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Thursday, June 18, 2020

कुण्डलिया छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

कुण्डलिया छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

        १.- झन काँटव गा पेड़

झन काटव जी पेड़ ला, देथे जीवन दान।
आँक्सीजन अउ छाँव ला, देथे हमला जान।।
देथे हमला जान, बना के सुख जिनगानी।
नइ तो परे दुकाल, बने कन गिरथे पानी।।
शीतल मिलथे छाँव, हवा मनमोहक पाथव।
हरियर - हरियर पेड़, कभू कोनो झन काटव।।

         २.- गुरु महिमा

गुरु बिन शंका नइ मिटय, गुरु बिन मिटय न भेद।
ज्ञानदीप ला बार के, अँधियारी ला खेद।।
अँधियारी ला खेद, उजाला जग मा लावव।
करम करव सब नेक, नाम पुन सबो कमावव।।
होही गुरु परताप, जगत मा बाजय डंका।
जपव ओकरे नाव, मिटय नइ गुरु बिन शंका।।

     ३.-राजा भाषा छत्तीसगढ़ी

छत्तीसगढ़ी मा सबो, लिखव पढ़व ना यार।
काबर करथव लाज गा, सब झन हव हुशियार।।
सब झन हव‌‌‌ हुशियार, छोड़ दव दूसर भाषा।
छत्तीसगढ़ी बोल, जगा दव सबके आशा।।
बनव सबो गुणवान, रहव झन अड़हा अड़ही।
राजा भाषा आय, हमर ये छत्तीसगढ़ी।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा-नेवरा)
जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़ )
सचलभास क्रमांक- 9300 716 740

4 comments:

  1. बड़ सुघर कुण्डलिया अशोक धीवर जी

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  2. बहुत सुग्घर भैया जी

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  3. गज़ब सुग्घर सर

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  4. बहुत बढ़िया धीवर भाई

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