अमृत ध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज
(1)ए तन माटी:-
ए तन माटी जानके,झन कर गरब गुमान।
इक दिन चोला छूँटही,राम राम कर गान।।
राम राम कर,गान सुनाले,जिया लगाले।
जिनगी गढ़ले,पुन्य कमाले,जोत जगाले।।
बने बने तँय,करम धरम कर,घर मोहाटी।
जीयत जग में,नाम कमाले,ए तन माटी।।
(2) छावय बसंत
माता शारद के परब, बगरे ज्ञान अँजोर।
होली के शुरुआत हे,रंग दिखय चहुँ ओर।।
रंग दिखय चहुँ-ओर छोर मा, हे फुलवारी।
सुघ्घर मौसम,मन ला भावै,खुशियाँ भारी।।
नदिया नरवा, निरमल पानी, गढ़े बिधाता।
सुर संगम ला, छोड़त हावै, शारद माता।।
(3) बेटी मोर:-
पढ़ बेटी तँय मोर ओ,अव्वल बाजी मार।
बेटा ले तँय कम नहीं,जिनगी अपन सुधार।
जिनगी अपन-सुधार बना ले, बनबे रानी।
दाम कमाबे, नाम कमाबे, आनी-बानी।।
दाई -बाबू, भाई- बहिनी, दुनिया ला गढ़।
नवा जमाना,आए हावय, बेटी तँय पढ़।।
(4) बादर भडुवा:-
कइसन देखौ छाय हे,चारों मुड़ा घपाय।
मरना होगे रोग हा, अपन रूप देखाय।।
अपन रूप-देखाय धरे हे, गला पकड़ के।
खाँसी खाँसय,नाक बोहाय,तने अकड़ के।।
जंजाल बने, हाड़ा काँपे, भुतहा जइसन।
घापे हावय,बादर भडुवा, देखौ कइसन।।
(5) हरियर रुखवा:-
हरियर रुखवा देख तो,कतका सुग्घर छाँव।
डोंगर के बिच मा बने, मोरो हावय गाँव।।
मोरो हावय,गाँव इहाँ जी, घन अमरइया।
डारा पाना, नाचत हावै, ताता थइया।।
पेड़ लगावौ, संगी जम्मो, भगही दुखवा।
होही हावा,शुद्ध तभे जब,हरियर रुखवा।
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
सुंदर
ReplyDeleteसर जी
वाह वाह बहुतेच सुग्घर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सर
ReplyDeleteवाह वाह लाजवाब प्रस्तुति, बढ़िया छंद गुरुदेव
ReplyDeleteसादर आभार गुरुदेव जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर गुरू देव
ReplyDeleteशानदार गुरूजी
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