विश्व पर्यावरण दिवस विशेषांक विविध छंदबद्ध रचनायें-
कुंडलियाँ छंद-गजानन्द पात्रे
आशा हे पर्यावरण, सांस तंत्र आधार ।
बिना रूख राई लगे, बिरथा ये संसार ।।
बिरथा ये संसार, रूख दे सुख पुरवाई ।
मन महके घर द्वार, सुंगधित हो अमराई ।।
फल औषधि दे फूल, बने चिड़िया घर वासा ।
चलौ बचाबो पेड़, रखे हरियाली आशा ।।
बाढ़त युग विज्ञान के, पेड़ कटावत रोज ।
रहे सलामत ये प्रकृति, कुछ उपाय तो खोज ।।
कुछ उपाय तो खोज, चलावव झन जी आरी ।
खूब लगावव पेड़, चलौ मिल सब सँगवारी ।।
बनके ठाढ़े सांप, कारखाना फ़न काढ़त ।।
तभे प्रदूषण आज, हवा मा बहुते बाढ़त ।।
छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
मनहरण घनाक्षरी छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
पर्यावरण-
हरा भरा रूख राई, निक लागे पुरवाई
फल फूल जड़ी बूटी, कुटिया छवाय जी
शुद्ध सांस हवा देथे , दूर प्रदूषन होथे
झूमर झूमर ये हा, पानी बरसाय जी
पलंग दिवान बने, महल अटारी तने
हमरो किसान भाई , नाँगर बनाय जी
पटिया धारन खड़े , कारखाना बड़े बड़े
बचपन रचुलिया , इही हा झुलाय जी
अबादी बढ़त हवै, रुखवा कटत हवै
एक दिन पड़ जाही, छाँव लुलवाय जी
तोर मोर झन करौ, येकर जतन करौ
संगी साथी सुख दुख, मितवा कहाय जी
जनम मरन रहे, संगवारी बन रहे
चिता बन अंत घड़ी, तन ला जलाय जी।
जिनगी सुफल करौ, रसदा सरग धरौ
बिरवा धरम सदा , जग हरियाय जी
छंदकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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छप्पय छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
चलव लगाबो पेड़,सबो झन करबो सेवा।
देथे सबला छाँव,फूल फर पाबो मेवा।
फुरहुर हवा बहाय,तेन मा सांसा चलथे।
पानी घलो गिराय,तभे जी खेती पलथे।
लकड़ी बूटी छाल हा,आथे अब्बड़ काम जी।
जंगल झाड़ी रूख मन,हावय सुख के धाम जी।।
छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
[05/06, 1:57 PM] आशा देशमुख: पर्यावरण दिवस पर
कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख
झन काटव गा पेड़ ला, जंगल हे वरदान।
रुखवा से पानी हवा, हवा सबो के प्रान।
हवा सबो के प्रान,सुनव गा पेड़ लगावव।
खुश रहय संसार,जीव बर छाँव बचावव।
रहय दया के भाव,मया जग में सब बाँटव।
पर्यावरण बचाव,पेड़ झन कोनो काटव।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)
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सार छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
"धरती दाई "
चंदन माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।
बंजर होगे खेत खार सब,काय फसल उपजावौं।
सड़क सुते हे लात तान के,महल अटारी ठाढ़े।
मोर नैन मा निंदिया नइहे,संसो दिनदिन बाढ़े।
नाँव बुझागे रुख राई के,धरा बरत हे बम्बर।
मन भीतर मा मातम छागे,काय करौं आडम्बर।
सिसक सकत नइ हावौं दुख मा,कइसे राग लमावौं।
चंदन माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।
मोटर गाड़ी कार बनत हे,उपजै सोना चाँदी।
नवा जमाना जल थल जीतै,पतरी परगे माँदी।
तरिया परिया हरिया हरगे,बरगे मया ठिठोली।
हाँव हाँव अउ खाँव खाँव मा,झरगे गुरतुर बोली।
