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Saturday, December 4, 2021

सरसी छंद गीत- *जतन करव महतारी भाखा*



सरसी छंद गीत- *जतन करव महतारी भाखा*


जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।

इही हमर हे स्वाभिमान अउ, इही हमर हे शान।।


दया-मया के गुरतुर बैना, मधुरस भरे मिठास।

सत संदेश दिये जन-जन ला, सतगुरु घासीदास।।

कहे इही भाखा मा मनखे, मनखे एक समान।

जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।1


लिखिस दानलीला ला बढ़िया, पंडित सुंदर लाल।

कोदूराम दलित के कविता, ऊँच करा दिस भाल।।

जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिहा के, मातृभूमि प्रति गान।

जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।2


रखिन सँजो के पुरख़ा हमरो, सपना आँखी कोर।

छत्तीसगढ़ी आगू बढ़ही, गाँव शहर घर खोर।।

छत्तीसगढ़िया बन परबुधिया, आज भुलागे मान।

जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।


तरसे सुवा ददरिया करमा, राउत गम्मत नाच।

परदेशी भाखा पथरा मा, दिहिस अपन ला काँच।।

झन परलोकिहा बनौ भइया, पढ़े लिखे विद्वान।

जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।4


सुसकत हावय बासी-चटनी, नंगरिहा अउ खेत।

बइला गाड़ी के घँघड़ा हा, कहत हवे कर चेत।।

गजानंद जी जाग-जाग अब, लाबो नवा बिहान।

जतन करव महतारी भाखा, भइया मोर मितान।।5


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर 

छंद परिवार- छत्तीसगढ़

छंद साधक- सत्र 2

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