आल्हा छंद - हरेली
श्रीमती शशि साहू
सावन मास अमावस परथे,जे अँधियारी पाँख कहाय।
पाँख खसलती बेरा मा जी,शुरू तिहार हरेली आय।
रूख राई मन पी प्रदूषण,प्राण वायु छोड़य दिन रात।
प्रर्यावरण बचाये खातिर,पेड़ लगाये परही घात।
अपन किसानी बूता के उन, धोये माँजे सब औजार।
हूम- धूप अउ पान सुपारी,चउँक पूर दीया ला बार।
चीला बोबरा भोग चढा़के,गाय गरू ला दवइ खवाय।
नीम डार खोंचय बरदीहा,मान गउन मालिक ले पाय।
बाबू लइका गेड़ी खापय,फुगड़ी मा गे नोनी मात। हरियर लुगरा पहिरे धरती,मंद मंद लागे मुस्कात।।
कउनो बाधा झन खुसरय गा, बइगा बाँधे गाँव कछार।
रोग राइ राहय दुरबाहिर,आय हरेली हमर दुवार।
श्रीमती शशि साहू
बाल्को नगर कोरबा
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