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Thursday, December 23, 2021

राष्ट्रीय किसान दिवस विशेष






 राष्ट्रीय किसान दिवस विशेष

धान लुवाई- सार छंद


पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।

भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।


चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।

काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।


चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।

चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।


भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।

लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।


बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी हवै कटोरी।

बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।


हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।

अमली बोइर हवै मेड मा, खावत हें सब टोरी।


बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड मा छोरी।

लाख लाखड़ी जामत हावय, झटकत हवै चनोरी।


आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।

ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।


महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।

लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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गीतिका छंद


रोज सबके पेट भरथे,अन्न ला उपजाय जी।

दाम नइये मेहनत के,देख चिंता खाय जी।।

शीत बरसा घाम बादर,रोज बिकटे काम हे।

भूख सहिथे खून जलथे,हाय नइ आराम हे।।


मनहरण घनाक्षरी


धरके राँपा कुदारी,काम करे बड़ भारी,

खेत मुही पार खाँचे,जावय किसान गा।

खेत खार ला साधत,मुही पार ला बाँधत,

काँटा खूँटी चतवार,जमावत धान गा।।

पहिरे हे बड़े पागा,छूटही कइसे लागा,

मन सोचत जात हे,उमर ढलान गा।

करथे अबड़ काम,तभो होथे बदनाम,

पालत पोषत इहाँ,सकल जहान गा।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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छलत रही दुनिया मा कब तक, संगी मोर किसान।

नाम बड़े अउ दर्शन छोटे, भुइँया के भगवान।।


करके लागा बोड़ी बपुरा, करथे खेती काम।

तरस एक दाना बर जाथे, अनदाता बस नाम।।


बीज भात अउ खातू महँगा, धरे मूड़ ला रोय। 

बेमौसम बरसा के सेती, नास फसल मन होय।।


होवय बरसा चाहे गरमी, लागय चाहे जाड़।

रोज कमाना काम इँखर हे, टूटत ले जी हाड़।।


भूखे प्यासे कई दिनन ले, बपुरामन सह जाय।

साथ देय जब ठगिया मौसम, तब दाना कुछ पाय।।


बिचौलियामन नजर गड़ाये, रहिथे रस्ता रोक।

औने पौने भाव म लेके, उनमन बेचय थोक।।


हे किसान मन के सेती जी, फलत फुलत व्यापार।

अँधरा बहरा देख बने हे, तब्भो ले सरकार।।


लदे पाँव सिर ऊपर कर्जा, बनके गड़थे शूल।

अइसन मा का करही बपुरा, जाथे फाँसी झूल।।


सुख सुविधा हा सदा इँखर ले, रहिथे कोसों दूर।

भूख गरीबी लाचारी मा, जीये बर मजबूर।।


करव भरोसा झन कखरो तुम, बनव अपन खुद ढ़ाल।

अपन हाथ मा जगन्नाथ हे, तभे सुधरही हाल।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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किसान - मनहरण घनाक्षरी - विरेन्द्र साहू


उठके बड़े फजर, नाँगर बइला धर, दुनिया के सुख बर, जूझे घाम प्यास ले।

दिन-रात एक करे, सपना सुग्घर धरे, पर बर मर मरे, धरम विश्वास ले।

जग झन भूख मरे, सोच के जतन करे, भुँइया के पाँव परे, श्रम अरदास ले।

जीव-जंतु के मितान, नाम तोर हे किसान, सिरतों मा तोर काम, ऊँच हे अगास ले।


विरेन्द्र साहू बोड़राबांधा (गरियाबंद)

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*करव‌ अन्न के मोल(दोहा गीत)*


करव‌ अन्न‌ के मोल‌ जी, काम हरय ये नेक।

लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।


सहिके घाम किसान मन, करथें खेत तियार।

घेरी बेरी जोंतथें, खातू माटी डार।

बोये बर दिन रात उँन, कर दथें जी एक।

लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।


नींद कोड़ चत्वारथें, पानी खूब पलाँय।

बरसा झड़ी धुँकान मा, भींजत ठुठर कमाँय।

करथें उँन‌ जी प्रान‌ दे, रइथे बुता जतेक।

लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।


फसल‌ कहूँ अब पाकगे, लुवई मिँजई काम।

खँटथे नित दिन जाड़ मा, मिलय नही आराम।

समझव गुनव किसान सब, सहिथें दरद कतेक।

लगय बछर उपजाय मा, देथव छिन मा फेंक।

- मनीराम साहू 'मितान'

