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Sunday, December 5, 2021

सार छंद -संगीता वर्मा

 सार छंद -संगीता वर्मा


नशा


पान सुपारी गुटका खवई, बनगे हावय फैशन।

चाहे झन राहय वोकर घर, दाना पानी राशन।।


छोड़व गुटखा पानी कहिके, नेता  मन दय भाषण।

गाँव-गाँव मा भट्टी खोले, फोकट मा दे राशन।।


मनखे पीयत उनडत हावय, नइये ठौर ठिकाना।

लाज शरम ला बेच खात हे, कइसन आय जमाना।।


दारू पी के सुध-बुध खोथे, लड़थे भाई-भाई।

देख उँखर परिवार इँहा तो, होथे बड़ करलाई।।


नशा पान मा जाथे जिनगी, जाथे कतको धन हा।

घर के मनखे चूरत रहिथे, रोथे ओकर मन हा।।


संगीता वर्मा

भिलाई छत्तीसगढ़

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