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Tuesday, December 7, 2021

बरवै छंद - मँहगाई श्रीमती शशि साहू

 बरवै छंद - मँहगाई 

श्रीमती शशि साहू


मुँह फारे मँहगाई, सुरसा ताय।

जतका होय कमाई,मुँह मा जाय।


सबो जिनिस हर मँहगी,दुरिहा होय।

काला खाँव बचावँव,जिनगी रोय।


बाई मारय ताना, नइ तो भाय ।

घानी कस मँय बइला रथो फँदाय।


चुहके आमा दिखथे काया मोर।

मँहगाई के आघू, खडे़ धपोर।


अजगर कस फुफकारे,मारय पेट।

सबो जिनिस के बाढे़ हावय रेट।


मँहगाई हर मारे, रोजे लात।

पीठ पेट हर सँघरा रोवय रात।


श्रीमती शशि साहू 

बाल्को नगर कोरबा ।

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