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Thursday, June 25, 2020

कुंडलिया छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

कुंडलिया छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

मजदूर

जीये बर मजदूर हे, तंगहाल मजबूर।
लेवय कोनो सुध नही, सुख सुविधा हे दूर।
सुख सुविधा हे दूर, कोन हे तारनहारी।
टोरय जाँगर रोज, तभो जिनगी अँधियारी।
घर मा दाना एक, नही पानी पीये बर।
 लगे रथे दिनरात, भूख प्यासे जीये बर।

नवा जमाना

नवा जमाना के चलन, दिखय नही संस्कार।
अपने मा सब हे मगन, भूलत हे व्यवहार।
भूलत हे व्यवहार, छोट हे कोन बड़े हे।
अपने ला सच मान, देख सब आज अड़े हे।
देख चुप्प हे सास, बहू के ताना बाना।
बेटा होय सियान, इही का नवा जमाना।

बदरा

बदरा आवत देखके, झूमत हवय जहान।
तइयारी मा हे अपन, जम्मो आज किसान।
जम्मो आज किसान, संग बइला अउ नाँगर।
जिनगी अपन पहाय, रोज के पेरत जाँगर।
हवय भरोसा तोर, कभू झन होबे लबरा।
सुनले हमर गुहार, बरस जा झम झम बदरा।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा
(छत्तीसगढ़)

10 comments:

  1. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी

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  2. बहुत बढ़िया सृजन है भाई

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  3. वाह बरस जा झम झम बदरा। ज्ञानु भैया जी गजब सुघ्घर कुन्डलिया लिखे हव सादर बधाई।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दीदी

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  4. बहुत सुंदर रचना भैया जी

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