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विजेन्द्र: गीतिका छंद


रोज सबके पेट भरथे,अन्न ला उपजाय जी।

दाम नइये मेहनत के,देख चिंता खाय जी।।

शीत बरसा घाम बादर,रोज बिकटे काम हे।

भूख सहिथे खून जलथे,हाय नइ आराम हे।।


मनहरण घनाक्षरी


धरके राँपा कुदारी,काम करे बड़ भारी,

खेत मुही पार खाँचे,जावय किसान गा।

खेत खार ला साधत,मुही पार ला बाँधत,

काँटा खूँटी चतवार,जमावत धान गा।।

पहिरे हे बड़े पागा,छूटही कइसे लागा,

मन सोचत जात हे,उमर ढलान गा।

करथे अबड़ काम,तभो होथे बदनाम,

पालत पोषत इहाँ,सकल जहान गा।।


जाँगर सन मितानी,काम खेती औ किसानी,

खेत खार के माटी मा,बसथे जी प्रान हे।

कमाथे तभे गुजारा,पेट पोंचवा बेचारा,

धुर्रा माटी मा सनाय,रहिथे किसान हे।।

सबके क्षुधा मिटाथे,धान-पान उपजाथे,

जिनगी तको उँकर,मरी औ मसान हे।

खाँय करम कमाई,जग के करै भलाई,

सेवा मा उमर बीतै,नइतो गुमान हे।।



विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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 बरवै छंद......

बिषय....किसान


करय किसानी जी भर, पावय मान।

धान उगावय कतको,हावय ज्ञान।


बिनहा उठके नाँगर,धरके जाय।

बइला फाँदय सरपट,अउ दौडाय।


मुही बाँध जल रोकय,धान उगाय।

खातू माटी डारय,फसल पाय।


धरे अँगाकर रोटी,खाय अथान।

बासी चटनी बढि़या,मिलके खान।


राँपा गैती धरके, चलै किसान।

नाँगर बइला हँसिया, सब पहिचान।


पागा खुमरी खापय, घाम बचाय।

करय किसानी बढि़या,रंग जमाय।


अन्न दान बड़ करथे, सब उपजाय।

कोठी भर भर राखय,बड़ धन पाय।


जाँगर टोर कमावय,सोन उगाय।

मिहनत के बल मा वो,नाम कमाय।


चिखला माटी रेंगय,सदा सनाय।

माथ लगावय धूर्रा, मया बताय।


*धनेश्वरी सोनी गुल*✍️✍️

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गुमान साहू: अरविंद सवैया- 

।।किसान।।

कुकरा जब बासय जावय खेत म साँझ भये ग तभे घर आय।

मजदूर किसान ह पेट भरे बर जाँगर पेर ग खूब कमाय।

धर नाँगर जोत किसान सबो दय बंजर भूमि म सोन उगाय।

भरथे जग के  सब पेट उही भुइयाँ म तभे भगवान कहाय।।


-गुमान प्रसाद साहू 

समोदा (महानदी) ,रायपुर

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 हरिगीतिका छंद - बोधन राम निषादराज

(भुइयाँ के भगवान)


भुइयाँ बिराजे देख लौ,करथे किसानी काम ला।

एला कथे भगवान जी,सहिथे अबड़ जे घाम ला।।

बरसा रहै सर्दी रहै,बड़ भोंभरा रख पाँव ला।

बड़ काम करथे रात दिन,नइ खोजथे सुख छाँव ला।।


चिखला मताके खेत मा,अन सोन कस उपजात हे।

बासी पसइया नून ला,धर खार मा वो खात हे।।

ट्रेक्टर तको आगे तभो,बइला कमावै साथ मा।

कतको मशीनी छोड़ के,नाँगर चलावै हाथ मा।।


छत्तीसगढ़ भुइयाँ हमर,सोना कटोरा धान के।

कर लौ इँखर सम्मान ला,भगवान इन ला जान के।।

सब पेट भर खावत हवौ,इँखरे भरोसा प्रान हे।

दुख दर्द ला समझौ सबो,जग मा तभे तो मान हे।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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आशा देशमुख: किसान दिवस


