बबा के मेछा (हास्य कुंडलिया)-मनी राम साहू मितान
(1)
तापत भुर्री जब बबा, चोंगी ला सिपचाय।
गिरजय आगी के लुकी, मेछा हा जर जाय।
मेछा हा जर जाय, तुरत वो रमँज बुझावय।
हड़बिड़ ले जब होय, छोर धोती फँस जावय
भगय फँसे ला हेर, तोलगी छूटय भागत।
कठलयँ नाती झार, सबो झन भुर्री तापत।
(2)
बूढ़ी दाई हा तुरत, मरदनिया बलवाय।
दिखत हवै ये बिन फबक, मेछा ला बनवाय।
मेछा ला बनवाय, धार ना राहय छूरा।
आधा हा बँच जाय, रोख ना पावय पूरा।
बबा लजावय खूब, मात जय जी करलाई।
जम्मो नाती संग, हँसय बड़ बूढ़ी दाई।
(3)
मरदनिया हा छोड़ के, जा छूरा पजवाय।
बाँचे मेछा ला बने, आ के तुरत बनाय।
आ के तुरत बनाय, नाक के कोर कटावय।
दिखय नाक हा लाल, लहू हा बड़ बोहावय।
काहय लइकन संग, हँसत नतनीन अघनिया।
नकटा बबा हमार, काट दे हे मरदनिया
मनीराम साहू 'मितान'
(1)
तापत भुर्री जब बबा, चोंगी ला सिपचाय।
गिरजय आगी के लुकी, मेछा हा जर जाय।
मेछा हा जर जाय, तुरत वो रमँज बुझावय।
हड़बिड़ ले जब होय, छोर धोती फँस जावय
भगय फँसे ला हेर, तोलगी छूटय भागत।
कठलयँ नाती झार, सबो झन भुर्री तापत।
(2)
बूढ़ी दाई हा तुरत, मरदनिया बलवाय।
दिखत हवै ये बिन फबक, मेछा ला बनवाय।
मेछा ला बनवाय, धार ना राहय छूरा।
आधा हा बँच जाय, रोख ना पावय पूरा।
बबा लजावय खूब, मात जय जी करलाई।
जम्मो नाती संग, हँसय बड़ बूढ़ी दाई।
(3)
मरदनिया हा छोड़ के, जा छूरा पजवाय।
बाँचे मेछा ला बने, आ के तुरत बनाय।
आ के तुरत बनाय, नाक के कोर कटावय।
दिखय नाक हा लाल, लहू हा बड़ बोहावय।
काहय लइकन संग, हँसत नतनीन अघनिया।
नकटा बबा हमार, काट दे हे मरदनिया
मनीराम साहू 'मितान'
वाह वाह बहुत खूब भैया जीमजा आगे पढके।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हास्य पुट ले हवव भाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कुण्डलियाँ गुरुजी
ReplyDeleteमजा आ गे
महेन्द्र देवांगन माटी
आहहहहह बड़ मजेदार हास्य कुंडलियां आदरणीय बड़े भैया जी 🙏🙏 बहुत बहुत बधाई अउ सादर पयलगी 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteकुंडलिया हा आपके, हावे गजब मितान।
ReplyDeleteबूढ़ी दाई अउ बबा, ला अइसन झन जान।।
वाह वाह बहुत बढ़िया, बधाई मितान जी।
हास्य रस से भरपूर शानदार सृजन।बहुतेच बहुतेच बधाई
ReplyDeleteहास्य रस से भरपूर शानदार सृजन।बहुतेच बहुतेच बधाई
ReplyDeleteजर गय मेछा हा बबा, कटवाये तैं नाक।
ReplyDeleteकरही बूढ़ी दाइ हा, मया तोर भर खाक।।
बहुत बढ़िया हास्य रचना मितान जी
🙏🏽👌👌👏👍