दोहा के 23 प्रकार :- जगदीश "हीरा" साहू
1.भ्रमर :- 22 गुरू, 4 लघु
बैरी घेरे हे इँहा, साजे संगी भेस।
दुर्गा काली शीतला, काटौ मोरो क्लेस।
2. सुभ्रमर :- 21 गुरू, 6 लघु
माटी मा उपजे बढ़े, माटी खेले खोर।
माटी के चोला बने, होही माटी तोर।।
3. शरभ :- 20 गुरू, 8 लघु
काकी जावै भात ले, चटनी भाजी दार।
डब्बा मा पानी धरे, जावै बुड़ती खार।।
4. श्येन :- 19 गुरू, 10 लघु
दाई के आराधना, करबो मिलके आज।
काली के कर साधना, पूरा होही काज।।
5. मण्डूक :- 18 गुरू, 12 लघु
दाई के किरपा बिना, जिनगी हे बेकार।
करले सेवा काम तैं, होबे भव ले पार।।
6. मर्कट :- 17 गुरू, 14 लघु
दुःख दरद ला झेल के, देथे मया दुलार।
ओ दाई ला झन भुला, जस गाये संसार।।
7. करभ :- 16 गुरू, 16 लघु
धान बोंय ब्यासी करे, खेत निदे सब साथ।
रखवारी चूके कहूँ, कुछु ना आवय हाथ।।
8. नर :- 15 गुरू, 18 लघु
ये जग मा हे तोर गा, बस एके ठन काम।
करत ददा के बंदगी, जप लेना प्रभु नाम।।
9. हंस :- 14 गुरू, 20 लघु
पेट भरे खेती करे, ददा हमर दिन-रात।
झन तड़पा वो बाप ला, इही धरम के बात।।
10. गयंद :- 13 गुरू, 22 लघु
होत बिहनिया जाग के, बासी खावय रोज।
थकय नहीँ जाँगर कभू, करय काम सब खोज।।
11. पयोधर :- 12 गुरू, 24 लघु
भजन करव भगवान के, छोड़ जगत के काम।
कट जाही जग बंधना, सुमिरव सीताराम।।
12. बल :- 11 गुरू, 26 लघु
खेवनहार उही हवय, श्री सीता पति राम।
झन भटकव दूसर डहर, करही हमरो काम।।
13. पान :- 10 गुरू, 28 लघु
पाये बर मनखे जनम, तरसे देव सुजान।
जिनगी अपन सँवार ले, झनकर गरब गुमान।।
14. त्रिकल :- 9 गुरू, 30 लघु
पूरन होवय काज गा, सुखी रहय परिवार।
घर मा बस सुनता रहय, करत रहन जयकार।।
15. कच्छप :- 8 गुरू, 32 लघु
तुँहर पेट कस बुद्धि अउ, बढ़य कान कस ज्ञान।
विपदा मोरे कम रहय, दव अइसन वरदान।।
16. मच्छ :- 7 गुरू, 34 लघु
अरज हवय गणराज जी, सुनलव बिनती मोर।
झन भटकय अब मन कभू, रहँव शरण मा तोर।।
17.शार्दूल :- 6 गुरू, 36 लघु
गरजत घुमड़त हे अबड़, बरसत हवय अषाढ़।
टप-टप टपकय छानही, छलकय नदियाँ बाढ़।।
18.अहिवर :- 5 गुरू, 38 लघु
कइसन दिन आवत हवय, अनपढ़ बाँटय ज्ञान।
पढ़-लिख नटवर नइ सकय, बिरथा करय गुमान।।
19.व्याल :- 4 गुरू, 40 लघु
खरखर-खरखर रुख उपर, मुसवा हर चढ़ जाय।
कटकट-कटकट दाँत करय, कतर-कतर सब खाय।।
20. विडाल :- 3 गुरू, 42 लघु
पढ़व-लिखव अब मन लगा, बनव अबड़ गुणवान।
करम करव सबझन सुघर, बगरय निरमल ज्ञान।।
21.श्वान :- 2 गुरू, 44 लघु
कटत हवय रुख हर अबड़, कउन ल मँय समझाँव।
गरम-गरम घर-बन लगय, मनभर मिलय न छाँव।।
22.उदर :- 1 गुरू, 46 लघु
शरण म लव वरदान दव, भटकय झन मन अउर।
अजर अमर अब मँय रहँव, मिलय तुँहर प्रभु ठउर।।
23.सर्प :- 48 लघु
महर-महर महकत रहय, सुघर हवन कस पउर।
अब सब घर उजड़त हवय, निरमल लगय न ठउर।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
25.12.19
1.भ्रमर :- 22 गुरू, 4 लघु
बैरी घेरे हे इँहा, साजे संगी भेस।
दुर्गा काली शीतला, काटौ मोरो क्लेस।
2. सुभ्रमर :- 21 गुरू, 6 लघु
माटी मा उपजे बढ़े, माटी खेले खोर।
माटी के चोला बने, होही माटी तोर।।
3. शरभ :- 20 गुरू, 8 लघु
काकी जावै भात ले, चटनी भाजी दार।
डब्बा मा पानी धरे, जावै बुड़ती खार।।
4. श्येन :- 19 गुरू, 10 लघु
दाई के आराधना, करबो मिलके आज।
काली के कर साधना, पूरा होही काज।।
5. मण्डूक :- 18 गुरू, 12 लघु
दाई के किरपा बिना, जिनगी हे बेकार।
करले सेवा काम तैं, होबे भव ले पार।।