नव जुग हे अँधियार कुँवा कस,भेड़ी असन झपावौं।
चंदन माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।
घुरय हवा पानी मा महुरा ,चूरय धरती दाई।
सुरसा मुँह कस स्वारथ बाढ़य,टूटय भाई भाई।
हाय विधाता भूख मार दे,तन ला कर दे कठवा।
नवा समै ला माथ नवाहूँ,जिनगी भर बन बठवा।
ठिहा ठौर के कहाँ ठिकाना,दरदर भटका खावौं।
चंदन माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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आभार सवैया- बोधन राम निषादराज
पर्यावरण
राखौ सफाई गली खोर पारा चलौ साथ मा जी सँगे मा करौ काज।।
रापा कुदारी धरौ खाँध झौंहा बहारौ बटोरौ करौ जी नहीं लाज।।
आवौ लगावौ सबो पेड़ भाई तभे तो हवा शुद्ध पाहू बने आज।।
होहू निरोगी बने छाँव मा जी चिरैया बसेरा बनावै करौ साज।।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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बागीस्वरी सवैया- मोहन लाल वर्मा
कहूँ पेड़ ला काटबे जी तहूँ हा, हवा फेर ताजा ग पाबे कहाँ ।
चलाबे खुदे पाँव मा तोर आरा, सहीं गा कहौं तै लुकाबे कहाँ ।
नँगाबे तहीं तोर हाँसी-खुशी ला, धरे हाथ पैसा बिसाबे कहाँ ।
जनाही कहूँ बाट मा घाम भारी, बता जीव ला तै जुड़ाबे कहाँ ।।
छंदकार- मोहन लाल वर्मा
ग्राम- अल्दा, तिल्दा, रायपुर
(छत्तीसगढ़ )
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कुंडलियाँ- दिलीप कुमार वर्मा
बबा जमाना मा रहे, जंगल चारो ओर।
ददा जमाना आत ले, रुखुवा बचे न कोर।
रुखुवा बचे न कोर, सोर अब कोन करय जी।
होगे जंगल साफ, बेंच के सबो धरय जी।
करना हावय चेत, उमर जब लम्बा पाना।
जंगल वापिस लाव, रहे जे बबा जमाना।1।
बीते बात बिसार दे, अब आगू के सोंच।
खाली हाबय मेंड़ हा, अब तो रुखुवा खोंच।
अब तो रुखुवा खोंच, लगा ले तँय अमरइया।
पाबे शीतल छाँव, पेंड़ के नीचे भइया।
बिगड़े नइ हे बात, करे मिहनत ते जीते।
आज लगा तँय पेंड़, समे हर नइ हे बीते।2।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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लावणी छंद - मँय धरती हुँतकारत हौं - विरेन्द्र कुमार साहू
दवा रसायन डार-डार के, करव नहीं कोरा बंजर।
मँय तुँहरे महतारी आवँव, मारव झन मोला खंजर।
गोबर कचरा के खातू मा, कोरा जब्बर हरियाथे।
घात बीरता आनी-बानी, चारो कोती लहराथे।
घात अन्न उपजा के देहौं, सिरतो किरिया पारत हौं।
सुन लौ मोर जुबानी बेटा, मँय धरती हुँतकारत हौं।
मोर मेर के हीरा मोती, चाँदी सोना सब तुँहरे।
रकम-रकम के खनिज भरे हे, दोना दोना सब तुँहरे।
लोभ करव झन तुम ज्यादा के, खानव बस अपने पुरता।
सिरा जही भंडार एक दिन, करलव पुरखा के सुरता।
ध्यान रखव गा मोरो तबियत, पीरा मा किलकारत हौं।
सुन लौ मोर जुबानी बेटा, मँय धरती हुँतकारत हौं।
हवा दवा जंगल ले मोरे, जंगल मोरे सुघराई।
सबे जीव परिवार मोर हे, नर सबके बड़का भाई।
देत पँदोली करव तरक्की, बैर भाव झन पालव गा।
साथ साथ सब रहव सुमत ले, पर्यावरण बचालव गा।
आज तुँहर सुख सुविधा खातिर, अपन मती मँय मारत हौं।
सुन लौ मोर जुबानी बेटा, मँय धरती हुँतकारत हौं।
छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका), जिला - गरियाबंद(छ.ग.)
