हरिगीतिका छंद
2212 2212, 2212 2212
*हमर बोली हमर संस्कार*
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भाखा हमर बोली हमर,करिहौ सखा सब मान ला।
झन छोड़िहौ जी गाँव ला,झन छोड़िहौ पहिचान ला।।
झन भूलिहौ जी रीति अउ,सुग्घर अपन संस्कार ला।
दाई - ददा के संग ला,झन भूलिहौ परिवार ला।।
मनखे इहाँ सिधवा हवै, गुरतुर अपन बोली लगै।
नइ काखरो ले भेद जी,गजबेच हमजोली लगै।।
आ के इहाँ परदेशिया,कुरिया बसा डारिन सखा।
भाखा हमर सब बोल के,गत ला हमर मारिन सखा।।
कथनी अपन करनी अपन,रखथे सबो विश्वास ला।
करथे भरोसा काम मा,छोड़य कभू नइ आस ला।।
पहुना इहाँ भगवान कस,पानी मिलै सब द्वार मा।
पाछू रहै नइ जी कभू, छत्तीसगढ़ सत्कार मा।।
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बोधन राम निषादराज"विनायक"
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