6. मर्कट :- 17 गुरू, 14 लघु
दुःख दरद ला झेल के, देथे मया दुलार।
ओ दाई ला झन भुला, जस गाये संसार।।
7. करभ :- 16 गुरू, 16 लघु
धान बोंय ब्यासी करे, खेत निदे सब साथ।
रखवारी चूके कहूँ, कुछु ना आवय हाथ।।
8. नर :- 15 गुरू, 18 लघु
ये जग मा हे तोर गा, बस एके ठन काम।
करत ददा के बंदगी, जप लेना प्रभु नाम।।
9. हंस :- 14 गुरू, 20 लघु
पेट भरे खेती करे, ददा हमर दिन-रात।
झन तड़पा वो बाप ला, इही धरम के बात।।
10. गयंद :- 13 गुरू, 22 लघु
होत बिहनिया जाग के, बासी खावय रोज।
थकय नहीँ जाँगर कभू, करय काम सब खोज।।
11. पयोधर :- 12 गुरू, 24 लघु
भजन करव भगवान के, छोड़ जगत के काम।
कट जाही जग बंधना, सुमिरव सीताराम।।
12. बल :- 11 गुरू, 26 लघु
खेवनहार उही हवय, श्री सीता पति राम।
झन भटकव दूसर डहर, करही हमरो काम।।
13. पान :- 10 गुरू, 28 लघु
पाये बर मनखे जनम, तरसे देव सुजान।
जिनगी अपन सँवार ले, झनकर गरब गुमान।।
14. त्रिकल :- 9 गुरू, 30 लघु
पूरन होवय काज गा, सुखी रहय परिवार।
घर मा बस सुनता रहय, करत रहन जयकार।।
15. कच्छप :- 8 गुरू, 32 लघु
तुँहर पेट कस बुद्धि अउ, बढ़य कान कस ज्ञान।
विपदा मोरे कम रहय, दव अइसन वरदान।।
16. मच्छ :- 7 गुरू, 34 लघु
अरज हवय गणराज जी, सुनलव बिनती मोर।
झन भटकय अब मन कभू, रहँव शरण मा तोर।।
17.शार्दूल :- 6 गुरू, 36 लघु
गरजत घुमड़त हे अबड़, बरसत हवय अषाढ़।
टप-टप टपकय छानही, छलकय नदियाँ बाढ़।।
18.अहिवर :- 5 गुरू, 38 लघु
कइसन दिन आवत हवय, अनपढ़ बाँटय ज्ञान।
पढ़-लिख नटवर नइ सकय, बिरथा करय गुमान।।
19.व्याल :- 4 गुरू, 40 लघु
खरखर-खरखर रुख उपर, मुसवा हर चढ़ जाय।
कटकट-कटकट दाँत करय, कतर-कतर सब खाय।।
20. विडाल :- 3 गुरू, 42 लघु
पढ़व-लिखव अब मन लगा, बनव अबड़ गुणवान।
करम करव सबझन सुघर, बगरय निरमल ज्ञान।।
21.श्वान :- 2 गुरू, 44 लघु
कटत हवय रुख हर अबड़, कउन ल मँय समझाँव।
गरम-गरम घर-बन लगय, मनभर मिलय न छाँव।।
22.उदर :- 1 गुरू, 46 लघु
शरण म लव वरदान दव, भटकय झन मन अउर।
अजर अमर अब मँय रहँव, मिलय तुँहर प्रभु ठउर।।
23.सर्प :- 48 लघु
महर-महर महकत रहय, सुघर हवन कस पउर।
अब सब घर उजड़त हवय, निरमल लगय न ठउर।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
25.12.19
बहुत सुन्दर सर जी
ReplyDeleteधन्यवाद निषादराज जी
Deleteवाह: बहुत बढ़िया जानकारी गुरुदेव
ReplyDeleteधन्यवाद गजेंद्र जी
Deleteगज़ब सुग्घर सर
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteछंद खजाना मा शामिल करे बर धन्यवाद भैया जी
ReplyDeleteबेहतरीन सर
ReplyDeleteधन्यवाद लहरे जी
Deleteगजब।
ReplyDeleteधन्यवाद सिन्हा जी
Deleteधन्यवाद सिन्हा जी
DeleteWaah gurudev sabse accha hai..pranam..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत ही बढिया संकलन हे भाई
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी, प्रणाम
Deleteधन्यवाद दीदी, प्रणाम
Deleteधन्यवाद दीदी, प्रणाम
Deleteबहुत सुन्दर सर जी 👌💐💐🙏
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल सलाम जी
Deleteवाह वाह लाजवाब सृजन बर, बहुत बधाई साहू जी
ReplyDeleteउत्साहवर्धन बर धन्यवाद चन्द्राकर जी
Deleteअप्रतिम।
ReplyDeleteअपने आप में सम्पूर्ण दोहों की रचना । बधाई ।
सर जी मुझे इस दोहा के प्रकार से सम्बंधित ग्रन्थ मिल पायेगा क्या 8839894196 ये मेरा no हैं कृपया बताए मदद की आशा है।
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