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Saturday, September 26, 2020

अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना

 अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना


बिंदी हावै  माथ के , सुग्घर दाई तोर ।

जइसे  सुग्घर हे लगे , हिन्दी भाषा मोर।।

हिन्दी भाषा, मोर देश के ,शान बढा़थे।

अनपढ़ मन हा, पढ़ लिख के जी,गुरु बन जाथे ।।

बावन आखर, पढ़व ज्ञान के , भाषा हिन्दी।

भाषा सुग्घर,नइहे दूसर,जइसे बिंदी ।।


भासा हिन्दी  के सदा , कर तँय वंदन गान।

महतारी भासा हरे , करले एखर मान।।

करले एखर, मान कभू झन ,बिसराबे तॅय ।

भले सीख के , आने भासा , इतराबे तॅय ।।

आखर आगर, ज्ञान सिखे के ,करले आसा

जनमानस मा  रचे बसे हे ,हिन्दी भासा।।


बृजलाल दावना

4 comments:

  1. सहृदय आभार गुरुदेव मोर रचना शामिल करें बर

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  2. बहुत सुघ्घर रचना दावना जी हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. बहुत सुन्दर रचना हे दांवना जी बहुत बहुत बधाई हो।।

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