विश्व बेटी दिवस पर, छंद परिवार के छंदबद्ध कविता
लावणी छंद - बेटा बेटी एक्के
बेटी बेटा एक्के जानव, हवय इँखर बिन घर सुन्ना।
कतको धन दोगानी जोरव, बेटी बेटा बिन उन्ना।1।
अपने कुल के नाँव जगइया, बेटा हिरदे के हीरा।
सदा दुलौरिन बनके हरथे, बेटी अंतस के पीरा।2।
मया-दया के हे फुलवारी, बेटी ममता के अँचरा।
बेटी सिरतों सोन चिरइया, नो हे नोनी हा कचरा।3।
फूल सरिख ए कोंवर-कोंवर, जुड़हा छँइहाँ हे बेटी।
फूलकाँस के टठिया थारी, सोन सगुन के ए पेटी।4।
संझाकुन के जोत आरती, बेटी तुलसी के चौंरा।
ए दुलार के शुभ देरौठी, बेटी लाँघन के कौंरा।5।
भाव भजन बड़ पूजा पाठी, बेटी बढ़िया संस्कारी।
सबके आरो लेथे-देथे, बेटी हे मया चिन्हारी।6।
बुता काम मा मदद करइया, कमइलीन बेटी होथे।
चिटिक दरद मा ए फुलकैना, चार धार आँसू रोथे।7।
महतारी कस लाज धरम के, बेटी हख बोहय लागा।
अपन बाप के जबर आस ए, मान गउन के हे पागा।8।
कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक-भाटापारा (छ.ग.)
गोठबात~9200252055
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छप्पय छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
दुख माँ बाप मनाय, जनम बेटी लेवय जब।
बेटा घर मा आय, लुटावय धन दौलत तब।
भेदभाव के बीज, कोन बोये हे अइसन।
बेटी मन तक काम, करे बेटा के जइसन।
बेटी मनके आन हा, बेटी मनके शान हा।
छुपे कहाँ जग मा हवै, जानय सकल जहान हा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
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लावणी छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बेटी-
बेटी हे फूल बाग के जी, बेटी से हे हरियाली।
बेटी से हे सुख के होली, बेटी से दीप दिवाली।।
बेटी से घर अँगना चहके, बेटी से हे खुशहाली।
बेटी दू कुल शान हवे जी, सुख बिरवा के दू डाली।।
माँ के दिल के टुकड़ा बेटी, पापा के गुड़िया रानी।
मन ला मोहे सूरत भोली, अउ ओखर मीठी बानी।।
बेटी पावन जोत बरोबर, बेटी पूजा के थारी।
जब जब पाप बढ़े दुनिया मा, काल रूप ये अवतारी।।
बेटी चाँद बरोबर चमके, आसमान के ये तारा।
बेटी मातु पिता के धड़कन, सुख दुख मा बने सहारा।।
ये धरती के बोझ उतारे, बेटी हर पल हे ठाढ़े।
पंख लगा दौ ओकर सपना, पाँव उँचाई मा माढ़े।।
बेटी उन्नति पग जब धरही, देश समाज तभे बढ़ही।
बनके उजियारा बेटी जग, अँधियारा से नित लड़ही।।
सच मा बेटी राजकुमारी, नाज करय दुनिया सारी।
गजानंद के सपना अतके, महकै जग बन फुलवारी।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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: उल्लाला छंद- राजेश कुमार निषाद
महुँ ला जीये के आस हे, बेटी हरंव तोर गा।
मारव झन मोला कोख मा,गलती का हे मोर गा।।
होही रोशन गा नाम हा, जग मा मोला लान ले।
करहूँ सेवा मैं रोज गा, बेटा मोला मान ले।।
दू कुल मा दीपक ला जला, करथँव मैं उजियार गा।
मोर बिना हे घर हा सुना, देखव सब परिवार गा।।