9993690899
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आशा आजाद: वाम सवैया - आशा आजाद
कटावत जंगल आज सुनौ सब जीव बड़ा करलावत हावै।
सुखावत हे नदियाँ नरवा बरसा बिन जी अकुलावत जावै।
उजारत जंगल लोभ बड़ा अब पेड़ कहूँ नइ देख लगावै।
बचादव पेड़ लगादव आज प्रदूषण ले सब मुक्ति ल पावै।
छंदकार - आशा आजाद
कोरबा छत्तीसगढ़
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: शक्ति छंद :- लगावव पेंड़
बदलगे हवय ये, सबो गाँव हा,
उराठिल लगत हे, अबड़ छाँव हा।
कटागे लगे पेड़, सब खार के,
बँटागे हवय छाँट, निरवार के।।
बनाये अपन घर, नदी पाट के,
छवाये बने पेंड़, ला काट के।
सुधारे जगत बर, अपन रुप नहीं,
उजाड़े अपन हित म, जंगल तहीं।।
जतन के रखव आज, भुइँया बने,
लगावव सबो पेड़, ला बिन गने।
अपन जान के देख, दुख ला हरव,
तभे जागही भाग, सेवा करव।।
जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
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रामकुमार चन्द्रवंसी: ( पादाकुलक छन्द)
"आगे परियावरण दिवस"
आगे परियावरण दिवस हर।
संदेसा बगराबो घर-घर।
रुख-राई के लाभ बताबो।
जुरमिल पौधा चलव लगाबो।।
बढ़ही पौधा मिलही छइहाँ।
लगही सरग बरोबर भुइयाँ।
परदूषण हम दूर भगाबो।
हरदम शुद्ध हवा हम पाबो।।
रुख ले लकड़ी लासा पाबो।
पक्का पक्का फर हम खाबो।
रुख कस जग मा नइहे दानी।
लाथे रुख हर बादर-पानी।।
काटे हावन पेड़ धड़ाधड़।
बाढ़त हावय गर्मी अड़बड़।
समझत हावन करके गड़बड़।
रुख के बिक्कट लम्बा हे जड़।।
आवव हम सब किरिया खाबो।
मनखे पुट बिरवा ल लगाबो।
जुरमिल भुइयाँ ला हरियाबो।
भुइयाँ सरग बरोबर पाबो।।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
9179798316
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बलराम जी: मनहरण घनाक्षरी
(सारांश-पर्यावरण)
संसो होगे रोजी रोटी, बेघर हे कोटि-कोटि,
बंद होगे कामकाज, रोग बिकराल हे ।
का गरीब का अमीर, अनपढ़ पढ़े लिखे,
सबोबर बनगे ये, कोरोना हा काल हे ।
हे मंदिर मसजिद, बंद चर्च गुरुद्वारा,
उपर वाले के घलो, कृपा के दुकाल हे ।
जीव जन्तु पेड़ पौधा, माटी के विनाश करे,
तभे तोर रे मनखे, आज बारा हाल हे ।
बलराम चंद्राकर
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: हरिगीतिका छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
"पर्यावरण"
करबो जतन मिलके सबो, नइ काटबो हम पेड़ ला।
सुग्घर लगे हर खेत के, हरिहर बनाबो मेड़ ला।
मिलथे जिहाँ छइहाँ बने, फल फूल बड़ रसदार जी।
बड़ भाग ला सहरात हन, हे पेड़ के भरमार जी।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
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छंद चकोर सवैया
-पोखन लाल जायसवाल
रोज कटे अब जंगल के रुख हावय कोन इहाँ रखवार।
आवत-जावत खोजत हे छइहाँ सब पेड़ बचे नइ खार।
जीव जनावर भागय जान बचावत जंगल के मुख टार।
देखत जंगल जीव गली अब मानुख देवत हे फट मार।।
बोवत हावय कोन इहाँ रुख काटत भोंगत हे सब फेर।
पेड़ सिरावत देख दिनोंदिन छावत हे मन मा अब ढेर।
जीव जनावर संकट मा अउ संकट मा सब बब्बर शेर।
सोचव थोकिन पेड़ लगावन होवय काबर जी अउ देर।
छंदकारःपोखन लाल जायसवाल
पलारी छग.
