हाय! कइसन दिन हबरगे*
(रूपमाला छंद)
ले शपथ ईमान के हे, राजनेता मोर।
शोर हे सरकार के बड़, आज जम्मो छोर।।
लोग लालच मा फँसिन अउ, वो खरीदिस वोट।
पाँच साला लाइसेंसी, अब बनावत नोट।।
हे करोड़ों के बजट खुश, पारषद सरपंच।
मेट ठेकेदार साहब, कटमनी बर टंच।।
चार महिना मा उखड़गे, रोड नावा तोर।
समिलहा सब सपरिहा सब, कोन पकड़ै चोर।।
जात झगरा पंथ झगरा धर्म झगरा होत।
नोच डारिन देश ला असहाय जनता रोत।।
बिन कमीशन काम एको, होय नइ सुन बात।
शव तको बर चीरघर मा, घूस बिन फिफियात।।
लूट डाका बाढ़ गेहे, जात कतको जान।
शान रिश्वत के दिखत हे, सत्य के अपमान।।
रोज थाना कचहरी मा, हे दलाली घोर।
सीधवा मन जेल जावत, हे जमानत चोर।।
प्लाट बन धरती बिकत हे, फूट नापत खेत।
मार महँगाई डरिस रे, कोन करथे चेत।।
ऊँट घोड़ा गाय बइला, बिन सुना घर-द्वार।
घोर कलयुग अब लहुटगे, रेस मोटर कार।।
लूट डारिन देश ला ये, दोगला मन राम।
पेट बर रोजी नहीं अउ, हाथ बर नइ काम।
लत नशाखोरी बिगाड़त, देश ला अब घात।
मुफ्तखोरी मा लगे हे, लोग संसो बात।।
शेर हाथी बाघ भलुआ, पिंजरा मा बंद।
अउ सिपाही छोड़ जंगल, पी सुते हे मंद।।
झील झरना तक सुखागे, आदिवासी दंग।
तीर भाला मन लुटागे, जिंदगी बेरंग।।
जानवर मन के चरी मा, खेत दुच्छा होत।
लूट के ले जात शहरी, रेत नदिया रोत।।
ठूँठ होवत पेड़-पौधा, वन उजड़गे आज।
हाय! कइसन दिन हबरगे, राम तोरे राज।।
रचना:
बलराम चंद्राकर भिलाई
बहुत सुन्दर सर जी
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