बेटी बेटा मा भेद कर, करहू झन अपमान गा।
घर के लक्ष्मी हे जान के, करव सबो हा मान गा।।
छंदकार :- राजेश कुमार निषाद
ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़
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रोला छंद,विषय-भ्रूण हत्या*
बेटी घर जब आय,छाय खुशियाँ घर सारी।
घर मा सोहर गाय,गाँव के नर अउ नारी।।
बेटी लछमी रूप,करे मंगल के बरसा।
काटे बेटी सोज,समझ पाना तै परसा।।
बेटी बगिया फूल,मूल हे बेटी घर के।
जिनगी के सह ताप,छाँव घर लाने धर के।
बेटी जननी लोक,करे हे जग के सिरजन।
बाप करे तै पाप,मार डारे बेटी धन।।
बेटी ले हे वंश,अंश बेटी हर घर के।
समझे तै हा कार, हरे बेटी धन पर के।।
बेटी होवत मान, ददा के दाई जइसे।
तब ले कर ले पाप, मार के बेटी कइसे।।
एक लहू के रंग,हरे बेटी बेटा हर।
मोती मंगल जोत, रखो बेटी बेटा बर।।
मन के भेद म भेद,भेद के पट ला खोलौ।
रोवत बेटी देख,आज मिल कुछ तो बोलौ।।
दाई काकी रूप,मातु बहिनी अउ भगिनी।
पालय सबके पेट,सहे चूल्हा के अगिनी।।
बेटी ले संसार,सरग जइसे हे लागे।
माने बेटी बोझ,कार भेजे यम आगे।।
मारे बेटी कोख,दुःख मा अब हस अइठे।
करके करनी आज,रोत काबर हस बइठे।।
बेटी जिनगी सार,जनम ले आवन देते।
हाँसत बेटी रोज,बाँह मा तै भर लेते।।
छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद
मोबा.-8225912350
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आल्हा छंद
*बेटी*
भागजनी घर बेटी होथे,नहीं लबारी सच्चा गोठ।
सुन तो वो नोनी के दाई,बात कहत हौं अब मँय पोठ।।
अड़हा कहिथे लोगन मोला,बेटा के जी राह अगोर।
कुल के करही नाँव तोर ये,घर ला करही बिकटअँजोर।।
कहिथँव मँय अँधरागे मनखे,बेटी बेटा ला झन छाँट।
एक पेड़ के दूनों डारा,दुआ भेद मा झन तँय बाँट।।
सोचव बेटी नइ होही ते,ढोय कोन कुल के मरजाद।
अँचरा माँ के सुन्ना होही,बोझा अपने सिर मा लाद।।
आवव अब इतिहास रचव जी,गढ़व सुघर जिनगी के राह।
दुनियादारी के बेड़ी ला,तोड़व अब तो अइसन चाह।।
पढ़ा लिखा के बेटी ला जी,तुमन सुघर देवव सम्मान।
जानव अब बेटी ला बेटा,दव सपना ला उँकर उड़ान।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
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दोहे
बेटी घर के शान ए, बढ़हावय सम्मान।
बेटी बिन माँ बाप के, जिनगी हे सुनसान।
बेटी हे ता देश हे, हावय सकल समाज।
सबके हित मा सोचथँँय, करथँँय सुघ्घर काज॥
बेटी ला समझव सखी, झन समझव जी भार।
बेटा जस अधिकार दव, तब होही उद्धार॥
सेवा करथँँय देश के, बेटी मन हा खूब।
स्वारथ खुद के छोड़ के, मिहनत मा जी डूब॥
बेटी बेटा एक हे, नाप जोख झन तोल।
दूनो हे माँ बाप बर, बड़का अउ अनमोल॥
बेटी मन हर क्षेत्र मा, देथँँय जी सहयोग।
एमा झन शंका करौ, झन समझव संजोग॥
सबो तरह के नौकरी, करत हवैंं जी आज।
बेटी मन के काम ले, सबला होवय नाज॥
अमित टंडन अनभिज्ञ
बरबसपुर, कवर्धा
