सार छन्द- दीपक साहू
फोकट बिरथा बइठे पगला, झन कर चुगली चारी।
करम कमाई करले जग मा, घर आही उजियारी।
बिना मेहनत कइसे चलही, ये जिनगी के गाड़ी।
पेट भरे बर कठवा करले, हाथ गोड़ अउ माड़ी।
ये जग मा कोन्हों नइ देवय, भूख मरत ला खाना।
खुद उपजाना परथे पगला, पेट भरे बर दाना।
किस्मत ला फोकट कोसे मा, घर नइ आवय हीरा।
सरलग करले काम बुता तँय, दुरिहा करले पीरा।
तोर भुजा मा ताकत हे जी, तँय कमईयाँ चोला।
तोर भाग ला तिही बदलबे, जिनगी गढ़ना तोला।।
छ्न्दकार:- दीपक साहू
मोहंदी, मगरलोड
फोकट बिरथा बइठे पगला, झन कर चुगली चारी।
करम कमाई करले जग मा, घर आही उजियारी।
बिना मेहनत कइसे चलही, ये जिनगी के गाड़ी।
पेट भरे बर कठवा करले, हाथ गोड़ अउ माड़ी।
ये जग मा कोन्हों नइ देवय, भूख मरत ला खाना।
खुद उपजाना परथे पगला, पेट भरे बर दाना।
किस्मत ला फोकट कोसे मा, घर नइ आवय हीरा।
सरलग करले काम बुता तँय, दुरिहा करले पीरा।
तोर भुजा मा ताकत हे जी, तँय कमईयाँ चोला।
तोर भाग ला तिही बदलबे, जिनगी गढ़ना तोला।।
छ्न्दकार:- दीपक साहू
मोहंदी, मगरलोड
गजब सुग्घर भाई
ReplyDeleteगजब सुग्घर भाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बधाई हो
ReplyDeleteवाहहह!बड़ सुग्घर सीख देवत छंद रचना।बधाई हे दीपक साहू जी
ReplyDeleteफोकट बिरथा म बिरथा ह नइ जमत हे।
ReplyDeleteबाँकी बहुत सुग्घर बधाई