कुंडलिया छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
मजदूर
जीये बर मजदूर हे, तंगहाल मजबूर।
लेवय कोनो सुध नही, सुख सुविधा हे दूर।
सुख सुविधा हे दूर, कोन हे तारनहारी।
टोरय जाँगर रोज, तभो जिनगी अँधियारी।
घर मा दाना एक, नही पानी पीये बर।
लगे रथे दिनरात, भूख प्यासे जीये बर।
नवा जमाना
नवा जमाना के चलन, दिखय नही संस्कार।
अपने मा सब हे मगन, भूलत हे व्यवहार।
भूलत हे व्यवहार, छोट हे कोन बड़े हे।
अपने ला सच मान, देख सब आज अड़े हे।
देख चुप्प हे सास, बहू के ताना बाना।
बेटा होय सियान, इही का नवा जमाना।
बदरा
बदरा आवत देखके, झूमत हवय जहान।
तइयारी मा हे अपन, जम्मो आज किसान।
जम्मो आज किसान, संग बइला अउ नाँगर।
जिनगी अपन पहाय, रोज के पेरत जाँगर।
हवय भरोसा तोर, कभू झन होबे लबरा।
सुनले हमर गुहार, बरस जा झम झम बदरा।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा
(छत्तीसगढ़)
मजदूर
जीये बर मजदूर हे, तंगहाल मजबूर।
लेवय कोनो सुध नही, सुख सुविधा हे दूर।
सुख सुविधा हे दूर, कोन हे तारनहारी।
टोरय जाँगर रोज, तभो जिनगी अँधियारी।
घर मा दाना एक, नही पानी पीये बर।
लगे रथे दिनरात, भूख प्यासे जीये बर।
नवा जमाना
नवा जमाना के चलन, दिखय नही संस्कार।
अपने मा सब हे मगन, भूलत हे व्यवहार।
भूलत हे व्यवहार, छोट हे कोन बड़े हे।
अपने ला सच मान, देख सब आज अड़े हे।
देख चुप्प हे सास, बहू के ताना बाना।
बेटा होय सियान, इही का नवा जमाना।
बदरा
बदरा आवत देखके, झूमत हवय जहान।
तइयारी मा हे अपन, जम्मो आज किसान।
जम्मो आज किसान, संग बइला अउ नाँगर।
जिनगी अपन पहाय, रोज के पेरत जाँगर।
हवय भरोसा तोर, कभू झन होबे लबरा।
सुनले हमर गुहार, बरस जा झम झम बदरा।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा
(छत्तीसगढ़)
बहुत सुग्घर गुरुदेव जी
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteधन्यवाद भाईजी
Deleteबड़ सुग्घर गुरुजी
ReplyDeleteधन्यवाद भाईजी
Deleteबहुत बढ़िया सृजन है भाई
ReplyDeleteसादर प्रणाम दीदी
Deleteवाह बरस जा झम झम बदरा। ज्ञानु भैया जी गजब सुघ्घर कुन्डलिया लिखे हव सादर बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी
Deleteबहुत सुंदर रचना भैया जी
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