अमृतध्वनि छंद-शोभामोहन श्रीवास्तव
शंकर सुमरनी
कंकर कंकर मा बसे , भूतनाथ भगवान ।
शंकर शंकर जे कहै, तरै जगत ले जान ।।
तरै जगत ले, जान उही नर ,जपके हर हर ।
जटा गंगधर ,लपटाये गर,डोमी बिखहर,
चंदा सिर पर,राख देंह भर,चुपरे शंकर।
हर सबके जर, शिवमय सुंदर,कंकर कंकर।।
डमडम डम कर नाचथे,डमरूधर कैलाश।
झनकै ततका दूर के, होथे दुख के नाश।।
होथे दुख के, नाश भूत धर, परबत ऊपर।
बइठे शंकर,पदवी अम्मर, देवत किंकर।।
जोगनिया हर,लठर झुमर कर,नाचत मन भर।
चिहुर भयंकर,हरहर हरहर,डमडम डम कर ।
भोले शंकर के नरी ,सोहत मूँड़ी माल ।
कनिहा छाला बाघ के,दिखथे जइसे काल।।
दिखथे जइसे , काल रूप हर ,लगथे बड़ डर।
सरसर सरसर, साँप देंह पर, चलत भयंकर।।
नंदी ऊपर, बइठे हर हर,परबतिया धर ।
जग के सुख बर,गिरि पर जगधर,भोले शंकर।।
शोभामोहन श्रीवास्तव
खुश्बूविहार कालोनी रायपुर छत्तीसगढ़
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Wednesday, September 2, 2020
अमृतध्वनि छंद-शोभामोहन श्रीवास्तव
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बहुत बढ़िया रचना
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर दीदी
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