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Monday, June 22, 2020

कुण्डलियाँ छंद -दुर्गा शंकर इजारदार

कुण्डलियाँ छंद -दुर्गा शंकर इजारदार

लकड़ी-

लकड़ी हे बड़ काम के ,राखव चेत सकेल ,
जनम मरन के जात ले ,एकरेच हावय खेल ,
एकरेच हावय खेल ,जनम ले लइका सेंकव ,
खेले निकलव खोल,खेल गिल्ली के खेलव ,
नाँगर जोतव खेत ,बाँध के साफा पगड़ी ,
अंत समय मा राख ,करै जी मरघट लकड़ी ।।

चप्पल-

चप्पल ला कम आँक झन , आवय काम हजार ,
चटकत राहय भोंभरा ,पहिर चलव बाजार ,
पहिर चलव बाजार ,गड़े नइ गोड़ म काँटा ,
जब करे छेड़छाड़,गाल मा पड़थे साँटा ,
बड़का होथे घात ,बजे तब खप्पल खप्पल ,
नेता फिरे जुबान ,हार बन जाथे चप्पल।।

बहरी -

बहरी खैत्ता मत समझ ,आवै अब्बड़ काम ,
कूड़ा करकट झाड़ के ,घर करथे जी धाम ,
घर करथे जी धाम ,करे लक्ष्मी हा बासा ,
आवै सब दिन काम ,सबो घर बारह मासा ,
बड़े बिहनिया हाथ ,धरे देहाती शहरी,
किसिम किसिम हे नाम ,फूल खरहर गा बहरी ।।

दुर्गा शंकर इजारदार -सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

4 comments:

  1. गज़ब सुघ्घर रचना सर

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  2. वाह्ह वाह अब्बड़ सुग्घर कुण्डलियाँ भइया 🙏🙏

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  3. गजब बाहरी के महत्ता ला बताय हव रामकुमार जी ।बधाई

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