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Tuesday, September 22, 2020

अमृत ध्वनि छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 अमृत ध्वनि छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी


मोला दुनियाँ हा कहै, डॉक्टर झोला छाप।

होवँव दुश्मन जान के, कइसे करहूँ पाप।

कइसे करहूँ, पाप बता तँय, मोला संगी।

बड़े भाग्य ले, मिलथे नर तन, अउ ये जिनगी।

जानत भर ले, तानत हँव मैं, आना सोला।

दुनियाँ कहिथे, झोला वाले, डॉक्टर मोला।1


बात सिखौना नइ सुनय, नइ आवय अउ बाज।

चारी चुगली ला करय, छोड़ काम अउ काज।

छोड़ काम अउ, काज हवस तँय, भोला भाला।

झूठ कपट ला, धर अंतस मा, झींगा लाला।

दया मया बिन, जइसे जिनगी, लगै खिलौना।

छोड़ असत ला, धर ले सत ला, मान सिखौना।2


मनमानी काबर करे, मनखे चोला पाय।

दया धरम जाने नही, बिरथा जिनगी जाय।

बिरथा जिनगी, जाय देख ले, बात मान ले।

सरल बनाले, मोह हटाले, गुरू ज्ञान ले।

बड़े भाग्य ले, मिले हवय अउ, ये जिनगानी।

मूरख बनके, करथस काबर, तँय मनमानी।3


छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

जिला- कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

8 comments:

  1. बहुत सुग्घर गुरुदेव जी

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  2. वाह वाह भाव शिल्प सम्पन्न लाजवाब छंद सृजन।हार्दिक बधाई।

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  3. अति उत्कृष्ट सृजन सर..बधाई 💐💐💐

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  4. शानदार गुरूजी

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  5. बहुत सुंदर छन्द भैया जी बधाई

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