अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना
बिंदी हावै माथ के , सुग्घर दाई तोर ।
जइसे सुग्घर हे लगे , हिन्दी भाषा मोर।।
हिन्दी भाषा, मोर देश के ,शान बढा़थे।
अनपढ़ मन हा, पढ़ लिख के जी,गुरु बन जाथे ।।
बावन आखर, पढ़व ज्ञान के , भाषा हिन्दी।
भाषा सुग्घर,नइहे दूसर,जइसे बिंदी ।।
भासा हिन्दी के सदा , कर तँय वंदन गान।
महतारी भासा हरे , करले एखर मान।।
करले एखर, मान कभू झन ,बिसराबे तॅय ।
भले सीख के , आने भासा , इतराबे तॅय ।।
आखर आगर, ज्ञान सिखे के ,करले आसा
जनमानस मा रचे बसे हे ,हिन्दी भासा।।
बृजलाल दावना
सहृदय आभार गुरुदेव मोर रचना शामिल करें बर
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर रचना दावना जी हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसहृदय आभार गुरूजी
Deleteबहुत सुन्दर रचना हे दांवना जी बहुत बहुत बधाई हो।।
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