*जयकारी छंद*
*कविता चोर*
निकले हावय कविता चोर।
होवत हावय येखर शोर।।
दूसर कविता ला चोराय।
दुनिया भर मा नाम कमाय।।
पेपर मा फोटू छपवाय।
बड़का अक्षर नाम लिखाय।।
मोबाइल मा डारय नाम।
भले करय चोरी के काम।।
कइसन देख जमाना आय।
सब के कविता ला चोराय।।
लाज सरम जम्मो बेचाय।
दूसर के मिहनत ला खाय।।
कब तक अइसन चलही काम।
जल्दी होही वो बदनाम।।
छूट जाय मनखे के साथ।
रोवत दिखही पकड़े माथ।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
राजिम
छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment