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Tuesday, September 8, 2020

अमृतध्वनी छन्द : मथुरा प्रसाद वर्मा

 अमृतध्वनी छन्द : मथुरा प्रसाद वर्मा 
1. हनुमान वन्दना
आ के मँय दरबार मा, हे हनुमंता तोर।
पाँव परत कर जोर के, सुनले बिनती मोर।
 सुन ले बिनती, मोर पवनसुत, विपदा भारी।
 बड़ संकट मा, आज परे हे, तोर पुजारी।
 दीनदुखी मँय, अरजी करथँव, माथ नवाँ के।
  किरपा करके, हर लव  दाता, संकट आ के।

2. गोरी 
बोली बतरस घोर के, मुचुर मुचुर मुस्काय।
सूरत हे मनमोहनी, हाँसत आवय जाय।
हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
तिर मा आ के, खन-खन खन-खन, चुरी बजाथे।
नैन मटक्का, मतवाली के, हँसी ठिठोली।
जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।

3. बलात्कार
कइसे आदमखोर अब, होगे मनखे आज।
नान्हे लइका के घलो, लूट लेत हे लाज।
 लूट लेत हे, लाज तको ला, रखवाला मन।
बनके रकसा, गली गली मा, नोचत हे तन।
सरम लागथे  , लाज लुटाही, देश म अइसे।
माथ उठाके,  आज रेंगही , बेटी कइसे।

4. फागुन आगे
फागुन आगे ले सगा, गा ले तहूँ ह फाग।
बजा नगारा खोर मा, गा ले सातो राग।
गा ले सातो, राग मता दे, हल्ला गुल्ला।
आज बिरज मा, बनके राधा, नाँचय लल्ला।
अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
मया बढ़ा ले, नैन मिला ले, फागुन आगे।

5. नेता
काँटा बोलय गाड़ ला, बन जा मोर मितान।
जनसेवक ला आज के, जोंक बरोबर जान।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बनके दाता, भाग्य विधाता, लूटय हमला।
अपन स्वार्थ मा, धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
हमर पाँव मा, बोंवत रहिथे, सबदिन काँटा।

6. आस्वासन
लबरा मन हर बाँटही, आस्वासन के भात।
रहय चँदैनी चारदिन, फेर कुलुप हे रात।
फेर कुलुप हे, रात ह कारी, इखर दुवारी।
अब छुछवावत, सब झन आही, आरी पारी।
मार मताही, खलबल खलबल, जइसे डबरा।
 दे दे चारा, जाल फेंकही, नेता लबरा।

7. भ्रष्टाचार
अइसे बेवस्था कभू, होय नहीं जी नीक।
आज परीक्षा आगु ले, पेपर होथे लीक।
पेपर होथे, लीक सड़क मा , बेंचावत हे।
लइका मन के, भाग बेंच के, सब खावत हे।
जमो चोर हे, इँहा पढाई, होही कइसे।
लूट मचे हे, चारों कोती, देश म अइसे।

9. नारी
नारी ममता रूप हे, मया पिरित के खान।
घर के सुख बर रातदिन, देथे तन मन प्रान।
देथे तन मन, प्रान लगा के, सेवा करथे।
खुद दुख सहिथे, अउ घर भर के, पीरा हरथे।
दाई बहिनी, बेटी नारी, सँग सँगवारी।
ममता के हे, अलग अलग सब, रुप मा नारी।

10. परमारथ
फुलवारी मा मोंगरा, महर-महर ममहाय।
परमारथ के काम हा, कभू न  बिरथा जाय।
कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन उपकारी।
प्यास बुझाथे, सबला भाथे, बादर कारी।
मरथे तबले, सैनिक करथे, पहरेदारी।
तभे देश हा, ममहावत हे, बन फुलवारी।

कवि- मथुरा प्रसाद वर्मा 
ग्राम- कोलिहा जिला - बलौदाबाजार (छ०ग०)

2 comments:

  1. बहुत सुग्घर रचना सर जी 👌💐💐🙏

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  2. बहुत सुंदर गुरूजी

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