रोला छंद - राजकुमार बघेल
प्लास्टिक
बनगे प्लास्टिक देख, काल ये सब जीवन बर ।
होवत हे उपयोग, फइल गे हवे घरो घर ।।
सड़े गले नइ जान, प्लास्टिक होथे कचरा ।
येकर कर उपचार, जीव बर होथे खतरा ।।
पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण बचाव, होय झन महुरा पानी ।
सुधरय खेती खार, सबो के हमर किसानी ।।
आक्सीजन हे मीत, संग हे हमर मितानी ।
संरक्षण कर आज, सुघर होवय जिनगानी ।।
रुख राई झन काट, मान जी मोरो कहना ।
सेवव जी दिन रात,हवे धरती के गहना ।।
रोकत बाढ़त ताप,बचावय जीवन धन ला ।
मानौ अब तो बात,कहत हॅऺंव मॅऺंय जन जन ला ।।
हरियर धरती होय, गीत गावॅऺंय सब डारा ।
बिघवा चितवा रोज, सबो जी पावॅऺंय चारा ।।
भेंड़ कुकुर अउ साॅऺंप, संग मा हाथी भालू ।
मंद मंद मुस्काय, कोलिहा जी बड़ चालू ।।
जरी बुटी सब पाव, देत फोकट मा सबला ।
काट अपन झन पाॅऺंव, बनव झन कोनो पगला ।।
सोंचव मन मा आज, काय पीढ़ी ला देबो ।
दामन अपने आप, सबो पीरा भर लेबो ।।
नदिया नरवा आय, सबो के हे सॅऺंगवारी ।
पर्वत घाटी भाय, मनोहर जग बर भारी ।।
कण कण हें जुरियाय, मारथें बड़ किलकारी ।
हिरदे अपन लगाव,जगत बर हे हितकारी ।।
महके फूल गुलाब, संग ये सादा लाली ।
चम्पा गोंदा साथ, मोंगरा मारॅऺंय ताली ।।
कहर महर ममहाय, सोनहा पीयॅऺंर बाली ।
देख लगे कठुवाय,रात जे हावय काली ।।
जीवन सब ला देय, तोर ले कुछ नइ लेवय ।
महतारी बन देख, सबो ये जग ला सेवय ।।
मानौ सब उपकार, सीख देवत गुरु ज्ञानी ।
जीवन बर हे सार, गुरु के अमरित बानी ।।
बोंवव झन दिन रात, जान के पर बर काॅऺंटा ।
जुर मिल के कर काज, बाॅऺंट लव सुख दुख बाॅऺंटा ।।
होही नवा बिहान, हवे तन मन मा आसा ।
भारत बने महान,गढ़व जीवन परिभाषा ।।
छंदकार- राज कुमार बघेल
सेन्दरी बिलासपुर (छ. ग.)
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