सार छंद- जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
विषय- धान लुवाई
पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।
भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।
चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।
काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।
चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।
चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।
भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।
लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।
बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी हवै कटोरी।
बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।
हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।
अमली बोइर हवै मेड मा, खावत हें सब टोरी।
बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड मा छोरी।
लाख लाखड़ी जामत हावय, झटकत हवै चनोरी।
आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।
ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।
महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।
लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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