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Thursday, September 3, 2020

अमृत ध्वनि छंद-सुकमोती चौहान

 अमृत ध्वनि छंद-सुकमोती चौहान
  
*श्री गुरुवर*

गुरुवर के आशीष ले,मिलथे ज्ञान प्रकाश।
सद्गुरु महिमा हे अबड़,करय दोष के नाश।
करव दोष के,नाश सदा जी,जइसे दरपन।
मँय अज्ञानी,करिहौ गुरुवर ,मारग दरशन।
बिन स्वारथ गुरु,करय भलाई,जइसे तरुवर।
चरण कमल मा ,माथ नवावँव,बंदवँ गुरुवर।


*नवा बिहान*

होही नवा बिहान जी,राखव मन मा आस।
दुख के बदरी आज हे,काली सुख के हाँस।
काली सुख के,हाँस ठिठोली,रस रंगोली।
बदलत रहिथे,चाल समय के,सुन हमजोली।
एक बरोबर,होय न सब दिन, मोरे जोही।
धीरज धरबे,दुख मा संगी, तब सुख होही।

*बलिदान*

धन तोरे बलिदान हे,माई पन्ना धाय।
अमर पात्र बनगे तही,जग तोरे गुण गाय।
जग तोरे गुण,गाय आज ओ,फर्ज निभाये।
अपने सुत ला,कुँवर बनाये,सेज सुलाये।
राखय छाती,मा पथरा तँय,आँखी फोरे।
राज दीप बर,घर के दीपक, बुझगे तोरे।



सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

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