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: कुण्डलिया-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
आज मनावत हे मनुज, पर्यावरण तिहार।
घर बइठे देखत हवय, हरियर खेती-खार।
हरियर खेती-खार, निहारय जंगल झाड़ी।
रोपय कइठन पेंड़, झाड़ बिन मोरे माड़ी।
मोबाइल मा शुद्ध, हवा जल भूम बनावत।
पर्यावरण तिहार, मनुज हे आज मनावत।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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रूपमाला छंद - रामकली कारे
पेड़ ले पर्यावरण हे, का शहर का गाॅव।
काटहू झन पेड़ पौधा, खेलहू झन दाॅव।।
ताल तरिया ले जगत मा, जीव के हे आस।
लीम पीपर के हवा हा, देय सुग्घर साॅस।।
देख हरियर मन लुभाये, आय पंछी तीर।
कोयली हा गीत गाथे, नइ धरे वो धीर।।
होय झन बंजर इहाॅ के, आज माटी मोर।
खाव किरिया ध्यान धरलव, झन करौ गा शोर।।
पेड़ एके तॅय लगाले, काम होही सार।
छेड़ झन पर्यावरण ला, होय गा उपकार।।
कर उदिम पानी बचा ले, होय बड़ अनमोल।
देख मानव आज सुग्घर, बोल बानी तोल।।
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद -अश्वनी कोसरे**
"पर्यावरण संरक्षण"
जंगल झाड़ी झन काटव जी, पेड़ लगालव ओरी ओर|
धरती मा छाही हरियाली, बरसाहीं बादर घनघोर||
सुख के दिन हर बहुरत आही, मेंढ़ पार रोपन कर जोर|
पारी पारी पौधा लगही, पानी पुरवइ मारे टोर|
बनराई के सिरजन लेजी, सवँर जही घानी के कोर|
महर-महर ममहाही कोना, सोना भुइँया के हर छोर||
जीव जंतु के हरलव पीरा, झन तँय छइँहा माड़ा टोर|
दाना पानी सबला देके, जीव जगत बर मया बटोर||
छंदकार -अश्वनी कोसरे
रहँगी पोंड़ी कवर्धा कबीरधाम
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कुंडलिया छंद - सरस्वती चौहान
सुनलव दीदी मोर ओ, हरियर होही गाँव।
फूल संग मा फल घलो, मिलही सुग्घर छाँव।।
मिलही सुग्घर छाँव, जगा लव पीपर अउ बर।
पर्यावरण बचाव, कटे झन रुखवा घर घर।।
करलव प्रण ये आज, थोरकुन सबझन गुनलव।
झन वन होय विनाश, मोर ओ दीदी सुनलव।।
छंदकार - सरस्वती चौहान
जशपुर नगर छत्तीसगढ़
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अमित: कुंडलिया छंद
रुखराई सिरतों सुघर, सरबस देथे छाँव।
चिटिक बइठ लेथन जुड़ा, रेंगत थकथे पाँव।।
रेंगत थकथे पाँव, चटाचट जरथे भुँइयाँ।
आगी बरसत घाम, बटोही पाथे छँइयाँ।।
कहय 'अमित' करजोड़, सदा रुखुवा सुखदाई।
परन उठावव आज, बचाबो हम रुखराई।।
सुघराई बड़ बाढ़थे, चलव लगाबो पेड़।
भाँठा परिया डीह अउ, अपन खेत के मेड़।।
अपन खेत के मेड़, छुटय झन कोनो रस्ता।
कहाँ कठिन ये काज, पुण्य के मारग सस्ता।।
कहय 'अमित' करजोड़, लगाथन चल रुखराई।।
धरती के सिंगार, बाढ़ही बड़ सुघराई।।
पुरवाई फुरहुर बहय, गजब होय जुड़वास।
फुलुवा फर थाँगा जरी, हमरे हितवा खास।
हमरे हितवा खास, पेड़ के महिमा जानव।
जिनगीभर दिनरात, संग मा सिरतों मानव।।
आथे बहुते काम, सहीं मा ये रुखराई।
ले बर साँसा शुद्ध, पेड़ के चाही पुरवाई।।
करलाई हा बाढ़ही, झन तैं रुखुवा काट।
पेड़ लगा ले तैं गियाँ, खेत खार अउ बाट।
