रोला छंद- श्रीमती शशि साहू
लहसे आमा डार,फरे लटलट ले हावय।
गरती रसा भराय,खात मन कहाँ अघावय।।
कोनो चुहकत खाय,पउल के गोही चाटँय।
अपनो सइघो खाय,आन ला नान्हें बाटँय।।
सबो खाय सहुँराय,मीठ हे लगड़ा चौसा।
जाबे कभू बजार,बिसा के लाबे मौसा।।
बैगन पल्ली रोठ,गुदा हर गजब मिठाथे।
कलमी जाथे पाक,फोकला घलो सुहाथे।।
फर के राजा आम,फरे हे घन अमरइया।
लहसे झोत्था डार,टोर के खाबो भइया।।
सुघ्घर लगय अथान,पीस के चटनी खाबो।।
कभू बिसा के खान,अथान घर मा बनाबो।।
शशि साहू
बाल्कोनगर
जिला - कोरबा
छतीसगढ़
लहसे आमा डार,फरे लटलट ले हावय।
गरती रसा भराय,खात मन कहाँ अघावय।।
कोनो चुहकत खाय,पउल के गोही चाटँय।
अपनो सइघो खाय,आन ला नान्हें बाटँय।।
सबो खाय सहुँराय,मीठ हे लगड़ा चौसा।
जाबे कभू बजार,बिसा के लाबे मौसा।।
बैगन पल्ली रोठ,गुदा हर गजब मिठाथे।
कलमी जाथे पाक,फोकला घलो सुहाथे।।
फर के राजा आम,फरे हे घन अमरइया।
लहसे झोत्था डार,टोर के खाबो भइया।।
सुघ्घर लगय अथान,पीस के चटनी खाबो।।
कभू बिसा के खान,अथान घर मा बनाबो।।
शशि साहू
बाल्कोनगर
जिला - कोरबा
छतीसगढ़
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteअथान लय भंग हे
बाकी बहुत बढ़िया
सुग्घर भाव दीदी जी
ReplyDeleteवाह ।शानदार सृजन ।हार्दिक बधाई ।
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