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Tuesday, September 29, 2020

अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना

 अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना


*नवा जमाना*


बदलत हावय अब मया, धन ले होगे प्रीत।

रिस्ता के नइ मान हे, कइसन आगे रीत।।

कइसन आगे, रीत बिगड़ गे, नवा जमाना।

पइसा बर अब, देख आज सब, बने दिवाना।।

मिलथे जब धन, दाई बाबू, नि सुहावय।

मनखे मन सब, रंग अपन अब, बदलत हावय।।


नवा जमाना जान के, सब्बो होगे खास।

मॉं बाबू बेटा बहू, सॅंग ससुर अउ सास।। 

सॅंग ससुर अउ, सास होय या, दादी दादा।।

रंग बिरंगी, जिनगी होगे, नइ हे सादा।।

चटक मटक हे, रहन सहन मा, होटल खाना।

करे दिखावा, सबो जिनिस मा, नवा जमाना।।


देखा देखी मा सबों, बिगड़त हवय समाज।

चिरहा फटहा ला पहिर, बेच डरे हे लाज।।

बेच डरे हे, लाज शरम ला, बीच बजरिया।

मन के नइ सुध, तन मा कपड़ा, पहिरे फरिया।।

बबा कहत हे, करही गा अब, कोन सरेखा।

नवा जमाना, बिगड़त हावय, देखी देखा।।


नवा जमाना आज के, कइसन दिन ले आय।

मनखे ले मनखे लड़े, जाति धरम हर खाय।।

जाति धरम हर, खाय बॉंट के, गॉंव शहर ला।

नेता मन सब, रोज लड़ाये, घोर जहर ला।

राजनीति मा, जाति धरम के, गाथे गाना।

भेद भाव के, खेल खेलथे, नवा जमाना।।


*बलिदान*


करना हे बलिदान ता, करव दोष के नाश।

लोभ मोह सब छोड़ दव, मार खाव झन लाश।।

मार खाव झन, लाश जीव के, तुमन इहॉं जी।

बरदान सुघर, जीव प्रकृति के, सार इहॉं जी।।

अॅंध बिश्वासी, खातिर परथे, जीव ल मरना।

बंद प्रथा हो, जीव जंतु के, अब बलि करना।।


      मनोज कुमार वर्मा

      बरद लवन बलौदा बाजार

      साधक- कक्षा 11

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया भाईजी

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  2. बहुत सुन्दर अमृतध्वनि छंद दावना जी बहुत बहुत बधाई

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