अमृतध्वनि छन्द-कमलेश वर्मा
1.सफलता
सारी दुनिया मा इही, सफल होय के सार।
हर घँव गिर के हो खड़े, मान कभू झन हार।।
मान कभू झन, हार गड़ी तँय, कर तैयारी।
महिनत करके, बहा पसीना, तैंहा भारी।।
करम पुजारी, खच्चित आही, तोरो बारी।
मंजिल पाबै, तँय छा जाबे, दुनिया सारी।।
2.मानसून
पानी-बादर ला सबो, जोहत हबै किसान।
रदरद ले गिरही बने, तब तो बोही धान।।
तब तो बोही, धान खेत मा, अन के दाता।
बहा पसीना, हरियाही ये, धरतीमाता।।
मानसून के, मेहरबानी, हरे किसानी।
चिन्ता छाही, ऊँच-नीच, जब गिरही पानी।।
3.जल
पानी बड़ अनमोल हे, जतन करव हर बूँद।
जल संकट विकराल हे, आँखी ला झन मूँद।।
आँखी ला झन, मूँद बिकट जी, कर नादानी।
नइते आघू , ये जिनगानी, मा परशानी।
तरिया नदिया, फरियर पानी, हे कल्यानी।
झन कर बिरथा, बरखा रानी, उज्जर पानी।।
साधक-कमलेश कुमार वर्मा
भिम्भौरी, बेमेतरा
सत्र-9
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Monday, September 7, 2020
अमृतध्वनि छन्द-कमलेश वर्मा
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कोटि-कोटि आभार, गुरूवर
ReplyDeleteगज़ब सुग्घर सर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सर जी 👌👌💐💐🙏🙏
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण विषय मा छंद लिखे हव भाई। बड़ सुघ्घर बधाई आपला।
ReplyDeleteबहुत बढि़या छंद भाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया भाई जी
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