तुँहर पसीना के कीमत ला ,कोनो नइ पहिचानै।

हे किसान हो तुँहर दरद ला ,धरती दाई जानै।


 साँझ बिहनिया एक बरोबर, घाम जाड़ हे संगी।

जग के थारी अन्न भरत हव,  तुँहरे घर मा तंगी।।


सुरुज देव ले पहली निशदिन ,तुँहर करम हा जागे।

हाथ पाँव के सुमत देख के, आलस दुरिहा भागे।।


बादर अउ आँखी के पानी ,जइसे बदे मितानी।

रहय नमक गुड़ एक तराजू, बीच झुलय जिनगानी।।


नांगर बइला रापा गैंती, हावय तुँहर चिन्हारी।

मिहनत हा जब संग रहय तब, हाँसय खेती बारी।।


लोहा के जुग जब ले आये, माटी बनथे सोना।

अब मशीन मन बइठे हावँय, जग के कोना कोना।।


ट्रेक्टर थ्रेसर हार्वेस्टर सब , मिलके करँय किसानी।

उन्नत खेती पोठ बीज मन, सुघ्घर लिखंय कहानी।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा


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 लीलेश्वर देवांगन,बेमेतरा: शक्ति छंद


इहाॅ के किसानी,हवय‌ शान जी

उगाथे सदा वो,चना धान जी ।

करे सब किसानी,कमर तोड़ के

कभू नइ भगे वो, मुॅहू मोड़ के ।


रहे खेत मा अउ,सहे घाम ला 

पसीना‌‌ बहाके,करे‌ काम ला।

रखे ध्यान अड़बड़,अपन खेत के

तभे धान उपजे ,गजब नेत के।


लिलेश्वर देवांगन

गुधेली (बेरला)

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: किसान दिवस बर सादर

*भूमिपुत्र* 


भूमिपुत्र श्रमजीवी तैह, तोर जिनगी घाम जी।

उठ बिहनिया पटका बाँधे,तोड़  जाँगर काम जी।।


अन्नदाता अस विधाता,हे पछीना दाम जी।

सोन भुइयाँ होय माटी,धान लहिके लाम जी।

  

धर तुतारी खेत नाँगर,उही चारों धाम जी।

पेज भाजी देह पोषे,पाय जी आराम जी।।


कृषक जब्बर तोर छाती,श्रमिक आठों याम जी।

हाथ लउठी मूड़ पागा,साँझ बेरा राम जी।।


डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ


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दिलीप कुमार वर्मा 

चौपाई 


कुकरा बासत निकलय घर ले। काँध म नागर लौठी कर ले। 

बइला सँग मा जाय किसनहा। जोतय जाके डोली धनहा। 


तता तता अर्रावत रहिथे। जोर ददरिया गावत रहिथे। 

बइला सँग मा रहे मितानी। दोहा पारय आनी बानी। 


पाही ऊपर पाही बढ़जय। बेरा तक हर ऊपर चढ़जय।  

चेत कहाँ बेरा के राहय। खेत जोतना पूरा चाहय। 


तर-तर तर-तर बहय पछीना। पर साहस भर राखय सीना। 

बइला तक मन संग निभावयँ। पाही पाही जोते जावयँ। 


नरी सुखावय पीयय पानी। जाँगर पेरत करय किसानी। 

बासी धर बाई जब आवय। खाये बेरा ही सुसतावय। 


मिहनत ले ओ अन उपजाथें। सब ला देथे तब खुद खाथें।  

तभे अन्न दाता कहलाथें। देव असन सबझन हा भाथें। 


अपन हाथ मा काम अजब हे। आज काल तो दाम गजब हे।

भटके बर नइ लागय येती। खेती होथे अपनो सेती।


धन्य-धन्य तँय होय किसनहा। तोर रहत मुसकावय धनहा। 

तोरे देहे हम सब खावन। आज तोर सब महिमा गावन। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

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*किसान (दोहा छंद)*


हटर- हटर बूता करै, धूप  रहय  या  छाँव ।

मिहनत हावय संग मा, कभू थकय ना पाँव ।।१


भूख-प्यास तैंहा सहे, अउ सहथस जी घाम।

धनहा- डोली खेत हे,  करथस  खेती  काम ।२


सबके मीत किसान तँय, बोथस गेहूँ धान ।

धुर्रा- माटी तन लगे,  हवस देश के शान ।।३


पागा कलगी शान हे,  माटी तोर मितान ।

नांगर बइला संग मा, इही हवय पहिचान ।।४


कहिथें तोला सब इहाँ, भुइयाँ के भगवान ।

हे किसान मन के सदा, करथे जग गुणगान ।।५


   *मुकेश उइके "मयारू"*

   *छंद साधक- सत्र 16*

   *चेपा(बकसाही)पाली जिला-कोरबा(छ.ग.)*






2 comments:

  1. बहुत ही सुग्घर संग्रह

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  2. बहुत सुग्घर जय किसान जय जवान

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