जुग चलही तब तो नाँव।।
नोनी बाबू एके हावै,झन करहौ कोनो मा भेद ।
शिक्षा के हथियार धराहू,गंगा सुख के लाही छेद।।
सती प्रथा हे पाप बरोबर,विधवा मा घलो होथे प्रान।
विधवा मन के व्याह रचाके,देवव नारी ला सम्मान।।
ऊँच -नीच के भेद मिटावत, छूत छुआ ला माने रोग।
जीव जगत के सेवा ला तै, कहे हवस ईश्वर से योग
धन्य हवै जी गुरु बाबा हा,इहाँ पंथ सतनाम चलाय।
दीन दुखी ला गला लगा के,मानवता के पाठ पढाय।।
✍️जुगेश कुमार बंजारे "धीरज'
छिरहा बेमेतरा छ्ग
9981882618
8739521702
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: मनहरण घनाक्षरी- विजेन्द्र वर्मा
सत के रहे पुजारी,पूजत दुनिया सारी,
जग मा अमर हवै,बाबा तोर नाम हा।
ऊँच-नीच ला मिटाके,सत राह ला दिखाके,
ज्ञान के अलख जगा,बाजिस हे काम हा।।
परहित सेवा करैं,दया मया भाव भरैं,
तभे तो दिखत हवै,आज परिणाम हा।
जय हो बाबा धाम के,जय हो सतनाम के,
सत के देय संदेशा,घासीदास धाम हा।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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सतनाम के पुजारी बबा जय होवय तोर
जय होवय तोर बबा जय होवय तोर
हे घासी दास मोर बबा घासी दास मोर
सतनाम के पुजारी बबा जय होवय तोर
जाति पाती भेद भाव जग ले मिटाये हच
मनखे मनखे एके हे सब ला बताये हच
सात वचन ला बबा जग मा बगराये हच
नाचत हावय पंथी मा सब गली खोर
सतनाम के पुजारी बबा जय होवय तोर
पशु प्रेम करें के तैं अलख जगाये हच
आगे जन्मदिन तोर सब ला बलाये हच
जैतखाम मा सुग्घर पालो ला चढ़ाबो
सत्य के ध्वजा ला चारों कोती बगराबो
तोर किरपा ले बगरे सतनाम के अँजोर
सतनाम के पुजारी बबा जय होवय तोर
जय होवय तोर बबा जय होवय तोर
हे घासी दास मोर बबा घासी दास मोर
सतनाम के पुजारी बबा जय होवय तोर
राकेश कुमार साहू
सारागांव ,धरसींवा ,रायपुर
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: जल-हरन घनाक्षरी - बोधन राम निषादराज
*गुरु घासीदास*
जै हो बाबा घासीदास,करत हौं महूँ आस,
सत् के रद्दा जावँव, दे दे मोला ज्ञान ल।
सादा धजा लहरावै, नर-नारी गुन गावै,
भक्ति के आशा मिलय,पावँव वरदान ल।।
माता अमरौतीन के,कोख मा जनम धरे,
मँहगू के ललना हा,जपय भगवान ल।
सतनाम भज डरे, कठिन तपस्या करे,
जैत खाम ला गड़ाके,अउ तैं दिए मान ल।।
रचना:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
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(रोला छंद)
गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।
सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।
पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।
धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।
सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।
सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी।
ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।
मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके।
तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।
समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।
छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।
जात पात हे व्यर्थ, सबो झन करौ किनारा।
मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।
सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।
गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।
