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Friday, June 5, 2020

छंद के छ की प्रस्तुति-संत कबीरदास जयंती विशेष,छंदबध्द कवितायें

छंद के छ की प्रस्तुति-संत कबीरदास जयंती विशेष,छंदबध्द कवितायें

महान संत,समाज सुधारक कवि संत कबीर साहेब जी ल छंद परिवार अंतस ले सादर नमन करत हे

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

धरहा करके लेखनी, कहिस बात ला सार।
सत के जोती बार के, दुरिहाइस अँधियार।
दुरिहाइस अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।
हरिस आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।
एक तुला सब तोल, बताइस बढ़िया सरहा।
करिस ढोंग मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।

बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।
साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।
लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।
लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।
तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।
तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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दोहा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे  "सत्यबोध"

भक्तिकाल के रहिस कवि, सन्त कबीरा दास ।
करिस कुठाराघात जे, ढोंग अंधविश्वास ।।

कर्म लोक कल्यान के, विश्व प्रेम मन भाव ।
अग्रदूत युग जागरण, भारत भूमि लगाव ।।

जन्म लहरतारा भये, कमल मनोहर ताल ।
धन्य भाग काशी शहर, जनमे अइसे लाल ।।

कोई कहे कबीर जी, बालक रहिस अनाथ ।
पालन नीमा माँ करिस, पिता नीरु के साथ ।।

जात जुलाहा मा भये, पालन बाल कबीर ।
मुसलमान कोई कहे, जात न संत फकीर ।।

पुत्र ब्राम्हणी के कहे, पर ना करे कबूल ।
किस्मत संत कबीर के, कर दिस बड़का भूल ।।

स्वामी रामानंद के, पड़िस कबीर प्रभाव ।
तब ले हिन्दू धर्म बर, बढ़िस कबीर लगाव ।।

घाट पंचगंगा मिले, स्वामी रामानंद ।
राम नाम सुमिरन करे, तब बालक मति मंद ।

देख ढोंग पाखंड ला, धरे ध्यान सतनाम ।
फेर भेद नइ तो करिस, गुरु रहीम इशु राम ।।

गये मदरसा ना कभू, तभो धरे गुरु ज्ञान ।
मसि कागद थामे नहीं, अइसे संत महान ।।

शादी लोई संग मा, करे कबीरा फेर ।
भरे गरीबी राह मा, जिनगी मा अंधेर ।।

वंश कमाली एक झन, संत कबीरा लाल ।
सत्य सुमरनी छोड़ के, घर ले आइस माल ।।

काशी मगहर पास मा, देइस तन ला त्याग ।
हिन्दू मुस्लिम साथ मिल, दिहिन चिता ला आग ।।

जन्म जगह अउ जात के, झेलत दंश कबीर ।
स्वर्ग लोक मा चल दिये, बनके संत फकीर ।।


छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख

भजन कबीरा के सुनव ,सार सार हे गोठ।
अन्तस् के पट खोल दे,वाणी हावय पोठ।
वाणी हावय पोठ,हृदय के भीतर जाये।
अँधियारा मिट जाय, ज्ञान के जोत जलाये।
काटय सबो कुरीति,हरय मन के सब पीरा।
खोले आँखी कान,करे हे गोठ कबीरा।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)

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सोभन छंद - श्लेष चन्द्राकर

गोठ सत बोलय सदा गा, संत दास कबीर।
एक उनकर बर रिहिस हे, सब गरीब-अमीर।।
काखरो जब पीर देखय, बड़ दुखी उन होय।
देख जग पाखंड ला बड़, उखँर कवि मन रोय।।

शिष्य रामानंद जी के, रिहिस दास कबीर।
ज्ञान के बड़ गोठ सीखिन, ओ बइठ गुरु तीर।।
नेक नीमा नीरु पुत हा, बनिस संत महान।
अउ बनाइन ये जगत मा, उन अलग पहिचान।।

बड़ दिखावा अउ अधम के, करिन संत विरोध।
सब मनुख मन ला कराइन, सत्य के उन बोध।।
लिखिस हे साखी रमैनी, सबद बीजक ग्रंथ।
आज मनखे मन चलत हे, उन बताये पंथ।।

