(कुण्डलियाँ छंद)-मोहन निषाद
खेती के दिन आत हे , हावय मगन किसान ।
पानी बादर देख के , बोथे सुग्घर धान ।।
बोथे सुग्घर धान , बने जब पानी आथे ।
जोहय रद्दा रोज , देख जब बादर छाथे ।।
लगगे हे आषाढ़ , कहाँ हे पानी येती ।
सुक्खा मा जी कोन , इहाँ करथे गा खेती ।।
होवत हे पानी बिना , देखव ग हलाकान ।
आगे हे बरसात हा , सुग्घर दिन ला जान ।।
सुग्घर दिन ला जान , करे बर जी तँय खेती ।
मउका ला पहिचान , कहत हँव येखर सेती ।।
होथे मगन किसान , धान ला सुग्घर बोवत ।
संसो पड़गे आज , सोच ये कइसन होवत ।।
पानी बरसत जी हवय , अब्बड़ संगी आज ।
भारी मगन किसान हे , नाँगर बइला साज ।।
नाँगर बइला साज , खेत मा बावत करथे ।
बिजहा ला जी सींच , बने हरिया ला धरथे ।।
इही खेती के काम , तरे जेमा जिनगानी ।
जग के पालनहार , हँसय जब बरसै पानी ।।
रचनाकार - मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
खेती के दिन आत हे , हावय मगन किसान ।
पानी बादर देख के , बोथे सुग्घर धान ।।
बोथे सुग्घर धान , बने जब पानी आथे ।
जोहय रद्दा रोज , देख जब बादर छाथे ।।
लगगे हे आषाढ़ , कहाँ हे पानी येती ।
सुक्खा मा जी कोन , इहाँ करथे गा खेती ।।
होवत हे पानी बिना , देखव ग हलाकान ।
आगे हे बरसात हा , सुग्घर दिन ला जान ।।
सुग्घर दिन ला जान , करे बर जी तँय खेती ।
मउका ला पहिचान , कहत हँव येखर सेती ।।
होथे मगन किसान , धान ला सुग्घर बोवत ।
संसो पड़गे आज , सोच ये कइसन होवत ।।
पानी बरसत जी हवय , अब्बड़ संगी आज ।
भारी मगन किसान हे , नाँगर बइला साज ।।
नाँगर बइला साज , खेत मा बावत करथे ।
बिजहा ला जी सींच , बने हरिया ला धरथे ।।
इही खेती के काम , तरे जेमा जिनगानी ।
जग के पालनहार , हँसय जब बरसै पानी ।।
रचनाकार - मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती , भाटापारा ,
जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)
बहुत सुग्घर भाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रणम्य भइया जी 🙏🙏
Deleteघात सुग्घर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रणम्य भइया जी 🙏🙏
Deleteबहुत सुघ्घर रचना है भाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रणम्य दीदी जी 🙏🙏
Deleteहार्दिक आभार प्रणम्य हीरा भइया जी 🙏🙏
ReplyDeleteकुंडली विधा म करेगे समसामियिक रचना सहराये लाईक हे ।
ReplyDeleteकवि राजेश चौहान रायपुर छत्तीसगढ़
कुंडली विधा म करेगे समसामियिक रचना सहराये लाईक हे ।
ReplyDeleteकवि राजेश चौहान रायपुर छत्तीसगढ़
बड़ सुग्घर कुंडलियाँ आदरणीय
ReplyDeleteवाह वाह बहुतेच सुग्घर कुण्डलिया।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाई जी
ReplyDeleteकिसानी के बड़ सुग्घर बरनन मोहनभाई ,बधाई
ReplyDeleteतीनों कुण्डलियाँ मा मगन किसान हे फेर पानी बिन हलाकान हे।
ReplyDeleteतीनों कुण्डलियाँ मा मगन किसान हे फेर पानी बिन हलाकान हे।
ReplyDeleteभुइयाँ अउ भुइयाके अन्नदाता के समस्या समस्या ला स्वर देत सुग्घर सृजन भैया जी ।
ReplyDeleteबढ़िया भाव के रचना सर जी
ReplyDelete