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बेटी (दोहा)- अजय अमृतांशु
झन मारव जी कोख मा ,बेटी हे अनमोल।
बेटी ले घर स्वर्ग हे, इही सबो के बोल।।1।।
बेटी मिलथे भाग ले,करव इँकर सम्मान।
दू कुल के मरजाद ये, जानव येहू ज्ञान।।2।।
बेटी ला सम्मान दव, ये लक्ष्मी के रूप।
बेटी छइँहा कस चलय,गर्मी हो या धूप।।3।।
बेटी नइ भूलय कभू ,सात समुंदर पार।
सुरता कर दाई ददा, रोथे आँसू चार ।।4।।
मनखे मन करथे जिहाँ, बेटी के सम्मान।
करथे लक्ष्मी वास जी, सुखी रथे इंसान।।5।।
बेटी मिलथे भाग ले,तरसत रहिथे लोग।
जेकर हे बढ़िया करम,ओकर बनथे योग।6।।
करथे देवी रूप मा, पापी के संहार।
तीन लोक के देवता,करथे जय जय कार।।7।।
घर माँ बेटी आय जब,जीवन मा सुख आय।
बेटी मारे कोंख जे , बहू कहाँ ले पाय।।8।।
अजय अमृतांशु,
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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लावणी - छंद
केवरा यदु "मीरा "
बेटी होथे घर के लक्ष्मी ,बेटी हे कुल तारी जी।
बेटी बहिनी माता बनगे,बेटी अँगना फुलवारी जी।।
बेटी सीता बेटी राधा, बेटी दुर्गा मीरा जी।
बेटी होथे सुखकारी जी, बेटी जाने पीरा जी।।
माँ के बने सहेली बेटी, पापा के हरे दुलारी जी।
भोली भाली रानी बेटी,होथे प्राण पियारी जी।
बेटी गंगा बेटी गीता,रामायण चौपाई जी।
तुलसी के पावन दोहा वो,कवियन के कविताई जी।।
मात पिता के अँगना छोड़े, जाथे पिया दुवारी जी।
सास ससुर के सेवा करथे,बन कुलवंती नारी जी।।
दूनों कुल के लाज हरे जी,दूनो कुल के जोती जी।
सात बचन ला पूरा करथे,बनके चमके मोती जी।।
कोख सुता ला झन मारो तुम,पाप लगे बड़ भारी जी।
यम से लड़ने वाली बेटी,अनुसुइया कस नारी जी।।
कतका महिमा मँय हा गाववँ,बेटी जग उजियारी जी।
जौने घर में बेटी नइये,लागे घर अँधियारी जी।।
चिक्कन राखे अँगना खोली,पूरय चौक रँगोली जी।
बेटी ले घर अँगना महके,उही दिवाली होली जी।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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*बरवै छंद*
दुख पीरा के मानौ, हरे मितान।
घर दुआर के जानौ, बेटी शान।
बेटी औलाद हरे, अपने जान।
पहुना-सेवा करके, राखै मान।।
बार दिया ले मेटे, कारी रात।
दुख मा सुख पहुँचाथे, बेटी जात।
पहुना करैं बड़ाई, पाके मान।
देथे मौका बेटी, छाती तान।।
झन शिकार हो अब तो, बेटी भेद।
बेटा करथे, सुन ले, थारी छेद।।
पढ़ा लिखा के बेटी, बना सजोर।
जग सहराही निसदिन, नाम ल तोर।।
पोखन लाल जायसवाल
पलारी
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*बेटी ला दव मान*
बेटी लक्ष्मी रूप ये , झन समझव कमजोर ।
बेटा बनके डेहरी , अँगना करय अँजोर ।।
रखय ददा के मान ला , जग मा नाम कमाय ।
लक्ष्मी अस अवतार ले , मन ला सबके भाय ।।
पढ़ लिख के बेटी घलव , बनथे घर के शान ।
बनके अपन सँजोर जी , देथे सब ला मान ।।
बेटी बेटा मा कभू , करव भेद झन यार ।
एक बरोबर मान के , देवव मया दुलार ।।
बेटी के सम्मान बर , आवव सब झन संग ।
