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Sunday, December 5, 2021

रोला छंद- श्रीमती- शशि साहू

 रोला छंद- श्रीमती- शशि साहू 


पानी 


पानी हमर परान,मोल पानी के जानौ। 

पानी बिन घर बार,चले नइ अतका मानौ।

सोख्ता गड्ढा कोड़, बचा लव बरसा पानी। 

जल संकट दुरिहाय,होय सुग्घर जिनगानी।

 

फोकट मा जब पाय, रहे बोहावत पानी। 

गर्मी के दिन आय, समझआवय नादानी। 

गर्मी मा फिफियाय, परे सब लोटा थारी। 

बोरिंग कुआँ अँटाय, होय कइसे निस्तारी ।


रोला छंद-आमा


लहसे आमा डार,फरे लटलट ले हावे। 

गरती रसा भराय,खात मन कहाँ अघावे।

कोनो चुहकत खाय पउल के गोही चाँटे।

अपनो सइघो खाय,आन ला नान्हें बाँटे।


सबो खाय सँहुराय,मीठ हे लँगड़ा चौसा।

जाबे कहूँ बजार, बिसा के लाबे मौसा। 

बैंगन पल्ली रोंठ,गुदा हर गजब मिठाथे। 

कलमी जाथे पाक,फोकला घलो सुहाथे।


             रोला छंद  - बेटी 


अपन करेजा चीर,सोन कस बेटी देंथे। 

संगे दान दहेज,जोर के सुख पा लेंथे। 

बेटी दुख ला पाय,लोभ दाहिज के कारन। 

आज मोर कल तोर,सबो बेटी ला हारन।


हिरदे मोर जुडा़य,आज बेटी घर आही। 

का राँधव मँय आज,जेन ओखर मन भाही। 

बेटी बेटा मोर,दुनो बर ममता आगर। 

बेटी नदियाँ धार,दुलरवा बेटा सागर। 


श्रीमती शशि साहू 

बाल्को नगर कोरबा

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