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Saturday, September 19, 2020

अमृत ध्वनि छन्द-मनीराम साहू मितान

 अमृत ध्वनि छन्द-मनीराम साहू मितान


*रे मन धर ले सार*

गाले जस ला‌ राम‌ के, हो जाबे भव पार।

बाकी सब हे फोकला, रे मन धर ले सार।

रे मन धर ले, सार सरस ला,काम बनाही।

झन खा भटका, बने बाट ला, इही बताही।

हावय बेरा, अपन बनौकी, तहूँ बनाले।

सब सुख दाता, रघुराई के, जस ला गाले।


*हे अॅजनी के लाल*

सुमरॅव मैं तोरे चरन, हे अॅजनी के लाल।

दरस करा दे राम के, काट मोह के जाल।

काट मोह के, जाल फॅसे हॅव, राम दुलारे।

हे बल दाता, बूड़े कतको, तहीं उबारे।

बाट बतादे, जाॅव पार मैं, भव ले उतरॅव।

हे बजरंगी, सब के संगी, तोला सुमरॅव।


*शारद माता*

माता देवी शारदे, करदे वो उजियार।

घेरे हे अज्ञानता, दीप ज्ञान के बार।

दीप ज्ञान के, बार मात वो, सुन ले अरजी।

तम रोथे वो, जब होथे माँ, तोरे मरजी। 

हे महतारी, हमन भिखारी, तैं हर दाता।

राह दिखा दे, काम बनादे, शारद माता।


*जिनगानी के बाट*

जिनगानी के बाट मा, रथे घाम अउ छाॅव।

करनी अइसन‌ होय जी, होय सरी जग नाॅव।

होय सरी जग, नाॅव तोर गा, जी बन‌ ढारा।

ररुहा मरहा, दुखियारा के, बनत सहारा।

छोड़ सुवारथ, परमारथ के, गढ़त कहानी।

सत मारग चल, सुफल‌ बनाले, ये जिनगानी।


*गाॅव*

अड़बड़ सुग्घर लागथे, सरग बरोबर गाॅव।

नदिया नरवा ढोड़गा, बर पीपर के छाॅव।

बर पीपर के, छाॅव‌ गजब जी, मन‌ ला भाथे।

हरियर हरियर, बड़ रुखराई ,‌ चिरई गाथे।

कोनो मनखे, करय नही जी, चिटको गड़बड़।

उॅकर गोठ हा, नीक लागथे, मोला अड़बड़।


- मनीराम साहू 'मितान'

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