अमृतध्वनि छंद --आशा देशमुख
*सोन चाँदी*
कोरोना के काल मा ,लंका चलदिस सोन।
चाँदी तक इतरात हे, गहना पहिने कोन।
गहना पहिने ,कोन इहाँ अब,बड़ महँगाई।
गोठ करत हें ,चारों कोती ,बहिनी दाई।
कतका दिन ले,चलही दीदी ,रोना धोना।
बड़ दुखदाई ,आये हावय ,ये कोरोना। 1
*अधकचरा ज्ञान*
गगरी हा आधा हवय, अब्बड़ छलकत जाय।
हावय शान कुबेर कस,जाँगर बाढ़ी खाय।
जाँगर बाढ़ी,खाय सबो दिन,मेंछा अँइठत।
दिन बीते अब ,येती ओती ,घूमत बइठत।
चुप्पे हावँय ,नदी समुन्दर ,चुप हे सगरी।
खलल खलल ले ,बाजत हावय ,आधा गगरी।2
*पितर पाख*
लोटा मा पानी रखे,सुन्दर चौक पुराय।
पितर पाख सुरता अबड़ , पुरखा मन के आय।
पुरखा मन के,आय इही दिन,मान करव जी।
रीत चलागन ,नियम धरम ला, ध्यान धरव जी।
मात पिता के,सुनव कभू झन,सूखय टोटा।
जीते जीयत, भरके देवव ,पानी लोटा। 3।
*नेत्रदान*
मर के भी जीयत रहय,हवय अबड़ सम्मान।
दुनिया ला देखत हवँय, करँय नेत्र के दान।
करँय नेत्र के,दान जगत मा,धरमी चोला।
सुघ्घर कारज,हा हर लेथे,मन के पोला।
आखिर मा तन ,राख होत हे, आगी जरके।
ये आँखी हा, जीयत देखे,देखे मरके।4
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
बहुत सुन्दर दीदी जी
ReplyDeleteगज़ब सुग्घर दीदी
ReplyDeleteसादर आभार भाई हो
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जितेंद्र
ReplyDeleteवाह् गुरु दीदी अब्बड़ सुग्घर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दीदी
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