खेत खार अउ बाट, सुघर भुँइयाँ हरियाही।
हरियर-हरियर देख, हमर जिनगी मुसकाही।।
कहय 'अमित' करजोड़, बनय झन जग दुखदाई।
जतन करव जी पेड़, मेटदव सब करलाई।।
कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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: दोहा छंद-चित्रा श्रीवास
तपसी जइसे पेड़ हा,देख खड़े गंभीर ।
मनखे वोला काट के ,देथे कतका पीर ।।
छाया पानी हा मिले ,शुद्ध हवा के संग।
वोखर किरपा भूल गे,मनखे मन के तंग।
जंगल झाड़ी काट के,बस्ती नवा बसाय ।
पड़गे जग हा छोट जी ,मनखे नही समाय।।
झूम झूम के पेड़ हा,करथे इही पुकार।
मोला मनखे तँय बचा,देहँव तोला तार।
पेड़ बचा के राख ले,जिनगी के आधार।
डोर साँस के हे बँधे, येखर से संसार।।
छंद कार- चित्रा श्रीवास
कोरबा छत्तीसगढ़
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रामकुमार चन्द्रवंसी: ( पादाकुलक छन्द)
"आगे परियावरण दिवस"
आगे परियावरण दिवस हर।
संदेसा बगराबो घर-घर।
रुख-राई के लाभ बताबो।
जुरमिल पौधा चलव लगाबो।।
बढ़ही पौधा मिलही छइहाँ।
लगही सरग बरोबर भुइयाँ।
परदूषण हम दूर भगाबो।
हरदम शुद्ध हवा हम पाबो।।
रुख ले लकड़ी लासा पाबो।
पक्का पक्का फर हम खाबो।
रुख कस जग मा नइहे दानी।
लाथे रुख हर बादर-पानी।।
काटे हावन पेड़ धड़ाधड़।
बाढ़त हावय गर्मी अड़बड़।
समझत हावन करके गड़बड़।
रुख के बिक्कट लम्बा हे जड़।।
आवव हम सब किरिया खाबो।
मनखे पुट बिरवा ल लगाबो।
जुरमिल भुइयाँ ला हरियाबो।
भुइयाँ सरग बरोबर पाबो।।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
9179798316
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बलराम जी: मनहरण घनाक्षरी
(सारांश-पर्यावरण)
संसो होगे रोजी रोटी, बेघर हे कोटि-कोटि,
बंद होगे कामकाज, रोग बिकराल हे ।
का गरीब का अमीर, अनपढ़ पढ़े लिखे,
सबोबर बनगे ये, कोरोना हा काल हे ।
हे मंदिर मसजिद, बंद चर्च गुरुद्वारा,
उपर वाले के घलो, कृपा के दुकाल हे ।
जीव जन्तु पेड़ पौधा, माटी के विनाश करे,
तभे तोर रे मनखे, आज बारा हाल हे ।
बलराम चंद्राकर
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: हरिगीतिका छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
"पर्यावरण"
करबो जतन मिलके सबो, नइ काटबो हम पेड़ ला।
सुग्घर लगे हर खेत के, हरिहर बनाबो मेड़ ला।
मिलथे जिहाँ छइहाँ बने, फल फूल बड़ रसदार जी।
बड़ भाग ला सहरात हन, हे पेड़ के भरमार जी।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
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छंद चकोर सवैया
-पोखन लाल जायसवाल
रोज कटे अब जंगल के रुख हावय कोन इहाँ रखवार।
आवत-जावत खोजत हे छइहाँ सब पेड़ बचे नइ खार।
जीव जनावर भागय जान बचावत जंगल के मुख टार।
देखत जंगल जीव गली अब मानुख देवत हे फट मार।।
बोवत हावय कोन इहाँ रुख काटत भोंगत हे सब फेर।
पेड़ सिरावत देख दिनोंदिन छावत हे मन मा अब ढेर।
जीव जनावर संकट मा अउ संकट मा सब बब्बर शेर।
सोचव थोकिन पेड़ लगावन होवय काबर जी अउ देर।
छंदकारःपोखन लाल जायसवाल
पलारी छग.
