रोला छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - हार
अपन हार स्वीकार, रखे रह कोशिश जारी।
होही तोरो जीत, एक दिन आही पारी।।
हार-जीत हा मीत, खेल मा होवत रहिथे।
अंतस ले स्वीकार, इही ला समता कहिथे।।
अपन हार ले सीख, तभे गा आघू बढ़बे।
तभे जीत के मीत, निसैनी मा तँय चढ़बे।।
जे हे कमी सुधार, बनाले खुद ला काबिल।
तोरो होही नाँव, विजेता मन मा शामिल।।
विषय - साफ-सफाई/स्वच्छता
घर-बाहिर अपनाव, सबो झन साफ-सफाई।
रही रोग मन दूर, इही मा हमर भलाई।।
बने रथे परिवेश, तभे पहुना मन आथें।
साफ-सफाई देख, प्रशंसा करके जाथें।।
पड़ जाहू बीमार, गंदगी झन फैलावव।
काया रही निरोग, स्वच्छता ला अपनावव।।
अपन शहर अउ गाँव, बनावव सब मिल सुग्घर।
सड़क गली अउ खोर, दिखे चंदा कस उज्जर।।
विषय - मलेरिया
मलेरिया हा मीत, असर जब अपन दिखाथे।
जर मा काँपय देह, पछीना अब्बड़ आथे।।
अस्पताल मा जाव, दिखे जब अइसे लक्षण।
जिनगी हे अनमोल, करव येकर संरक्षण।।
मलेरिया तो आय, जानलेवा बीमारी।
लगथे जेला रोग, हानि पहुँचाथे भारी।।
खतरा झन लव मोल, तीर बइगा के जाके।
जिनगी अपन बचाव, दवाई येकर खाके।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
विषय - हार
अपन हार स्वीकार, रखे रह कोशिश जारी।
होही तोरो जीत, एक दिन आही पारी।।
हार-जीत हा मीत, खेल मा होवत रहिथे।
अंतस ले स्वीकार, इही ला समता कहिथे।।
अपन हार ले सीख, तभे गा आघू बढ़बे।
तभे जीत के मीत, निसैनी मा तँय चढ़बे।।
जे हे कमी सुधार, बनाले खुद ला काबिल।
तोरो होही नाँव, विजेता मन मा शामिल।।
विषय - साफ-सफाई/स्वच्छता
घर-बाहिर अपनाव, सबो झन साफ-सफाई।
रही रोग मन दूर, इही मा हमर भलाई।।
बने रथे परिवेश, तभे पहुना मन आथें।
साफ-सफाई देख, प्रशंसा करके जाथें।।
पड़ जाहू बीमार, गंदगी झन फैलावव।
काया रही निरोग, स्वच्छता ला अपनावव।।
अपन शहर अउ गाँव, बनावव सब मिल सुग्घर।
सड़क गली अउ खोर, दिखे चंदा कस उज्जर।।
विषय - मलेरिया
मलेरिया हा मीत, असर जब अपन दिखाथे।
जर मा काँपय देह, पछीना अब्बड़ आथे।।
अस्पताल मा जाव, दिखे जब अइसे लक्षण।
जिनगी हे अनमोल, करव येकर संरक्षण।।
मलेरिया तो आय, जानलेवा बीमारी।
लगथे जेला रोग, हानि पहुँचाथे भारी।।
खतरा झन लव मोल, तीर बइगा के जाके।
जिनगी अपन बचाव, दवाई येकर खाके।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
जन सन्देश बर सुग्घर रोला छंद श्लेष जी। बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूब श्लेष जी सरल सुबोध और लोकोपयोगी लोकोपयोगी।आपकी पकड़ देसज पर भी बेहतरीन है।बधाई। और ऊंचाई छूइये कलम की नसैनी के सहारे।
Deleteसुग्घर रोला। संदेश देवत।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुग्घर सर 👍
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत सुग्घर सर जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteमोरो रचना छंद खजाना मा जघा देये बर हार्दिक आभार
ReplyDeleteमलेरिया,स्वच्छ्ता के ऊपर सुग्घर संदेश देवत हार म निराश न होके कोशिस करत रहे के बढ़िया संदेशात्मक रचना ,हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन सर बधाई हो
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सर
Deleteबहुत सुंदर श्लेष जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर श्लेष भाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Delete💐💐👌👌👌सुग्घर सर
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Deleteसरस भाषा शैली के रचना! ससुग्घर संदेशमय।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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