सार छंद- ओमप्रकाश साहू" अंकुर "
विषय - तीन लोक के स्वामी
त्रेता जुग मा लक्ष्मीपति हा, दशरथ सुत कहलाइस ।
कौशल्या के राज दुलारा, बनके जग मा आइस ।।
तीन लोक के सुग्घर स्वामी, रामचंद्र कहलाथे ।
नित श्रद्धा ले नर नारी अउ , ऋषि -मुनि माथ नवाथे ।।
रामचंद्र के मोहक मूरत ,सीता सुध -बुध खोइस ।
रघुवर हा शिव धनुष उठाइस, जनक गजब खुश होइस ।।
बचन पिता के राखे बर गा, राम बनिस बनवासी ।
गंगा तीर निषाद राज के , भागिस दूर उदासी ।।
गजब वीर हे रामचंद्र हा, मंदोदरी बताइस ।
नइ मानिस लंकापति रावण, कुल ला नाश कराइस ।।
रघुपति मारिस दानव मन ला, भक्तन मन ला तारिस ।
अतियाचार मिटाये खातिर, रावण ला संहारिस ।।
युद्ध राम -रावण के होइस, बहिस लहू के धारा ।
देव लगाइन रामचंद्र के, शौर्य देख जयकारा ।।
रामचंद्र हा लंका जीतिस, अवधपुरी मा आइन ।
परजा मन स्वागत बर उमड़िन, मंगल गीत सुनाइन ।।
ओमप्रकाश साहू" अंकुर "
सुरगी, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)
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