सत मारग मा रेंग, बनन जी सब ले बढ़िया।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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*सरसी छंद (गुरु घासीदास बाबा)*
सत्य नाम ला अमर करइया, जय गुरु घासीदास।
जग मा लाये हच तँय बाबा, सुग्घर नवा उजास।।
करम धरम ला पोठ करे हस, बन महान तँय संत।
सुग्घर जग मा अपन चलाये, सत्य नाम के पन्त।।
मनखे मनखे एक बरोबर, सबके बनव हितेश।
भेद भाव ला छोड़ कहे तँय, सबला दे संदेश।।
बिना कर्म के कहाँ मिले फल, जैसे बिन गुरु ज्ञान।
कहे अंध विस्वासी झन बन, बनव सबो विद्वान।।
सादा जिनगी ला धरबे तँय, करबे सद व्यवहार।
छोड़ नशा ले दुरिहा कहिथस, रखबे उच्च विचार।।
-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-0१
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा
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*बरवै छंद*
गुरू महिमा
अमरौतिन के कोरा ,खेले लाल।
महँगू के जिनगी ला ,करे निहाल।1।
सत हा जइसे चोला ,धरके आय।
ये जग मा गुरु घासी ,नाम कहाय।2।
सत्य नाम धारी गुरु ,घासीदास।
आज जनम दिन आये ,हे उल्लास।3।
मनखे मनखे हावय ,एक समान।
ये सन्देश दिए हे, गुरु गुनखान।4।
देव लोक कस पावन ,पुरी गिरौद।
सत्य समाधि लगावय ,धरती गोद।5।
जैतखाम के महिमा ,काय बताँव।
येला जानव भैया ,सत के ठाँव।6।
निर्मल रखव आचरण ,नम व्यवहार।
जीवन हो सादा अउ ,उच्च विचार।7।
बिन दीया बिन बाती ,जोत जलाय।
गुरु अंतस अँंधियारी ,दूर भगाय।8।
अंतस करथे उज्जर ,गुरु के नाम।
पावन पबरित सुघ्घर ,गुरु के धाम।9।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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[जय बाबा गुरू घासीदास
(सार छंद)
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छत्तीसगढ़ के सुरुज बरोबर, सत अँजोर बगरइया।
जन जन मा भाईचारा अउ, सुम्मत भाव जगइया। ।
मनखे सबो समान बताके, सत्यनाम गुन गाइन।
मानवता के सुघ्घर रस्ता, दुनिया ला देखाइन। ।
अइसन संत सुजानी के हर, करम बचन हें पावन।
बाबा घासीदास गुरु ला, जन जन करथें बंदन। ।
जय सतनाम!!
दीपक निषाद -बनसाँकरा (सिमगा)
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*सार छंद*
नर तन धरके सत हा खेलय ,अमरौतिन के कोरा।
तोला पाये बर बर जुग जुग ले, धरती करिस अगोरा।।
तेजवान अउ परम प्रतापी, हे महँगू के लाला।
दीया अइसे बारे जग मा ,हटगे भ्रम के जाला।।
घासीदास कहाये जग मा, सत्य पुरुष अवतारी।
सन्त शिरोमणि गुरुवर तोरे , महिमा हावय भारी।।
सादा जीवन सादा बोली , सादा हावय झंडा।
सत्य ज्ञान के अमरित बानी ,भरथे मन के हंडा।।
मनखे मनखे एक बरोबर ,एक सबो नर नारी।
बाबा के सब ज्ञान सूत्र मन ,मनखे बर हितकारी।।
अब्बड़ फइले रहिस जगत मा ,छुआ छूत बीमारी।
महा वैद्य बनके आये गुरु, सत्य ध्वजा के धारी।
मानवता के पाठ पढाये, सुमता भाई चारा।
ऊँच नीच के गड्डा पाटे, दुखिया दीन अधारा।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
18 -12 ,2021
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संत गुरु घासीदास 42 अमृतवाणियाँ-
मनहरण घनाक्षरी-
सतनाम घट घट, बसे हवै मन पट
भरौ ज्ञान पनघट, कहे घासीदास हे
सबो संत मोरे आव,महिनत रोटी खाव
जिनगी सुफल पाव, करम विश्वास हे
ओतकेच तोर पीरा,जतकेच मोर पीरा
लोभ मोह क्रोध कीरा,करे तन नाश हे
सेवा कर दीन दुखी,दाई ददा रख सुखी
धर ज्ञान गुरुमुखी ,घट देव वास हे।।
ऊँचा पीढ़ा बैरी बर,मया बंधना ला धर
अन्याय विरोध बर,रहौ सीना तान के
