सरसी छंद----राजकुमार चौधरी "रौना"
विषय-----छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढिया के दशा बिथा उपर।
ये धरती के धरवट देखे, करॅय नियत बइमान ।
लूटे खावै हमरे धन ला, बनके सबो मितान ।
हमरे मिहनत गाॅव सहर मा, हमीं कमाथन खेत ।
छाती उप्पर पाॅव मड़ाके, करथे मुरिया मेट ।
माटी मोल बेंचावय धनहा, करजा धरे किसान--------------।
रतन भरे हे कोख भितर मा, लोहा ताॅबा सोन ।
जल जंगल मा कबजा करके, हमला कहिथे कोन।
घर के मालिक बेघर होवय, दूसर बने सियान--------------------।
देश धरम के उलटा पासा, मुखिया बनथे चोर ।
नीत नियम होथे सौतेला, जुरमी किंजरय खोर ।
राज मुकुट बर मारा मारी, गदहा के सम्मान------------------।
जेहर आज महाजन हावे, माॅगत आइन भीख ।
भेष बदल के बहरुपिया मन, बाॅटत रहिथे सीख।
अब तो जागव छत्तीसगढिया, करव अपन पहिचान----------------।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनादगाॅव ।
बहुत सुन्दर सर
ReplyDelete