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: कुण्डलिया-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
आज मनावत हे मनुज, पर्यावरण तिहार।
घर बइठे देखत हवय, हरियर खेती-खार।
हरियर खेती-खार, निहारय जंगल झाड़ी।
रोपय कइठन पेंड़, झाड़ बिन मोरे माड़ी।
मोबाइल मा शुद्ध, हवा जल भूम बनावत।
पर्यावरण तिहार, मनुज हे आज मनावत।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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रूपमाला छंद - रामकली कारे
पेड़ ले पर्यावरण हे, का शहर का गाॅव।
काटहू झन पेड़ पौधा, खेलहू झन दाॅव।।
ताल तरिया ले जगत मा, जीव के हे आस।
लीम पीपर के हवा हा, देय सुग्घर साॅस।।
देख हरियर मन लुभाये, आय पंछी तीर।
कोयली हा गीत गाथे, नइ धरे वो धीर।।
होय झन बंजर इहाॅ के, आज माटी मोर।
खाव किरिया ध्यान धरलव, झन करौ गा शोर।।
पेड़ एके तॅय लगाले, काम होही सार।
छेड़ झन पर्यावरण ला, होय गा उपकार।।
कर उदिम पानी बचा ले, होय बड़ अनमोल।
देख मानव आज सुग्घर, बोल बानी तोल।।
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद -अश्वनी कोसरे**
"पर्यावरण संरक्षण"
जंगल झाड़ी झन काटव जी, पेड़ लगालव ओरी ओर|
धरती मा छाही हरियाली, बरसाहीं बादर घनघोर||
सुख के दिन हर बहुरत आही, मेंढ़ पार रोपन कर जोर|
पारी पारी पौधा लगही, पानी पुरवइ मारे टोर|
बनराई के सिरजन लेजी, सवँर जही घानी के कोर|
महर-महर ममहाही कोना, सोना भुइँया के हर छोर||
जीव जंतु के हरलव पीरा, झन तँय छइँहा माड़ा टोर|
दाना पानी सबला देके, जीव जगत बर मया बटोर||
छंदकार -अश्वनी कोसरे
रहँगी पोंड़ी कवर्धा कबीरधाम
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कुंडलिया छंद - सरस्वती चौहान
सुनलव दीदी मोर ओ, हरियर होही गाँव।
फूल संग मा फल घलो, मिलही सुग्घर छाँव।।
मिलही सुग्घर छाँव, जगा लव पीपर अउ बर।
पर्यावरण बचाव, कटे झन रुखवा घर घर।।
करलव प्रण ये आज, थोरकुन सबझन गुनलव।
झन वन होय विनाश, मोर ओ दीदी सुनलव।।
छंदकार - सरस्वती चौहान
जशपुर नगर छत्तीसगढ़
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अमित: कुंडलिया छंद
रुखराई सिरतों सुघर, सरबस देथे छाँव।
चिटिक बइठ लेथन जुड़ा, रेंगत थकथे पाँव।।
रेंगत थकथे पाँव, चटाचट जरथे भुँइयाँ।
आगी बरसत घाम, बटोही पाथे छँइयाँ।।
कहय 'अमित' करजोड़, सदा रुखुवा सुखदाई।
परन उठावव आज, बचाबो हम रुखराई।।
सुघराई बड़ बाढ़थे, चलव लगाबो पेड़।
भाँठा परिया डीह अउ, अपन खेत के मेड़।।
अपन खेत के मेड़, छुटय झन कोनो रस्ता।
कहाँ कठिन ये काज, पुण्य के मारग सस्ता।।
कहय 'अमित' करजोड़, लगाथन चल रुखराई।।
धरती के सिंगार, बाढ़ही बड़ सुघराई।।
पुरवाई फुरहुर बहय, गजब होय जुड़वास।
फुलुवा फर थाँगा जरी, हमरे हितवा खास।
हमरे हितवा खास, पेड़ के महिमा जानव।
जिनगीभर दिनरात, संग मा सिरतों मानव।।
आथे बहुते काम, सहीं मा ये रुखराई।
ले बर साँसा शुद्ध, पेड़ के चाही पुरवाई।।
करलाई हा बाढ़ही, झन तैं रुखुवा काट।
पेड़ लगा ले तैं गियाँ, खेत खार अउ बाट।
खेत खार अउ बाट, सुघर भुँइयाँ हरियाही।
हरियर-हरियर देख, हमर जिनगी मुसकाही।।
कहय 'अमित' करजोड़, बनय झन जग दुखदाई।
जतन करव जी पेड़, मेटदव सब करलाई।।
कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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: दोहा छंद-चित्रा श्रीवास
तपसी जइसे पेड़ हा,देख खड़े गंभीर ।
मनखे वोला काट के ,देथे कतका पीर ।।
छाया पानी हा मिले ,शुद्ध हवा के संग।
वोखर किरपा भूल गे,मनखे मन के तंग।
जंगल झाड़ी काट के,बस्ती नवा बसाय ।
पड़गे जग हा छोट जी ,मनखे नही समाय।।
झूम झूम के पेड़ हा,करथे इही पुकार।
मोला मनखे तँय बचा,देहँव तोला तार।
पेड़ बचा के राख ले,जिनगी के आधार।
डोर साँस के हे बँधे, येखर से संसार।।
छंद कार- चित्रा श्रीवास
कोरबा छत्तीसगढ़
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कुंडलिया छंद
काँटव झन गा पेड़ ला,धरती करे पुकार ।
पानी मिलही गा नहीं, मचही हाहाकार ।।
मचही हाहाकार, कहाँ छइँहा तँय पाबे ।
जरे भोभरा पाँव, सोच के तब पछताबे ।।
पंछी तड़पे हाय, मया ला तुम झन बाँटव।
मीरा कह कर जोड़, पेड़ ला तुम झन काँटव ।।
धरती कहे पुकार के,सुन लव मोरो बात ।
रुख राई ला काट के,झन करहू सब घात।
झन करहू सब घात,तभे हरियाली पाहू।
बइठे शीतल छाँव, राम के तुम गुण गाहू।।
महतारी हा रोय,करो झन बेटा गलती।
देथँव अन वरदान,कहे रो रो के धरती।।
बेटा मोर किसान तँय,मँय महतारी तोर।
हरियाली लुगरा हरे, लहरे पवन झकोर।।
लहरे पवन झकोर, तुमन ला मैं ओढाथँव।
शीतल छइँहा देय,महूँ हा बड़ सुख पाथँव ।।
पानी हो कमजोर,नास ला धरथे लेटा।
छाती फाटे मोर ,हाय मोरे तँय बेटा।।
केवरा यदु "मीरा "छंदकार
राजिम
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राजकुमार बघेल: रूपमाला छंद
पेड़ पौधा आ लगाले, देख संगी ठाॅऺंव ।
जीव आहॅऺंय घाम घाले, रोज पाहय छाॅऺंव ।।
देत हावय दाम बिन ये, प्रान दायी वात ।
पाय हावन आज जिनगी, मान लेना बात ।।
हे सरी सुख के अधारा, जान ले संसार ।
बोह के राखे मुड़ी मा, देख जग के भार ।।
पेड़ हे तव कल इहाॅऺं हे, आग पानी आज ।
हे बचाना जान सबके, जाग मनुवा जाग ।।
अमृतध्वनि छंद-
जाबे का तॅऺंय छोड़ के,पेड़ लगाले आज ।
पीढ़ी लेही नाम ये, करव नेक ये काज ।।
करव नेक ये, काज बनाले, नाम कमाले ।
रीत चलाले, मीत बनाले, खुशी मनाले ।।
पेड़ लगाबे, तन छइहाबे, पुन ला पाबे ।
कभू भुलाबे, गारी खाबे, जब तॅऺंय जाबे ।।
कुण्डलिया छंद-
आवव दिवस मनाव ये, पर्यावरण तिहार ।
बगरे जन संदेश ये, जिनगी बर जे सार ।।
जिनगी बर जे सार,मिले हे सुग्घर मौका ।
पेड़ लगावव आज, सीख पीढ़ी बर ठौका ।।
सार्थक होवय काज,चाह हिरदे मा राखव ।
रीत चलय संसार, मीत बन जुर मिल आवव ।।
छंदकार- राज कुमार बघेल
ग्राम सेन्दरी, जिला
बिलासपुर (छ.ग.)
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सुग्घर संग्रह! पर्यावरण बर जागरण संदेश!
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संकलन गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन तैयार होये हे, सबो रचनाकार मन ला पर्यावरण दिवस के बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर संकलन,गुरुदेव ।सादर नमन ।
ReplyDeleteशानदार संकलन गुरूदेव एक ले बढ़ के एक वाहहहहह
ReplyDeleteशानदार संकलन गुरूदेव एक ले बढ़ के एक वाहहहहह
ReplyDeleteसुग्घर संकलन संदेश देती रचना सबक साधक भाई बहिनी मन ला गाड़ा गाड़ा बधई ।
ReplyDeleteशानदार संकलन
ReplyDeleteSHAANDAAR
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