छंद लिख संदेश दिस हे, संत हा बड़ नीक।
सब मनुख मन ला कहिन हे, काम छोड़व खीक।।
सब दिखावव गा मनुजता, नेक कर लव काम।
जे तुहँर अंतस बसे हे, दिख जही प्रभु राम।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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 शोभन छंद-विरेन्द्र कुमार साहू

तोड़ कतनो मिथक जग ला, सत्य भेद बताय।
रहय ज्ञानी महान तभो, कभू नहीं जताय।
बदल गे कतनो कुचाली, पाप के सरदार।
तोर कविता के भरोसा, हो गए भव पार।1।

बाट देखाये जगत ला, मेट के अँधियार।
नीति शिक्षा सँग बताये, ज्ञान गोठ अपार।
तैं हरस साहित्य के रवि, कवि सुजानिक मीर।
तोर मँय सुरता करत हौं, संत दास कबीर।2।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका), जिला - गरियाबंद(छ.ग.)
9993690899

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रोला छंद-आशा आजाद

हे कबीर कविराज,जगत के ओ उजियारा।
नेक दिहिन संदेश,मिटाइन मन अँधियारा।
कासी रहिस निवास,बोल नित सत ग़ुड़ भाखा।
बोलय संत कबीर,करम बस हिरदे राखा।।

गुरुवर रामानंद,कबीर सत पथ मा चलके।
करदिन जनकल्यान,काव्यधारा मा बह के।
शब्द शब्द ला तोल,छंद दिन आनी बानी।
जानौ संत कबीर,रहिन जी अब्बड़ ज्ञानी।।

कासी ठउर कहाय,ज्ञान ला जग हा गावै ।
भक्तिकाल कविराज,कबीरा सबला भावै।।
सरल सहज हे बोल,छंद के अमरित धारा।
गुनलौ ये संदेश,करम बस आप सहारा।।

रखौ काज मा ध्यान,रूप ह काम नइ आवै।
ध्यान धरौ ए बात,नावं हा बढ़खा हावै।
पोथी पढ़लौ आज,मिलै कुछु नइ जी काही ।
ढाई आखर प्रेम,जगत मा मान बढ़ाही।।

अहंकार के भाव,त्याग के जीना होही।
लोभ कपट के भाव,द्वेष मा सबकुछ खोही।
छल कपट अउ द्वेष,त्याग दव कहे कबीरा।√
पाछु बड़ पछतावय,रहत हे जेन अधीरा।।

छंदकार - आशा आजाद

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बलराम जी: छप्पय छंद
(कबीर)

दीनहीन सकलाय, आसरा पा के निरमल।
अंतस अबड़ अघाय, बात ला सुन के निश्छल।
जातपाँत पाखंड, रिहिस हे जब मनमाना।
तब कबीर के गोठ, बनिस जन जन के बाना।
बानी संत कबीर के, भेदभाव ले दूर गा ।
तन मन ला शीतल करै, पावय बल मजबूर गा।।

बलराम चंद्राकर

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 दोहा छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

सत्यनाम संदेश ला, दुनियाँ मा बगराय।
मेटय जन के पीर ला, बन्दीछोर कहाय।।

पढ़े लिखे नइ वो रिहिस, भरे ज्ञान अनमोल।
छिन मा देवय अउ इहाँ, आँखी सबके खोल।।

झूठ कपट जानय नही, कभू मोह अउ लोभ।
जिनगी भर दुरिहा रहय, इँखर ह्रदय ले खोभ।।

मानवता के सीख दय, समझै लोगन बात।
ढोंग गलत पाखंड बर, लगे रहय दिनरात।।

गीता ग्रन्थ कुरान मा, उही खुदा अउ पीर।
कृष्ण उही ईश्वर उही, अल्ला राम कबीर।।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कबीरधाम
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7 comments:

  1. संकलन मा शामिल रचना मन के रचनाकार मन ला उत्तम सृजन बर बधाई अउ साथ ही संत कबीर दास जी के जयंती के भी बहुत बधाई अउ शुभकामना।

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  2. अनुपम संकलन ।सादर नमन।गुरुदेव ।

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  3. बहुत सुघ्घर संकलन

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  4. संत कबीर दास जयंती के समस्त मानव समाज ला बधाई अउ छंद खजाना बर छंद सृजन करइया सबो छंदकार मन ला भी कोरी कोरी बधाई।

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  5. बहुत सुग्घर सृजन, आप सबो रचनाकार ला कोरी कोरी बधई।

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  6. बहुत सुग्घर संकलन

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