*कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख*
*असाढ़*
1-आगे हवय असाढ़ अब,हाँसत हवँय किसान।
नॉगर बइला ला धरे, अउ टुकनी मा धान।
अउ टुकनी मा धान,खेत कोती जावत हें।
मन मा खुशी अपार,गीत मन भर गावत हें।
पानी बरसत देख,ताप भुइयाँ के भागे।
खेती मीत असाढ़,झमाझम नाचत आगे।
*आत्महत्या*
2- घेरी बेरी हे उठत ,मन मा एक सवाल।
काबर खुद ला मारके,जावँय यम के गाल।
जावय यम के गाल,करँय बिरथा जिनगानी।
करमहीन डरपोक ,करँय अइसन नादानी।
मानुष तन अनमोल,राख के होगे ढेरी।
नइ सुलझत हे प्रश्न,,उठत हे घेरी बेरी।
*कोरोना*
3--कोरोना ले रात दिन ,लड़त हवय संसार।
बड़का बड़का शेर मन ,बनगे हवँय सियार।
बनगे हवँय सियार,माँद मा खुसरे बइठे।
होगे हें लाचार ,जेन मन अब्बड़ अइठे।
जिनगी बस अनमोल,करे का चाँदी सोना।
सउँहत घूमे काल,आय बनके कोरोना।
आशा देशमुख
*असाढ़*
1-आगे हवय असाढ़ अब,हाँसत हवँय किसान।
नॉगर बइला ला धरे, अउ टुकनी मा धान।
अउ टुकनी मा धान,खेत कोती जावत हें।
मन मा खुशी अपार,गीत मन भर गावत हें।
पानी बरसत देख,ताप भुइयाँ के भागे।
खेती मीत असाढ़,झमाझम नाचत आगे।
*आत्महत्या*
2- घेरी बेरी हे उठत ,मन मा एक सवाल।
काबर खुद ला मारके,जावँय यम के गाल।
जावय यम के गाल,करँय बिरथा जिनगानी।
करमहीन डरपोक ,करँय अइसन नादानी।
मानुष तन अनमोल,राख के होगे ढेरी।
नइ सुलझत हे प्रश्न,,उठत हे घेरी बेरी।
*कोरोना*
3--कोरोना ले रात दिन ,लड़त हवय संसार।
बड़का बड़का शेर मन ,बनगे हवँय सियार।
बनगे हवँय सियार,माँद मा खुसरे बइठे।
होगे हें लाचार ,जेन मन अब्बड़ अइठे।
जिनगी बस अनमोल,करे का चाँदी सोना।
सउँहत घूमे काल,आय बनके कोरोना।
आशा देशमुख
भाव प्रवण कुंड़लिया, बहुत सुग्घर बहुत बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीदी जी
ReplyDeleteउत्कृष्ठ रचना दीदी
ReplyDeleteसबो भाई बहिनी ला सादर आभार
ReplyDelete