फुलवारी के फूल कस , फुलही रंग बिरंग ।।
बेटी ला दे मान अब , मान खुदे जी पाव ।
बेटी हे अनमोल धन , हँस के गा अपनाव ।।
*मयारू मोहन कुमार निषाद*
*गाँव - लमती , भाटापारा ,*
*जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)*
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: आल्हा छंद
*बेटी*
भागजनी घर बेटी होथे,नहीं लबारी सच्चा गोठ।
सुन तो वो नोनी के दाई,बात कहत हौं अब मँय पोठ।।
अड़हा कहिथे लोगन मोला,बेटा के जी राह अगोर।
कुल के करही नाँव तोर ये,घर ला करही बिकटअँजोर।।
कहिथँव मँय अँधरागे मनखे,बेटी बेटा ला झन छाँट।
एक पेड़ के दूनों डारा,दुआ भेद मा झन तँय बाँट।।
सोचव बेटी नइ होही ते,ढोय कोन कुल के मरजाद।
अँचरा माँ के सुन्ना होही,बोझा अपने सिर मा लाद।।
आवव अब इतिहास रचव जी,गढ़व सुघर जिनगी के राह।
दुनियादारी के बेड़ी ला,तोड़व अब तो अइसन चाह।।
पढ़ा लिखा के बेटी ला जी,तुमन सुघर देवव सम्मान।
जानव अब बेटी ला बेटा,दव सपना ला उँकर उड़ान।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
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बोधन जी: सरसी छंद-
बेटी बचाओ
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बेटी के स्वागत ला करलव,
बेटी हे वरदान।
बेटी ले दुनिया हा सजथे,
बेटी मोर परान।।1।।
आवन दव बेटी ला जग में,
ओखर कर सम्मान।
बेटी लछमी दुरगा काली,
नवथे सब भगवान।।3।।
पढ़ा लिखादव आवव भैया,
होवय अपन सुजान।
मात पिता के नाम होय जी,
जग मा बने महान।।4।।
देखव आज इहाँ जी आगू,
बेटी होवत जाय।
बनय सहारा घर मा सबके,
बेटा सहीं कमाय।।5।।
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छंद साधक - सत्र-5
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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(हेम के कुकुम्भ छंद)
कहिथे नोनी सुन दाई ला, अमर अटल बनहूँ फौजी।
अपन देश के रक्षा खातिर, करहूँ मँय हर मन मौजी।।
मोरो रग रग मा भारत हे, बनहूँ मँय हर मर्दानी।
सब दुश्मन ले लोहा लेहूँ, बन मँय झाँसी के रानी।।
जय भारत जय भाग्य विधाता, रोजे मँय गावँव गाथा।
हे भारत भुइँया महतारी, अपन लगालँव तोला माथा।।
बइरी मन के काल बनव मँय, घुसे नहीं सीमा द्वारी।
खड़े तान के सीना रइहूँ, सौ सौ झन बर मँय भारी।।
काली दुर्गा रणचंडी बन, बइरी ला मार भगाहूँ।
भारत के वीर तिरंगा ला, सदा सदा मँय लहराहूँ।।
अटल खड़े रइहूँ पहाड़ जस, अपन देश के मँय सीमा।
देख देख बइरी मन भागय, ताकत रखहूँ जस भीमा।।
दुश्मन कतको मार भगाहूँ, रहूँ एकदम मँय चंगा।
मर जाहूँ ता पहिरा देबे, मोला तँय कफन तिरंगा।।
जय भारत जय भारतीय के, बोले दुनिया जयकारा।
अपन वीर बलिदानी मन के, गूँजय सबो डहर नारा।।
-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-01
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)
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