निंदा अउ चारि हरे,घर के उजार करे
रहौ दया मया धरे,कहना सुजान के
झगरा ना जड़ होय,ओखी के तो खोखी होय
सच ला ना आँच आय, मान ले तैं जान के
धन ला उड़ाव झन,खरचा बढ़ाव झन
काँटा ला गढ़ाव झन,पाँव अनजान के।।
पानी पीयव छान के,बनावौ गुरु जान के
पहुना संत मान के,आसन लगाव जी
मोला देख तोला देख,बेरा ग कुबेरा देख
कर सबो के सरेख, मिल बाँट खाव जी
सगा के हे सगा बैरी,सगा होथे चना खैरी
अटके हे देख नरी,सगा का बताँव जी
मोर हर संत बर, तोर हीरा मोर बर
हे कीरा के बरोबर,मैं तो समझाँव जी।।
दाई हा तो दाई आय,मया कोरा बरसाय
दूध झन निकराय,मुरही जी गाय के
गाय भैंस नाँगर मा,इखर गा जाँगर मा
ना रख बोझा गर मा ,नोहय फँदाय के
नारी के सम्मान बर,विधवा बिहाव बर
रीत नवा चालू कर, चूरी पहिराय के
पितर मनई लगे,मरे दाई ददा ठगे
जीयत मा दूर भगे,मोह बइहाय के।।
सोवै तेन सब खोवै ,जागै तेन सब पावै
सब्र फल मीठा होवै,चख चख खाव जी
रोस भरम त्याग के,सोये नींद जाग के
ये धरती के भाग ला,खूब सिरजाव जी
कारन ला जाने बिना,झन न्याय ला जी सुना
ज्ञान रसदा ना कभू , उरभट पाव जी
मन ला हे हार जीत,बाँटौ जग मया प्रीत
फिर सब मिल गीत,सुमता के गाव जी।।
दान देवइया पापी,दान लेवइया पापी
भक्ति भर मन झाँपी,मूर्ति पूजा छोड़ दे
जइसे खाबे अन्न ला,वइसे पाबे मन ला
सजा झन ये तन ला,मोह घड़ा फोड़ दे
ये मस्जिद मन्दिर , चर्च अउ संतद्वार
बना झन गा बेकार, मन सेवा मोड़ दे
गरीब बर निवाला, तरिया धरमशाला
बना कुआँ पाठशाला ,हित ईंट जोड़ दे।।
आँख होय जब चूक,अँगरा कस जस लूख
फोकट के सुख करे,जिनगी ला राख हे
पर के भरोसा झन,खा तीन परोसा झन
मास मद बसौ झन,नाश के सलाख हे
एक धूवा मारे तेनो , बराबर खुद गिनो
जान के मरई जानौ,पाप के तो शाख़ हे
गुरु घासीदास कहे ,कहौ झन मोला बड़े
सत सूर्य चाँद खड़े, उजियारी पाख हे।।
रचना- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर 8889747888
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संत शिरोमणि गुरु घासीदास जयंती के बहुत बहुत बधाई-
विष्णुपद छंद
मनखे अव मनखे बनके सब, भाई हो रहना।
मनखे मनखे एक बरोबर, बाबा के कहना।।
मानवता हे सार जगत मा, सुग्घर ये गहना।
घाम रहय चाहे हो छइँहा, सुख दुख ला सहना।।
छुआछूत पाखंड ढोंग ले, दूर सदा रहना।
डरना नइये झूठ झूठ ला, सच ला सच कहना।।
हमर बनाये जाँति पाँति अउ, रीति नीति जग मा।
एक माँस हाँड़ा तन सबके, एक लहू रग मा।।
दीन गरीब ददा दाई के, सेवा खूब करौ।
अँधियारी बर दीया बनके, भाई रोज जरौ।।
सच बोलव सतनाम जपौ बस, काँटा पग पग मा।
बाबा घासीदास बताइन, सार इही जग मा।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी- कवर्धा
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*बरवै छंद*
*बाबा गुरू घासीदास*
दाई अमरौतिन के, रहय दुलार।
करय ददा महँगू हा, मया अपार।।
नाम रखिस दाई हा, घासीदास।
तोर रहिस बोली हा, बने मिठास।।
पेड़ तरी धौरा के, धुनी रमाय।
आत्म ज्ञान ला पाके, संत कहाय।।
कहे सबो ला झन कर, मदिरा पान।
सादा जीवन रखथे, सबके मान।।
सब मनखे ला माने, एक समान।
सत्य नाम ला गाके, बने महान।।
करँव तोर महिमा के, मँय गुनगान।
अनुज करत हे बाबा, तोर बखान।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला कोरबा*
*सत्र 14*
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जय गुरु घासीदास बाबा
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गुरु घासीदास बाबा की जय
🙏🙏🙏🙏