सार छंद -संगीता वर्मा
नशा
पान सुपारी गुटका खवई, बनगे हावय फैशन।
चाहे झन राहय वोकर घर, दाना पानी राशन।।
छोड़व गुटखा पानी कहिके, नेता मन दय भाषण।
गाँव-गाँव मा भट्टी खोले, फोकट मा दे राशन।।
मनखे पीयत उनडत हावय, नइये ठौर ठिकाना।
लाज शरम ला बेच खात हे, कइसन आय जमाना।।
दारू पी के सुध-बुध खोथे, लड़थे भाई-भाई।
देख उँखर परिवार इँहा तो, होथे बड़ करलाई।।
नशा पान मा जाथे जिनगी, जाथे कतको धन हा।
घर के मनखे चूरत रहिथे, रोथे ओकर मन हा।।
संगीता वर्मा
भिलाई छत्तीसगढ़
बहुत सुन्दर
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